अघासुर वाक्य
उच्चारण: [ aghaasur ]
"अघासुर" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- कार्तवीर्य अर्जुन · कृतवीर्य · संवरण · अंगिरा · अचल · अंगद · अंगद (लक्ष्मण पुत्र) · अग्निदेव · अक्रूर · महर्षि अत्रि · अघासुर · अदिति · अधिरथ · अनिरुद्ध · अपाला ·
- उन्होंने पूतना, बकासुर, अघासुर, धेनुक और मयपुत्र व्योमासुर का वध कर बृज को भय मुक्त किया तो दूसरी ओर इंद्र के अभिमान को तोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा को स्थापित किया।
- अजगर के रूप में पड़े हुए अघासुर को देखते ही कृष्ण पहचान गए, वह अजगर नहीं, कोई दैत्य है और इसी ने अपनी सांसों द्वारा ग्वाल-बालों को अपने पेट में खींच लिया है।
- पूतना, अघासुर, बकासुर, तृणासुर, शकटासुर और नरकासुर के रूप में स्थित काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर का वह खेल-खेल में नाश कर देते हैं.
- |साँप नाथ का वत्स, अघासुर पड़ा अघाया |हुई मुलायम देह, बहुत भटकाई माया |मनुज वेश में आय, वोट की मांगे भिक्षा |सुगढ़ सलोनी देह, वोट देने की इच्छा ||वाह वाह ताऊ क्या लात है? म...
- लील रहा तब से पड़ा, दुष्ट अघासुर कोष | जोंकों को कोंसे उधर, या घोंघो का दोष || “ वंशवाद” कंगारू सी कर रही बावन हफ्ते मौज |बेटे को थैली धरे, लीड कराती फौज ||
- कार्तवीर्य अर्जुन · कृतवीर्य · संवरण · अंगिरा · अचल · अंगद · अंगद (लक्ष्मण पुत्र) · अग्निदेव · अक्रूर · महर्षि अत्रि · अघासुर · अदिति · अधिरथ · अनिरुद्ध · अपाला · अप्सरा ·
- क्योंिक आपके स्वरूप को तो उस पूतना ने भी अपने सम्बिन्धयों अघासुर, बकासुर आिद के साथ पर्ाप्त कर िलया, िजसका केवल वेष ही साध्वी स्तर्ी का था, पर जो हृदय से महान कर्ूर थी।
- कार्तवीर्य अर्जुन · कृतवीर्य · संवरण · अंगिरा · अचल · अंगद · अंगद (लक्ष्मण पुत्र) · अग्निदेव · अक्रूर · महर्षि अत्रि · अघासुर · अदिति · अधिरथ · अनिरुद्ध · अपाला · अप्सरा · अभिम
- शिशु से बालक, तरुण एवं युवा होते कृष्ण ने अपनी बाल लीला करते हुये तृणावर्ण, अघासुर, अरिष्टासुर, केशी, व्योमासुर, चाणूर, मुष्टिक तथा कंस जैसे दुष्ट दैत्यों और राक्षसों का वध कर डाला।
- समाज में आज भी दुधमुंहे बच्चों को, मासूम किशोर-किशोरियों को-कई पूतनाओं, केशी, तृणाव्रत, बकासुर, अघासुर, धेनुकासुर जैसे दुष्ट प्रकृति वालों का शिकार बन कर कई अत्याचार झेलने पड़ रहे हैं ।
- एक बार जब कंस की ओर से भेजा गया अघासुर नामक राक्षस अजगर का विशाल रूप लेकर उनकी सब गायों और ग्वाल बालों को निगल गया, तो अपने प्राणों का मोह किये बिना बालकृष्ण स्वयं उसके मुंह में घुस गये।
- तिवाड़ी ने कहा कि कृष्ण की लीला सब के मन में चलती रहती है तथा भागवत में जिसे कंश कहा गया है वह हमारा अभिमान है, पूतना, तृणावत, अघासुर, बकासुर आदि काम, क्रोध, मद, लोभ आदि है।
- अघासुर का वध · अनन्त चतुर्दशी · अहोई अष्टमी · आरुणि उद्दालक की कथा · इंद्र का अहंकार · ऐतरेय की कथा · कच देवयानी · करवा चौथ · कार्तिक पूर्णिमा · कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा · कुबेर पुत्रों का उद्धार · गंगावतरण · गणेश जी की
- तृणावर्त, अघासुर, बकासुर, केशी जैसे तथाकथित राक्षसों या प्राकतिक आपदाओं से निबटना और किशोरावस्था में ही सांड़ (वृषभासुर) को मारने पर कृष्ण से प्रायश्चित कराकर ‘ राधाकुंड ' जैसे स्थान की कल्पना! मेरा ख़याल है कि नौटियाल जी कवि के संकट को अब समझ गये होंगे।
- अब कृष्ण को भी, पता नहीं ऐसी क्या जल्दी थी कि दूध के दांत भी नहीं निकले कि पूतना सहित कागासुर, शकटासुर और तृणावर्न का काम तमाम कर दिया और जब गोचारण के लिए वन जाने लगे तो इसी बीच बकासुर और अघासुर को भी किनारे लगा दियाद्र बिना किसी शोरशराबे के; न कोई चीत्कार न हाहाकार!
- वसुदेव का यशोदा के पास जाना, योगमाया का दर्शन, शकटासुर वध, यमलार्जुन मोक्ष, पूतना वध, तृणावर्त वध, वत्सासुर वध, बकासुर, अघासुर, व्योमासुर, प्रलंबासुर आदि का वर्णन, गोवर्धन धारण, रासलीला, होली उत्सव, अक्रूर गमन, मथुरा आगमन, मानलीला, दानलीला आदि लगभग सभी झाँकियाँ उकेरी गयीं हैं।
- “ नारद जी! हमारे सुख-संपत्ति, भोग-मोक्ष-सबकुछ हमारे प्रियतम श्रीकृष्ण ही हैं | अनंत नरकों में जाकर भी हम श्रीकृष्ण को स्वस्थ कर सकें-उनको तनिक-सा भी सुख पहुंचा सकें तो हम ऐसे मनचाहे नरक का नित्य भाजन करें | हमारे अघासुर (अघ + असुर), नरकासुर (नरक + असुर) तो उन्होंने कभी के मार रखे हैं | ”
- श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न, गोकुल की कथा,बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध,कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा,किशोरावस्था में कंस का वध,मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें समस्त दैत्यों का वध,भगवान के प्रथक प्रथक विवाह,द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना,और अष्टावक्र जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं।
- ऋ क्कभ्रमर गीत सार ; पृ. 14 त्र् दूसरा कारण यह कि पौराणिक अवतारवाद के प्रतिपादन में सूर की वृनि लीन नहीं हुई है क्योंकि ह्यजिस ओज और उत्साह से तुलसीदास जी ने मारीच, ताड़का, खर दूषण आदि के निपात का वर्णन किया है उस ओज और उत्साह से सूरदास जी ने बकासुर, अघासुर, कंस आदि के वध और इंद्र के गर्व मोचन का वर्णन नहीं किया है।
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