बहादुरी के सपने देखे, हमको बागी होना पड़ा क्योंकि बहादुरी
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बागी होना राजनीतिक महत्वकांक्षा को दर्शाता है बागी के तेवर धीरे-धीरे..
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अपने हक के लिए बागी होना तो समझ में आता है पर बेबजह डाकू बनना यह साजिश नहीं तो और क्या है!
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क्योंकि असंतोष, भीतरघात, बदला, नाराजगी के साथ-साथ बागी होना भाजपा और कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय बन गया है।
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स्वाभाविकता कि तरफ, बन्धनों की तरफ बागी होना, सच्ची में साँस लेना, पत्तियों को स्पर्श करना, डंठल को छेड़ना, दूब की नोंक..
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कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का कोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है अब तो भूखे पेटों का बागी होना मजबूरी है
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बागी होना नैतिक अधिकार है इससे कौन रोक सकता है... दागी जैसी जागृति.... बागी तक आने में २ १ वी सदी भी बीत जाये... तो आश्चर्य नही होगा....... I
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पर इन्हें कौन फिर से पढ़ाए कि संपादक और पत्रकार होने का मतलब आधा बागी होना होता है, होलटाइमर सरीखे जीवन को जीना होता है, मिशनरी एप्रोज से जनहित में लिखना-लड़ना होता है.
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बागी हर दल और हर उम्मीदवार के लिए खतरे की घंटी बन जाता है और उसका खौफ अंतिम दिन तक राजनीति में मंडराता रहता है अपने दल से बगावत कर बागी होना याने न घर का न घाट का रहना है.