अमूर्त चिंतन वाक्य
उच्चारण: [ amuret chinetn ]
"अमूर्त चिंतन" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- जब व्यक्ति अमूर्त विचारों को लेकर सर्जन करता है, कोई वस्तु निर्मितकरने के लिए नहीं बल्कि अमूर्त चिंतन के क्षेत्र में सर्जन करने के लिए, तब वह चौथे स्तर पर पहुंचता है.
- अमूर्त चिंतन, यानि अमूर्त अवधारणाओं के ज़रिए चिंतन व्यावहारिक और ऐंद्रीय अनुभव के आधार पर स्कूली आयु के बच्चों में विकसित होता है और आरंभ में इसके रूप सरल होते हैं।
- किंतु यह सोचना ग़लत होगा कि संकल्पनाओं के आत्मसात्करण के दौरान अमूर्त चिंतन का विकास स्कूली बच्चों के संवेदी-क्रियात्मक और बिंबात्मक चिंतन के विकास को खत्म कर देता या रोक देता है।
- लू और धुल भरी आँधियों के साथ गर्मियों के तप्त धूसर दिनों में ये अमूर्त चिंतन उस ईश्वर के दो हाथ और नज़दीक ले जाता है जिसकी कोई रिश्तेदारी इस दुनिया में नहीं है.
- पर सोचने-समझने की दुनिया पाठक से भी कुछ मांग करती है. लेवी-स्त्रोस तथाकथितआदिम समाजों के अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सबसे आदिम मानसिकता कीज्ञानात्मक व्यवस्था की बुनियाद में भी अमूर्त चिंतन का श्रेष्ठ स्तर मिलता है.
- अमूर्त चिंतन से असंतुष्ट फायरबाख इंद्रिय अनुध्यान (प्रत्ययवादी धारणा की मदद से कल्पित विचारों के समक्ष चिंतन को पुनः पुनः परिभाषित करना) की शरण लेते हैं, पर वह एन्द्रियता को व्यवहारिक मानव-इंद्रिय क्रिया के रूप में नहीं विचारते।
- अतः वह अमूर्त चिंतन नहीं, बल्कि स्वयं आख्यान ही है, जो समस्त ‘ यूटोपियाई ' गतिविधि को प्रमाणित करने का आधार है, और महान उपन्यासकार ‘ यूटोपिया ' की समस्याओं का ठोस निरूपण प्रस्तुत करते हैं।
- इस प्रकार अगर पशुओं का ठोस, व्यवहारिक चिंतन उन्हें अपने सामने मौजूद स्थिति के प्रत्यक्ष प्रभाव की दया पर छोड़ता है, तो मनुष्य की अमूर्त चिंतन की क्षमता उसे अपने सामने मौजूद स्थिति से अपेक्षाकृत स्वतंत्र बनाती है।
- अमूर्त चिंतन से असंतुष्ट फायरबाख इंद्रिय अनुध्यान (प्रत्ययवादी धारणा की मदद से कल्पित विचारों के समक्ष चिंतन को पुनः पुनः परिभाषित करना) की शरण लेते हैं, पर वह एन्द्रियता को व्यवहारिक मानव-इंद्रिय क्रिया के रूप में नहीं विचारते।
- अगर ये बाभन इतने ही अमूर्त चिंतन की खान हैं तो मुझे बताएं कि पिछले सौ साल में उत्तर भारत में कौन सा ब्राह्मण दार्शनिक भारत में पैदा हुआ है जो रसेल, विटगेंस्टाइन, सात्र, माक्र्स का सामने टिक सकेगा।
- यह सही है कि चेतना का स्पष्ट भौतिक आधार होता है, पर एक बार पैदा होने के पश्चात यानि मस्तिष्क में विभिन्न रूपों में परावर्तित और स्मृति का अंग बनने के पश्चात, यह अमूर्त चिंतन का विषय भी बन जाती है।
- मानव समाज के अनुभव को आत्मसात् किये बिना, अन्य मनुष्यों के संपर्क में आए बिना कोई भी व्यक्ति अपने में परिपक्व मानवीय भावनाओं, ऐच्छिक ध्यान, स्मृति तथा अमूर्त चिंतन का विकास नहीं कर सकता और सच्चे अर्थों में व्यक्ति नहीं बन सकता।
- यदि यह दावा सही है, तो हमें अपेक्षा करनी चाहिए कि सिर्फ चिंपैंजी ही नहीं बल्कि कुत्ते, बिल्ली और चूहों जैसे अन्य स्तनधारी भी अपने-अपने अनोखे अंदाज में भाषागत रूप से दक्ष होंगे और अमूर्त चिंतन व अभिव्यक्ति के भी काबिल होंगे । एम.आई.टी. के स्टीवन पिंकर जैसे अन्य भाषाविद् जन्मजात भाषागत समझ को शुद्धत:
- कुछौ समझ में नही आया-जब ब्लाग इतने व्यक्तिपरक और अमूर्त चिंतन के होने लगेगें तो उनकी सार्वजनीन उपयोगिता खत्म हो जायेगी. पर ब्लॉग की सार्वजनीन उपयोगिता /उद्देश्यपरकता का सवाल ही क्यों उठाया जाय? डॉ अमर जी आप चलते रहें अपने इसी स्तीरियोतायिप में-ब्लॉग से आख़िर किसी का भला ही क्या होने वाला?
- (यहां इस बहुप्रचारित बात को भी ध्यान में रख लिया जाए कि सामान्यतः मस्तिष्क के विकास के लिए शुरुआती पांच वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं) यानि कि उसकी भाषा, सीखी जा रही भाषा में अमूर्त चिंतन, चिंतन के विषय, विचारों की उत्पत्ति, उनकी अंतर्संबंधताएं, तार्किकी, अभिव्यक्ति, आदि-आदि परिवेश के वयस्कों पर निर्भर हुआ करती है।
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