अवसर्पिणी वाक्य
उच्चारण: [ avesrepini ]
"अवसर्पिणी" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- जिस प्रकार काल हिंदुओं में मन्वंतर कल्प आदि में विभक्त है उसी प्रकार जैन में काल दो प्रकार का है-उत्सिर्पिणी और अवसर्पिणी ।
- प्रभु ऋषभदेव का प्रथम पारणा होने से इस अवसर्पिणी काल में श्रमणों को भिक्षा देने की विधि का प्रथम ज्ञान देने वाला भी श्रेयांसकुमार हुआ।
- जैन धर्म अनादि है जैन आगम के अनुसार भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में 24-24 तीर्थकर होते हैं।
- जैन मतानुसार दुःख से सुख की ओर बढ़ने वाला कालचक्र का पहिया उत्सर्पिणी काल और सुख से दुख की ओर का काल अवसर्पिणी काल माना गया है।
- वर्तमान में अवसर्पिणी काल का पंचम आरक प्रवहमान है | सदगुरू सुमति में प्रकट प्रकाश के आधस्त्रोत्र के दर्शन हेतु हमें सुदीर्घ अतीत मे लौटना है |
- अवसर्पिणी काल के चौथे में आरे के पिचहत्तर वर्ष बीत जाने पर भगवान का जन्म वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुंड ग्राम में सिद्धार्थ राजा के यहां हुआ।
- जो इस अवसर्पिणी कालमें पहला ही राजा, पहला ही त्यागी मुनि और पहला ही तीर्थंकर हुआ है, उस ऋषभदेव स्वामी की हम स्तुति करते है।
- यह अवसर्पिणी के चतुर्थ काल का समापन तथा पंचम काल का सन्धि काल था, जब कार्तिक शुक्ल एकम से नवीन संवत्सर का शुभारम्भ हो कर यह श्री वीर निर्वाण संवत के नाम से प्रचलित हुआ।
- यह अवसर्पिणी के चतुर्थ काल का समापन तथा पंचम काल का सन्धि काल था, जब कार्तिक शुक्ल एकम से नवीन संवत्सर का शुभारम्भ हो कर यह श्री वीर निर्वाण संवत के नाम से प्रचलित हुआ।
- वर्तमान में अवसर्पिणी काल होकर भी हुण्डावसर्पिणी का प्रभाव सर्वत्र एवं सभी द्रव्यों पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है अर्थात सभी विचित्रताओं सहित नए-नए दृश्य और संस्कृति व संस्कार के विपरीत धर्म की मर्यादाओं के प्रतिकूल परिणाम देखा जा रहा है।
- भगवान श्री अरिष्टनेमी अवसर्पिणी काल के बाईसवें तीर्थंकर हुए | इनसें पुर्व के इक्कीस तीर्थंकरों को प्रागैतिहासिककालीन महापुरुष माना जाता है | आधुनिक युग के अनेक इतिहास विज्ञों ने प्रभु अरिष्टनेमि को एक एतिहासिक महापुरुष के रुप में स्वीकार किया है |
- विषेष इतना कि पांच भरत क्षेत्र तथा पांच एरावत क्षेत्रों में तो काल चक्र परिवर्तन के कारण प्रत्येक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी काल में 24 ही तीर्थंकर होते हैं, जिनके पांच पांच कल्याणक भी सम्पन्न होते है, किंतु पांच विदेह क्षेत्रों में सदैव समानकाल रहने के कारण वहां कम से कम प्रत्येक विदेह में 4 तीर्थंकर तथा अधिक से अधिक 32 तीर्थंकर प्रत्येक विदेह क्षेत्र में विधमान हो सकते हैं।
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