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अर्श रोग वाक्य

उच्चारण: [ aresh roga ]
"अर्श रोग" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • कुण्डली मे कौन कौन से ग्रह अर्श रोग को उत्पन्न करते हैं यह बताया जा रहा है-
  • अर्श रोग (बवासीर) में आहार की लापरवाही तथा चिकित्सा में अधिक देरी के कारण यह अधिक फैल जाता है।
  • अधिक भोजन-अतिभोजन अर्श रोग मूल कारणम् अर्थात् आवश्यकता से अधिक भोजन करना बवासीर का प्रमुख कारण है।
  • शारीरिक रूप से अधिक स्थूल (मोट) े होने पर भी स्त्री-पुरुष अर्श रोग के शिकार होते हैं।
  • खुजली:-अर्श रोग की प्रारम्भिक अवस्था में जब अर्बुद ढीले रहते हैं तब उसमें कोई कष्ट नहीं होता।
  • 4. अधिक भोजन:-“अतिभोजन अर्श रोग मूल कारणम्” अर्थात् आवश्यकता से अधिक भोजन करना बवासीर का प्रमुख कारण है ।
  • गेहूं:-इसके नवजात छोटे पौधे का रस सेवन करने से सभी प्रकार के अर्श रोग में लाभ होता है ।
  • अर्श रोग व कामला (पीलिया) रोग की चिकित्सा में विलम्ब होने से भी जलोदर की उत्पत्ति हो सकती है।
  • 2. खुजली:-अर्श रोग की प्रारम्भिक अवस्था में जब अर्बुद ढीले रहते हैं तब उसमें कोई कष्ट नहीं होता ।
  • अर्श रोग की चिकित्सा में विलम्ब करने से अधिक रक्तस्त्राव होने से रोगी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है।
  • उन्होंने अपने काल में पथरी, उदर रोगों, अर्श रोग तथा कफज मोतियाबिंद में शल्य चिकित्सा करने की विधि इजाद की थी।
  • मंदेन्त्ये ड्नूनगौ लग्नपोरौ अर्शर्स:-शनि बारहवें भाव और लग्नेश व मंगल ये दोनों सप्तम भाव मे गये हो तो अर्श रोग होवे ।
  • व्ययेर्कजे भौमांगेश्दृश्टे: अर्श: स:-१२ वे भाव मे गया हुआ शनि, मंगल से और लग्नेश से दृष्ट हो तो अर्श रोग होगा ।
  • चिड़चिड़े की जड़ और कालीमिर्च दोनों को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर जल के साथ पीने से अर्श रोग ठीक होता है।
  • कन्धे की कसरत: “कन्धे की किसी नस का गुदा मार्ग से विशेष सम्बन्ध है और उस पर दबाव पडने से अर्श रोग दब जाता है ।
  • अर्श रोग (बवासीर) का ज्योतिष से संबंध और उपचार मनुष्य की कुण्डली मे १२ भाव होते हैं जिसमें प्रथम, षष्ठ, और अष्टम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण है ।
  • अर्श रोग एक बड़ा ही भयानक रोग होता है, मुख्या रूप से यह दो प्रकार का होता है, आंतरिक अर्श और बाहरी अर्श, आंतरिक अर्श को रक्तज अर्श भी...
  • बवासीर अर्श-अर्श रोग में कफ प्रधान मस्से हों अर्थात खुजली चलती हो देखने में मोटे हो और स्पर्श करने पर दुख न होकर अच्छा प्रतीत होता हो तो ऐसे मस्सो पर राई का तेल लगाते रहने से मस्से मुरझाने ल्रगते है।
  • शायद यही कारण है कि मुग्दर हिलाने वालों, कंधे पर बोझा ढोने वाले श्रम जीवियों, बहेंगी, पीनस, पालकी ले जाने वाले कहारों, हल कंधे पर रखकर ले जाने वाले किसानों और मोटा लट्ठ कंधे पर रखने वाले देहातियों को प्रायः अर्श रोग नहीं होता ।”
  • इस पर गुड्डी को आयुर्वेदिक अस्पताल के अर्श रोग विभाग में भर्ती किया गया जहां अर्श रोग विशेषज्ञों डॉ. सुभाषचन्द्र उपाध्याय, डॉ. रामानंद दाधीच एवं डॉ. गौरीशंकर कोलखंध्या ने इस बालिका के मस्से का क्षार सूत्रा चिकित्सा पध्दति से ऑपरेशन किया।
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