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आत्मज्योति वाक्य

उच्चारण: [ aatemjeyoti ]
"आत्मज्योति" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • मनःज्योति यानी मन ठीक है कि बेठीक, इसे देखने के लिए बुद्धि का प्रकाश चाहिए और बुद्धि के निर्णय सही हैं कि गलत, इसे देखने के लिए जरूरत है आत्मज्योति की।
  • इस प्रकार त्याग व्यष्टिजन्य स्वार्थ को तिरोहित कर, आत्मज्योति को तो प्रदीप्त करता ही है, परार्थ की वृत्ति का उन्मेष कर, सामाजिक समस्याओं का अहिंसात्मक समाधान भी प्रस्तुत करता है।
  • उपनिषद के वचनों की स्मृति होने से मुझे कोई संदेह नहीं रहा की मैं जो प्रकाश का दर्शन कर रहा हूँ वह हकीकत में कोई सामान्य ज्योति नहीं मगर आत्मज्योति ही है ।
  • जिसके प्राण हंस में स्थित हो जाते हैं, वह पद से मुक्त हो जाता है और जिसका आत्मज्योति का नील बिन्दु के दर्शन हो जाते हैं, वह रूप से मुक्त हो जाता है।
  • नेत्रों की ज्योति, सूर्य-चन्द्र की ज्योति, अग्नि और विद्युत की ज्योति तो कम ज्यादा हो जाती है लेकिन अंधकार में भी महाअंधकार को देखने वाली, दुःख और सुख दोनों ही को देखने वाली आत्मज्योति है।
  • अतः वैज्ञानिकों का पदार्थ-तत्त्व मात्र जड़ के अन्तर्गत ही आता है और आध्यात्मिकों का जीवात्मा जीवात्मा (स्वांस-प्रस्वांस तथा ध्यान द्वारा हंसो-सोsहं तथा ज्योति) वाली आध्यात्मिक साधना प्रणाली द्वारा आत्मज्योति मात्र चेतन के अन्तर्गत आता है।
  • नेत्रों की ज्योति, सूर्य-चन्द्र की ज्योति, अग्नि और विद्युत की ज्योति तो कम ज्यादा हो जाती है लेकिन अंधकार में भी महाअंधकार को देखने वाली, दुःख और सुख दोनों ही को देखने वाली आत्मज्योति है।
  • किसीके मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है की क्या आत्मज्योति का दर्शन जागृति में और वो भी अपने शरीर के बाहर हो सकता है? ' मैं इसके प्रत्युत्तर में ये कहूँगा की हाँ, एसा हो सकता है ।
  • १ ८८ ३ ईस्वी में दीपावली के दिन ही भारतीय संस्कृति के महान उन्नायक स्वतंत्रता के मंत्र के सर्वप्रथमगायक, आर्यसमाज के संस्थापक महर्षिदयानंद सरस्वती का जीवनदीप कोटि कोटि बुझे मानस-दीपों को आत्मज्योति देकर असमय ही संसार से विदा हो गया था ।
  • लोग समझते हैं कि हम दीन-हीन, तुच्छ और अशक्त हैं, पर जो साधक मनोविकारों का पर्दा हटाकर निर्मल आत्मज्योति के दर्शन करने में समर्थ होते हैं, वे जानते हैं कि सर्वशक्तिमान् ईश्वरीय ज्योति उनकी आत्मा में मौजूद है और वे परमात्मा के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।
  • उदयं स्वप्रकाशेन, गुरुशब्देन कथ्यते ॥ विद्यायें चाहे कितनी भी गूढ़ हों, साधनायें चाहे कितनी भी कठिन हों, और चाहे शिष्य कितना भी अज्ञानी क्यों न हो परन्तु यदि वह पूर्ण श्रद्धा के साथ सद्गुरु के बतलाये हुये गुरु मंत्र का भजन, सुमिरन, सेवा, पूजा, ध्यान करता है तो मन के अन्दर स्वतः आत्मज्योति प्रकाशित हो जाती है ।
  • पुनः ‘ आत्म ' (सः) रूप आत्मा और प्राण वायु के बीच आपसी घर्षण में एक तेज (ज्योति) उत्पन्न हुई जो आत्मज्योति अथवा दिव्य ज्योति (Devine Light) कहलायी । तत्पश्चात् ‘ वह ' (सः) ज्योति-मूर्त रूप (Form of Light) में परिवर्तित हो गयी, जो ज्योतिर्लिंग अथवा शिवलिंग कहलाया ।
  • ब्रह्मनिष्ठ परम पूज्य श्री गुरूजी का संपूर्ण जीवन इतना अधिक सादा और सरल है कि उनको देखकर किसीको यह विचार भी नही आता है कि इस शुभ्रवेश में एक महान ब्रह्मनिष्ठ संत रात दिन लोक-कल्याण में रत है उन्हीं के पावन सान्निध्य में रहकर जिन्होंने आत्मज्योति जलाई ऐसे ब्रह्मनिष्ठ पूज्यपाद श्री गुरूजी द्वारा वही कार्य इस प्रकार हो रहा है जैसे एक बीज विशाल वटवृक्ष के रूप में फूल फल रहा हो...
  • ब्रह्मनिष्ठ परम पूज्य श्री गुरूजी का संपूर्ण जीवन इतना अधिक सादा और सरल है कि उनको देखकर किसीको यह विचार भी नही आता है कि इस शुभ्रवेश में एक महान ब्रह्मनिष्ठ संत रात दिन लोक-कल्याण में रत है उन्हीं के पावन सान्निध्य में रहकर जिन्होंने आत्मज्योति जलाई ऐसे ब्रह्मनिष्ठ पूज्यपाद श्री गुरूजी द्वारा वही कार्य इस प्रकार प्रचार हो रहा है जैसे एक बीज विशाल वटवृक्ष के रूप में फूल फल रहा हो.
  • ब्रह्मनिष्ठ परम पूज्य श्री गुरूजी का संपूर्ण जीवन इतना अधिक सादा और सरल है कि उनको देखकर किसीको यह विचार भी नही आता है कि इस शुभ्रवेश में एक महान ब्रह्मनिष्ठ संत रात दिन लोक-कल्याण में रत है उन्हीं के पावन सान्निध्य में रहकर जिन्होंने आत्मज्योति जलाई ऐसे ब्रह्मनिष्ठ पूज्यपाद श्री गुरूजी द्वारा वही कार्य इस प्रकार विख्यात हो रहा है जैसे एक बीज विशाल वटवृक्ष के रूप में फूल फल रहा हो.....
  • ब्रह्मनिष्ठ परम पूज्य श्री गुरूजी का संपूर्ण जीवन इतना अधिक सादा और सरल है कि उनको देखकर किसीको यह विचार भी नही आता है कि इस शुभ्रवेश में एक महान ब्रह्मनिष्ठ संत रात दिन लोक-कल्याण में रत है उन्हीं के पावन सान्निध्य में रहकर जिन्होंने आत्मज्योति जलाई ऐसे ब्रह्मनिष्ठ पूज्यपाद श्री गुरूजी द्वारा वही कार्य इस प्रकार प्रचार हो रहा है जैसे एक बीज विशाल वटवृक्ष के रूप में फूल फल रहा हो.....
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