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अभिधर्म वाक्य

उच्चारण: [ abhidherm ]
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  • (३) वे जो सूत्रो-विनय और अभिधर्म के अनुसार शुद्धि की बारीकी निरूपित करतेहैं-केवल पुस्तकों का अनुधावन करते हैं-उनका मर्म या आन्तरिक अभिप्रायनहीं समझते.
  • इनके अभिधर्म में प्रमुख रूप में सात ग्रन्थ हैं, जो प्राय: मूल रूप में अनुपलब्ध हैं या आंशिक रूप में उपलब्ध हैं।
  • क्सोमा द कोरोस, शरच्चंद्र दास और विद्याभूषण, पूसें और श्चेरवात्स्की आदि ने तिब्बती भाषा, बौद्ध न्याय, सर्वास्तिवादी अभिधर्म आदि के आधुनिक ज्ञान का विस्तार किया।
  • क्सोमा द कोरोस, शरच्चन्द दास, विद्याभूषण और पुर्से आदि ने तिब्बती भाषा, बौद्ध न्याय, सर्वास्तिवादी अभिधर्म आदि के आधुनिक ज्ञान का विस्तार किया।
  • शेष तीनों क्रमश: अभिधर्म, सूत्र और विनय के लिए निर्मित किये गये हैं, जो बौद्ध धर्म के तीन अंग (त्रिपिटक) हैं ।
  • उनमें एक वसुबन्धु तो आचार्य असङ्ग के छोटे भाई थे, जो महायान शास्त्रों के प्रणेता हुए तथा दूसरे वसुबन्धु सौत्रान्तिक थे, जिन्होंने अभिधर्म कोश की रचना की।
  • अभिधर्म कोश के चार खण्ड एक साथ बोल पड़े, “ जाने क्यों १ ९ ६ ५ के बाद किसी परवर्ती वेतन आयोग की संस्तुति इन कर्मचारियों पर लागू नहीं हुई।
  • इन विद्वानों ने समस्त बौद्ध ग्रन्थों का सार संस्कृत भाषा के एक लक्ष श्लोकों में ‘ सूत्र पिटक ' ‘ विनय पिटक ' और ‘ अभिधर्म पिटक ' नामक तीन महाभाष्यों में रचा।
  • इसी में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने ' अभिधर्म ' (श्रेष्ठ धर्म) और ' कथावस्तु ' (विवाद के बिंदु) पुस्तकें लिखीं, जिन्होंने ' स्थविरवाद ' (थेरवाद) की स्थापना की।
  • युवान्च्वांग यात्राविवरण, जगदीश कश्यप, दि फिलॉसफी ऑव अभिधम्म, मिसेज़ राइज़ डेविड्स, दि बर्थ ऑव इन्डियन साइकालॉजी ऐंड इट्स डेवलपमेंट इन बुद्धिज़्म, सोगेन, सिस्टम्ज ऑव बुद्धिस्ट थॉट, गुन्थर, फिलॉसफी ऐन्ड साइकोलॉजी इन दि अभिधर्म, ससाकि, स्टडी ऑव अभिधर्म फिलॉसफी।
  • इस संप्रदाय में दिनांग व धर्मकीर्ति के न्याय, मैत्रेयनाथ और असंग के प्रज्ञापारमिता सूत्र, नागार्जुन व चंद्रकीर्ति के माध्यमिक, वसुबंधु व असंग के अभिधर्म तथा गुणप्रभा द्वारा रचित विनय प्रमुख ग्रंथ है, जिस पर इनकी आध्यात्मिक व दर्शन टिका है।
  • जिसमें कुछ मुख्य पुस्तकें हैं-प्रयाग प्रदीप, घाघ और भड्डरी, शंकराचार्य, मानस में तत्सम शब्द, संत तुकाराम, हिन्दी वीरकाव्य, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जायसी, नैषध परिशीलन, हिन्दी नाटक और रंगमंच, अवधी का विकास, भोजपुरी लोकगाथा, अभिधर्म कोश, नौतर्ज मुरस्सा, आध्यात्म रामायण, इन्तखाबे दाग, आलमे हैवानी आदि।
  • जिसमें कुछ मुख्य पुस्तकें हैं-प्रयाग प्रदीप, घाघ और भड्डरी, शंकराचार्य, मानस में तत्सम शब्द, संत तुकाराम, हिन्दी वीरकाव्य, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जायसी, नैषध परिशीलन, हिन्दी नाटक और रंगमंच, अवधी का विकास, भोजपुरी लोकगाथा, अभिधर्म कोश, नौतर्ज मुरस्सा, आध्यात्म रामायण, इन्तखाबे दाग, आलमे हैवानी आदि।
  • आचार्य वसुबन्धु ने सर्वास्तिवादी दृष्टिकोण से अभिधर्मकोश (कारिका तथा भाष्य) के आठ कोशस्थानों-धातु, इन्द्रिय, लोकधातु, कर्म, अनुशय, आर्यपुद्गल, ज्ञान और ध्यान तथा परिशिष्ट रूप पुद्गलकोश (भाष्य) में अभिधर्म के सिद्धांतों का विशद रूप से उपन्यास किया है।
  • वसुबन्धु का बौद्ध परम्परा में न केवल अभिधर्म और योगाचार दर्शन को एक व्यवस्थित और क्रमबद्ध स्वरूप प्रदान करने के कारण महत्त्व है अपितु उनका महत्त्व बौद्ध विचार पद्धति में हेतुविद्या, वादविधि और प्रमाण व्यवस्था को एक निश्चित भूमि प्रदान करने में भी है, जो आगे चलकर दिङ्नाग, धर्मकीर्ति, ईश्वरसेन तथा अन्य बौद्ध नैयायिक आचार्यों की कृतियों में विस्पष्ट रूप से स्फुट हुई।
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