| 1. | मायावी परिरंभ से बचना माया से होना भयभी त..
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| 2. | परिरंभ में सहसा चैतन्य होकर चंपा ने अपनी कंचुकी से एक कृपाण निकाल
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| 3. | इनकी रचना तने से प्रतिकूल होती है, संवहन ऊतक के चारों तरफ परिरंभ (
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| 4. | परिरंभ में बंद भँवरे के समान मानो अब मद पिये बिना रह ही नहीं सकता।
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| 5. | किंतु उस परिरंभ में सहसा चैतन्य होकर चंपा ने अपनी कंचुकी से एक कृपाण निकाल लिया।
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| 6. | किंतु उस परिरंभ में सहसा चैतन्य होकर चंपा ने अपनी कंचुकी से एक कृपाण निकाल लिया।
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| 7. | जब जड़ों की अत्यधिक मोटाई वल्कुट को विदीर्ण कर देती है, तब वल्कुट की आंतरिक सतह परिरंभ (
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| 8. | क्यों थम चीर तेरा समीर गाता विहाग दे दे ताली परिरंभ विचुम्बित अधरामृत की क्यों न रिक्त होती प्याली? ”
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| 9. | इनकी रचना तने से प्रतिकूल होती है, संवहन ऊतक के चारों तरफ परिरंभ (perichycle) और बाहर अंत:त्वचा (endodremis) रहते हैं।
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| 10. | इनकी रचना तने से प्रतिकूल होती है, संवहन ऊतक के चारों तरफ परिरंभ (perichycle) और बाहर अंत: त्वचा (endodremis) रहते हैं।
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