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अस्र की नमाज़ वाक्य

उच्चारण: [ aser ki nemaaj ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • आज अम्मी ने बेचारे को कैसी डाँट पिलायी, उसे ज़लील कहा, कमीना कहा, हरामज़ादा कहा, महज़ इसलिए कि वो पापा के दुमकटे कुत्ते को दूध दिये बगैर अस्र की नमाज़ पढ़ने मस्जिद चला गया था।
  • हम ने यह जान लिया कि अस्र की नमाज़ का वक़्त ज़ुहर की नमाज़ के वक़्त का अंत होने पर शुरू हो जाता है (अर्थात् हर चीज़ की छाया उस के बराबर होने पर)
  • और हर मनुष्य के स्वयं अपनी नमाज़ का ऐतिबार है, चुनाँचि जब वह अस्र की नमाज़ पढ़ ले तो उस पर (कोई अन्य नफ्ल) नमाज़ हराम हो जाती है यहाँ तक कि सूरज डूब जाये।
  • मस्ला न. 401) अगर इस्तेहाज़-ए-क़लीला या मुतवस्सेता सुबह की नमाज़ के बाद कसीरा में बदल जाये तो एक ग़ुस्ल ज़ोह्र व अस्र की नमाज़ से पहले और एक ग़ुस्ल मग़रिब व इशा की नमाज़ से पहले करना चाहिए।
  • आखिर में अस्र की नमाज़ के वक़्त जब इमाम हुसैन अल्लाह को सजदा कर रहे थे तब एक यज़ीदी को लगा की शायद यही सही मौका है हुसैन को मारने का और उसने धोखे से हुसैन को शहीद कर दिया।
  • फजर और अस्र की नमाज़ की पाबन्दी करने वाले व्यक्ति जन्नत में प्रवेश होंगे, प्रत्येक नमाज़ के बाद आयतल्कुर्सी पढ़ने वाले व्यक्ति जन्नत में प्रवेश होंगे, बहुत ज़्यादा नफली रोज़े रखने वाले व्यक्ति जन्नत में प्रवेश होंगे,
  • जुल्फिकार को याद आया कि अस्र की नमाज़ का वक्त हो चला था और ऐसा लगता था कि जो गली दिख रही थी उसमें मुसलमानों की खासी बस्ती थी और रमज़ान में रोजेदार अस्र की नमाज़ पढने बाहर सडक पर निकल आये थे।
  • जुल्फिकार को याद आया कि अस्र की नमाज़ का वक्त हो चला था और ऐसा लगता था कि जो गली दिख रही थी उसमें मुसलमानों की खासी बस्ती थी और रमज़ान में रोजेदार अस्र की नमाज़ पढने बाहर सडक पर निकल आये थे।
  • यदि उसे सलसुल बौल (मूत्र असंयम) कि शिकायत निरंतर है, वह उसके नमाज़ पढ़ने की हालत में भी बंद नही होता है, तो वह उसी वुज़ू से अस्र की नमाज़ पढ़ेगा, और उसके ऊपर वुज़ू को लौटाना अनिवार्य नहीं है।
  • और दिन के किनारों पर (7) (7) फ़ज्र और मग़रिब की नमाज़ें, इनको ताकीद के लिये दोहराया गया और कुछ मुफ़स्सिर “ डूबने से पहले ” से अस्र की नमाज़ और “ दिन के किनारों पर ” से ज़ोहर मुराद लेते हैं.
  • 1-एच्छिक समय: और वह अस्र की नमाज़ के प्रथम वक़्त से लेकर सूरज के पीला होने तक है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ” अस्र का वक़्त उस समय तक रहता है जब तक कि सूरज पीला न हो जाये।
  • तथा शरई तौर पर माज़ूर (क्षम्य) व्यक्ति जैसे बीमार और यात्री के लिए ज़ुहर और अस्र की नमाज़ को उन दोनों में से किसी एक के समय में, तथा मग्रिब और इशा को उन दोनों में से किसी एक के समय में एकत्र करके पढ़ना जायज़ है।
  • अम्माबाद-ज़ोहर की नमाज़ उस वक़्त तक अदा कर देना जब आफ़ताब का साया बकरियों के बाड़े की दीवार के बराबर हो जाए और अस्र की नमाज़ उस वक़्त तक पढ़ा देना जब आफ़ताब रौशन और सफ़ेद रहे और दिन में इतना वक़्त बाक़ी रह जाए जब मुसाफ़िर दो फ़रसख़ जा सकता हो।
  • बहुत से काम काज करने वाले ज़ुहर और अस्र की नमाज़ को रात तक विलंब कर देते हैं, यह कारण बयान करते हुए कि वे अपने काम में व्यस्त होते हैं, या उनके कपड़े गंदे (अपवित्र) होते हैं, या साफ सुथरे नहीं होते हैं, तो आप उन्हें क्या नसीहत करेंगे?
