‘जनतंत्र ' में सत्ता का निरंकुश होना चिंता असंवैधानिक हो गई।
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मेकाइवली कहते हैं कि राजा को पूरी तरह निरंकुश होना चाहिये।
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की वह निरंकुश होना चाहती है और इसलिए वह भ्रष्ट होती जाती है...
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और, जब अधिकारियों का मान-सम्मान इतना ज्यादा हो जाए तो उनका निरंकुश होना लाजिमी ही है.
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और, जब अधिकारियों का मान-सम्मान इतना ज्यादा हो जाए तो उनका निरंकुश होना लाजिमी ही है.
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वैसे भी ब्लोग्गिंग का एक सबसे शक्तिशाली पहलू जिसे अक्सर इस बहस में दरकिनार कर दिया जाता है वो है ब्लोग्गिंग का निरंकुश होना ।
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ऐसा होना ताज्जुब भी नहीं कहा जाएगा ; क्योंकि जनता में कांग्रेसी जनाधार के लोप होने के पीछे का असली वजह केन्द्र सरकार का निरंकुश होना है।
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की वह निरंकुश होना चाहती है और इसलिए वह भ्रष्ट होती जाती है … लोकतंत्र को इसीलिए महत्वपूर्ण मानते है क्योकि यहाँ सत्ता पर कई नियंत्रनकर्ता होते है ….
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भारत में विभिन्न स्थानों और विभिन्न कालों में स्वतंत्र गणराज्य होते थे और जहाँ राजवंश थे वहाँ भी जनप्रतिनिधियों के रूप में मंत्रिमंडल होता था जिसको काटकर निरंकुश होना कठिन था.
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क्या उसे यथास्थितिवादी, प्रतिगामी और निरंकुश होना चाहिए? कम से कम उस विश्वविद्यालय से यह अपेक्षा तो बिल्कुल नहीं करते, जिसका आदर्श-वाक्य ‘ धैर्य ' और ‘ विनय ', दोनों को साथ लेकर चलने की बात करता हो।