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अंगुत्तर निकाय वाक्य

उच्चारण: [ anegautetr nikaay ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय के अनुसार कुल सोलह (16) महाजनपद थे-अवन्ति,अश्मक या अस्सक, अंग, कम्बोज, काशी, कुरु, कोशल, गांधार, चेदि, वज्जि या वृजि, वत्स या वंश,पांचाल, मगध, मत्स्य या मच्छ, मल्ल, सुरसेन ।
  • पालि सहित्य में लिच्छवि वज्जि संघ की प्रधान जाति थी अतएव अंगुत्तर निकाय (1,213: 4,252), महावस्तु (2,2) तथा विनयपिटक (2,146) में षोड़श महाजनपद की सूची में वज्जि का ही नाम आता है, लिच्छवि का नहीं।
  • अंगुत्तर निकाय में वे कहते हैं कि जो प्राणी स्वयं हिंसा नहीं करता, किसी अन्य को हिंसा की ओर प्रवृत्त नहीं करता और किसी भी प्रकार के हिंसा का समर्थन तक नहीं करा वही धर्मयुक्त प्राणी है।
  • बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय के अनुसार कुल सोलह (16) महाजनपद थे-अवन्ति, अश्मक या अस्सक, अंग, कम्बोज, काशी, कुरु, कोशल, गांधार, चेदि, वज्जि या वृजि, वत्स या वंश, पांचाल, मगध, मत्स्य या मच्छ, मल्ल, सुरसेन ।
  • अंगुत्तर निकाय में वे कहते हैं कि जो प्राणी स्वयं हिंसा नहीं करता, किसी अन्य को हिंसा की ओर प्रवृत्त नहीं करता और किसी भी प्रकार के हिंसा का समर्थन तक नहीं करा वही धर्मयुक्त प्राणी है।
  • नाहं भिक् खे, अंञ्ञं एकरूपंपि समनुपस् सामि यं एवं इत्थियाचित्तम् परियोदाय तिट्ठति यथयिदम् भिक् खवे, पुरिसरूपं... पुरिस-सद्दो...., पुरिस-गंधो..., पुरिसरसो..., पुरिसफोट्ठब् बो... ।)-अंगुत्तर निकाय 1 । 1 । 1
  • सुत्त पिटक पाँच निकायों में बँटा है:-(1) दीघ निकाय, (2) मज्झिम निकाय, (3) संयुत्त निकाय, (4) अंगुत्तर निकाय और (खुद्दक निकाय) खुद्दक निकाय सबसे छोटा है।
  • पालि सहित्य में लिच्छवि वज्जि संघ की प्रधान जाति थी अतएव अंगुत्तर निकाय (1,213: 4,252), महावस्तु (2,2) तथा विनयपिटक (2,146) में षोड़श महाजनपद की सूची में वज्जि का ही नाम आता है, लिच्छवि का नहीं।
  • भंडारकर ने अपनी पुस्तक ' अशोक ' में लिखा है-' रट्ठिक पेत्तनिक ' पदावलि अंगुत्तर निकाय में उस शासक को सूचित करने के लिए प्रयुक्त हुई हैं जिसका दर्जा निचला, राजा से ठीक पिछला है, जिसके पास मौरूसी सम्पत्ति हो।
  • कई स्थानों पर बुद्ध ने स्वयं कहा है कि निर्वाण प्राप्ति के लिए स्त्री और पुरुष का कोई भेद नहीं है और वे स्त्रियों की अपेक्षा किसी भी तरह से पुरुषों को विशेष नहीं मानते (अंगुत्तर निकाय 8: 2: 2: 1) ।
  • (उगह सुतंत अंगुत्तर निकाय) इस तरह चूंकि सभी धर्म (बौद्ध धर्म कुछ सीमा तक) स्त्री को पुरुषों से निम्न और प्राकृतिक तौर पर निर्भर मानते हैं अत: धर्म और उसके नैतिक नियमों का सांस्कृतिक ढांचा कभी भी पुरुष वर्चस्व के खिलाफ नहीं जाएगा।
  • अंगुत्तर निकाय ” में वार्णित महाजनपदों यथा अंग, अस्मक, अवन्ती, गंधार, मगध, छेदी आदि में से बहुतों का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जो इस बात का संकेत है कि यह ग्रन्थ मात्र पौराणिक ही नहीं तथापि कुछ ऐतिहासिकता को भी संजोये है.
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