  • तो जनाबे ज़करिया ने इस्लामी अक़ाएद, सिद्धांत और उसकी शिक्षाओं को उनके सामने बयान कर दिया और वह उसी समय मुस्लमान हो गयीं, उन्होंने नमाज़ पढ़ना सीखी जब नमाज़े ज़ोहर का समय आया तो नमाज़े ज़ोहर अदा की फिर अस्र की नमाज़ अदा की, सूरज डूब जाने के बाद मग़रिब की नमाज़ पढ़ी और फिर इशा की नमाज़ अदा की।
  • फ-सुब्हानल्लाहि हीना तुम्सूना ” (अर्थात् तो अल्लाह की तस्बीह व पाकी बयान करो जब तुम शाम करो) मग़रिब और इशा की नमाज़, और “ व-हीना तुसबेहूना ” (यानी और जब तुम सुबह करो) फज्र की नमाज़, “ व-अशिय्यन ” (अर्थात् और तीसरे पहर को) अस्र की नमाज़, “ व-हीना तुज़हेरूना ” (अर्थात और जब तुम दोपहर करो) ज़ुहर की नमाज़।
  • 1-बुख़ारी (हदीस संख्याः 586) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 728) ने अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा: अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: ‘‘ अस्र की नमाज़ के बाद कोई नमाज़ नहीं यहाँ तक कि सूरज डूब जाए, और फज्र की नमाज़ के बाद कोई नमाज़ नहीं यहाँ तक कि सूरज निकल आए।
  • उनमें से कुछ ने कहा, इसके बाद एक और नमाज़ है जो मुसलमानों को अपने माँ बाप से ज़्यादा प्यारी है यानी अस्र की नमाज़, जब मुसलमान इस नमाज़ के लिये खड़े हो तो पूरी क़ुव्वत से हमला करके उनहे क़त्ल कर दो, उस वक़्त हज़रत जिब्रील हाज़िर हुए और उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया या रसूलल्लाह यह नमाज़े ख़ौफ़ है और अल्लाह तआला फ़रमाता है “ वइज़ा कुन्ता फ़ीहि म. ”
  • और मुसलमान चलने शुरू हुए और एक के बाद दूसरे हुज़ूर की ख़िदमत में पहुंचते रहे यहाँ तक कि कुछ लोग ईशा नमाज़ के बाद पहुंचे लेकिन उन्होंने उस वक़्त तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी क्योंकि हुज़ूर ने बनी क़ुरैज़ा में पहुंच कर अस्र की नमाज़ पढ़ने का हुक्म फ़रमाया था इसलिये उस रोज़ उन्होंने अस्र की नमाज़ ईशा के बाद पढ़ी और इसपर न अल्लाह तआला ने उनकी पकड़ फ़रमाई न रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.
  • और मुसलमान चलने शुरू हुए और एक के बाद दूसरे हुज़ूर की ख़िदमत में पहुंचते रहे यहाँ तक कि कुछ लोग ईशा नमाज़ के बाद पहुंचे लेकिन उन्होंने उस वक़्त तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी थी क्योंकि हुज़ूर ने बनी क़ुरैज़ा में पहुंच कर अस्र की नमाज़ पढ़ने का हुक्म फ़रमाया था इसलिये उस रोज़ उन्होंने अस्र की नमाज़ ईशा के बाद पढ़ी और इसपर न अल्लाह तआला ने उनकी पकड़ फ़रमाई न रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.
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