आकार और संख्या के आधार पर भी किसी घटना का समाचार मूल्य आंका जाता है।
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आकार और संख्या के आधार पर भी किसी घटना का समाचार मूल्य आंका जाता है।
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समाचार चैनल के एजेण्डे में समाचार मूल्य, लोकहित, संतुलन और वस्तुनिष्ठता जैसे मूल्य या पैमाने नहीं हैं बल्कि टीआरपी रेटिंग है.
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आखिर संपादकों की भूमिका क्या है? क्या खबरों को मायने-मतलब और उनके समाचार मूल्य के मुताबिक महत्व और प्राथमिकता देने की जिम्मेदारी गेटकीपरों की नहीं है?
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हालत यह हो गयी है कि समाचार चैनलों में किसी घटना को कवर करने का तर्क उसके समाचार मूल्य से कहीं अधिक प्रतिद्वंद्वी समाचार चैनल द्वारा उसे प्रमुखता देने से बन रहा है।
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तथ्य यह है कि बर्ड फ्लू समाचार मूल्य यह एक साल पहले किया था प्रकट नहीं होता है के बावजूद, घातक वायरस मनुष्य मारे गए और पक्षी आबादी को नष्ट करके दुनिया के कारण तबाही चक्र जारी है.
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विभिन्न सामाजिक समूहों, पेशेवर समूहों, व्यक्तियों, औरतों, बच्चों, धार्मिक समूहों आदि पर केन्द्रित खबरें, समाचार मूल्य के बुनियादी मानकों को ताकपर और मानवाधिकार हनन के परिप्रेक्ष्य में पेश की जा रही हैं।
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दैनिक भास्कर इंदौर तथा भोपाल के संस्करणों में मध्यप्रदेश के दो साहित्यकारों को माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा पुरस्कृत करने की खबर अख़बार के पहले पन्ने पर छपी तो सहारा समय मध्यप्रदेश / छत्तीसगढ़ के न्यूज एडीटर्स को भी इसमें समाचार मूल्य दिखाई दिया.
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लोकहित और सुस्पष्ट समाचार मूल्य के आधार पर किसी समाचार का चयन करने के बजाय चयन और कवरेज का पैमाना यह हो गया है कि प्रतिद्वंद्वी चैनल उसे दिखा रहा है या वह उसे कहीं पहले न दिखा दे।
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पत्रकारिता के छात्रों को अक्सर समाचार मूल्य समझाते वक्त एक उदाहरण देकर बताया जाता है कि अगर कुत्ता आदमी को काट खाए तो वह खबर नहीं है लेकिन अगर आदमी कुत्ते को काट खाए तो वह जबर्दस्त खबर है।