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अष्टांग हृदय वाक्य

उच्चारण: [ asetaanega heridey ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • अष्टांग हृदय में पुरीषक्षय से उत्पन्न आयुर्वेद मतानुसार जो कलाएँ मानी गई हैं, उनमें एक पुरीषधरा कला भी है जो पुरीष को धारण करती है और इसका मुख्य कार्य अन्तः कोष्ठ में स्थित मल का विभाजन करना है ।।
  • ग्रन्थ-रचनाकार चरक संहिता-चरक सुश्रुत संहिता-सुश्रुत अष्टांग हृदय-वाग्भट्ट वंगसेन-वंगसेन माधव निदान-मधवाचार्य भाव प्रकाश-भाव मिश्र इन ग्रन्थों के अतिरिक्त वैद्य विनोद, वैद्य मनोत्सव, भैषज्य रत्नावली, वैद्य जीवन आदि अन्य वैद्यकीय ग्रन्थ हैं।
  • चरक संहिता ', ‘ सुश्रुत संहिता ' तथा ‘ वाग्भट्ट ' द्वारा लिखित ‘ अष्टांग हृदय ', इन तीनों प्राचीन पुस्तकों को सम्मिलित रूप से ‘ बृहत्-त्रयी ' के नाम से जाना जाता है और यह वर्तमान में आयुर्वेदिक विद्या का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकलन है.
  • ऐसा क्यों? क्या ये दवाएं वाकई प्रभावी नहीं होती? जब कोई आयुर्वेद के विश्वसनीय ग्रंथ ' चरक संहिता ', ' सुश्रुत संहिता ' और ' अष्टांग हृदय ' पढ़ता है तो जानकारी मिलती है कि इन सेक्स टॉनिकों को बनाते और सेवन करते समय हर...
  • आयुर्वेदिक ग्रंथों में चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट्ट के नाम उल्लिखित हैं, जैसे-महर्षि चरक द्वारा रचित ग्रंथ ‘ चरक संहिता ', सुश्रुत द्वारा निर्मित ग्रंथ ‘ सुश्रुत संहिता ' तथा वाग्भट्ट रचित ‘ अष्टांग हृदय ' होते हुए भी ‘ वाग्भट्ट संहिता ' के रूप में प्रसिद्ध है।
  • अष्टांग हृदय सूत्र के अनुसार ' न पीड़ियेदिन्द्रियाणि न चैतान्यतिलालयेत् ' अर्थात इन्द्रियों को न तो खुली छूट पट्टी दे कि वह भोग विलास में लिप्त हो जाए और न ही अपेक्षाकृत ज्यादा दमन ही करें और इसके लिए प्रेरणाप्रदान करने का स्रोत है मन क्योंकि इन्द्रियाँ अपना कार्य मन के आदेश पर ही करती हैं।
  • यद्यपि रोगी तथा रोग को देख-परखकर रोग की साध्या-साध्यता तथा आसन्न मृत्यु आदि के ज्ञान हेतु चरस संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं परन्तु रोगी या किसी भी व्यक्ति की आयु का निर्णय यथार्थ रूप में बिना ज्योतिष की सहायता के संभव नहीं है।
  • महर्षि चरक ने सूत्र स्थान के 11 वें अध्याय में तथा महर्षि वाग्भट ने अष्टांग हृदय संहिता के सूत्र स्थान के पहले अध्याय में इन महत्त्वपूर्ण मर्यादाओं का पालन करने के निर्देश चिकित्सकों को दिए हैं, उन उक्तियों के सार प्रस्तुत है-' रोग की प्रथम अवस्था में जब लक्षण प्रकट हुए हों तो रोग आसानी से ठीक हो सकता है, दूसरी अवस्था में चिकित्सा कर ही लेना चाहिए, तीसरी अवस्था में रोगी के जीवन के प्रति संदेह रहता है।
  • आयुर्वद का ज्ञान भारत के ऋषि मुनियों के वंशो से मौखिक रूप से आगे बढ़ता गया जब तक उसे पांच हजार वर्ष पूर्व एकत्रित करके उसका लेखन किया गया | आयुर्वेद पर सबसे पुराने ग्रन्थ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय हैं | यह ग्रंथ अंतरिक्ष तंत्र में पाये जाने वाले पाँच तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश, जो हमारे व्यतिगत तंत्र पर प्रभाव डालते हैं उसके बारे में बताते हैं | यह स्वस्थ और आनंदमय जीवन के लिए इन पाँच तत्वों को संतुलित रखने के महत्व को समझते हैं |
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