| 1. | ……जुबली सास्त्र नृपति बस नाहीं-गोस्वामी तुलसीदास
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| 2. | (२) विप्र वैद नाऊ नृपति स्वान सौत मंजार।
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| 3. | खरच बढ्यौ, उद्यम घट्यौ, नृपति कठिन मन कीन।
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| 4. | मैं जो हूँ नृपति विराट का विश्वस्त दास
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| 5. | उपदेश ग्रहण कर के नृपति महल लौटा ।
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| 6. | शिव सिर मालति माल भगीरथ नृपति पुन्य फल।
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| 7. | बिरद पढ़त ऋतुराज नृपति के मनु बंदीजन
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| 8. | कहिय कहाँ लगि नृपति दबे हैं जहँ ऋन भारन।
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| 9. | नृपति द्वार ठाड़े रहें दरशन आशा जासकी॥
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| 10. | नृपति भारती चन्द हुए प्रजानिपाल सुख कंद
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