अंगुत्तरनिकाय वाक्य
उच्चारण: [ anegautetrenikaay ]
उदाहरण वाक्य
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- अंगुत्तरनिकाय की अट्टकथाओं में उल्लेख है कि उन्होंने उसे स्थविर ज्योतिपालकी प्रार्थना से कांचीपुर आदि स्थानों में रहते हुए लिखा।
- बौद्ध साहित्य भी इस बोध से परे नहीं है (अंगुत्तरनिकाय, खंड-२, पृष्ठ ७ ६).
- अंगुत्तरनिकाय की अट्टकथाओं में उल्लेख है कि उन्होंने उसे स्थविर ज्योतिपालकी प्रार्थना से कांचीपुर आदि स्थानों में रहते हुए लिखा।
- इसके कर्ता सारिपुत्त की तीन अन्य टीकाएँ भी मिलती हैं-(1) लीनत्थपकासिनी-मज्झिमनिकाय की अट्ठकथा पर, (2) विनयसंग्रह और (3) सारत्थमंजूसा-अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा पर।
- पालि ग्रन्थों (अंगुत्तरनिकाय, भाग 4, पृ 0 197-204) में वह पहाराद एवं असुरिन्द (असुरेन्द्र) कहा गया है।
- इसके कर्ता सारिपुत्त की तीन अन्य टीकाएँ भी मिलती हैं-(1) लीनत्थपकासिनी-मज्झिमनिकाय की अट्ठकथा पर, (2) विनयसंग्रह और (3) सारत्थमंजूसा-अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा पर।
- स्वयं बुद्ध की नजरों में भी यह कल्पना से परे था कि कोई स्त्री तथागत या चक्रवर्ती भी हो सकती है (अंगुत्तरनिकाय, खंड-१, पृष्ठ २९).
- स्वयं बुद्ध की नजरों में भी यह कल्पना से परे था कि कोई स्त्री तथागत या चक्रवर्ती भी हो सकती है (अंगुत्तरनिकाय, खंड-१, पृष्ठ २९).
- कहना होगा कि सर्वत्र स्त्रियों को काला नाग, दुर्गंध, व्यभिचारिणी और पुरुषों को फांसनेवाली कहा गया है (अंगुत्तरनिकाय, खंड-1, पृष्ठ २ ६ ३).
- * पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ ‘ अंगुत्तरनिकाय ' में भगवान बुद्ध से पहिले के जिन 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है, उनमें पहिला नाम ` शूरसेन जनपद का है ।
- स्वयं बुद्ध की नजरों में भी यह कल्पना से परे था कि कोई स्त्री तथागत या चक्रवर्ती भी हो सकती है (अंगुत्तरनिकाय, खंड-१, पृष्ठ २ ९).
- इसके कर्ता सारिपुत्त की तीन अन्य टीकाएँ भी मिलती हैं-(1) लीनत्थपकासिनी-मज्झिमनिकाय की अट्ठकथा पर, (2) विनयसंग्रह और (3) सारत्थमंजूसा-अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा पर।
- अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध ने समाधि की बहुलता से वर्तमान जीवन में सुखपूर्वक विहार (दृष्टिधर्म-सुखविहार), दिव्यचक्षु-ज्ञान, स्मृति-सम्प्रज्ञान से सम्पन्नता और क्लेश (आस्त्रव) क्षय आदि अनेक गुण बताये हैं।
- यहां अंगुत्तरनिकाय (खंड-२, पृष्ठ ७६) का वह प्रसंग उल्लेखनीय है जब आनंद स्त्रियों के दरबार में नहीं बैठने एवं शील-चर्चा के क्रम में उपस्थित नहीं रहने के प्रश्न पर बुद्ध से चर्चा करता है।
- यहां अंगुत्तरनिकाय (खंड-२, पृष्ठ ७६) का वह प्रसंग उल्लेखनीय है जब आनंद स्त्रियों के दरबार में नहीं बैठने एवं शील-चर्चा के क्रम में उपस्थित नहीं रहने के प्रश्न पर बुद्ध से चर्चा करता है।
- यहां अंगुत्तरनिकाय (खंड-२, पृष्ठ ७६) का वह प्रसंग उल्लेखनीय है जब आनंद स्त्रियों के दरबार में नहीं बैठने एवं शील-चर्चा के क्रम में उपस्थित नहीं रहने के प्रश्न पर बुद्ध से चर्चा करता है।
- यहां अंगुत्तरनिकाय (खंड-२, पृष्ठ ७ ६) का वह प्रसंग उल्लेखनीय है जब आनंद स्त्रियों के दरबार में नहीं बैठने एवं शील-चर्चा के क्रम में उपस्थित नहीं रहने के प्रश्न पर बुद्ध से चर्चा करता है।
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