| 1. | इस मत में प्रामाण्य और अप्रामाण्य दोनों परत:
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| 2. | प्रमाण में स्वत: प्रामाण्य ये मानते हैं।
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| 3. | इसी से प्रामाण्य का भी ग्रहण होता है।
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| 4. | इसी से प्रामाण्य का भी ग्रहण होता है।
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| 5. | जिससे ज्ञानमत प्रामाण्य कभी सिद्ध नहीं हो सकता।
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| 6. | इसी से प्रामाण्य का भी ग्रहण होता है।
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| 7. | अनुमान एवं शब्द के प्रामाण्य का प्रतिषेध-चार्वाक
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| 8. | आधार का प्रामाण्य भई अपेक्षित होता है ।
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| 9. | इस मत में प्रामाण्य और अप्रामाण्य दोनों परत:
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| 10. | जिससे ज्ञानमत प्रामाण्य कभी सिद्ध नहीं हो सकता।
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