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आदि दोष वाक्य

उच्चारण: [ aadi dos ]
"आदि दोष" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • जैसे शरद ऋतु से परिपूर्ण दिशा का कुहरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही बुद्धि के लोभ, मोह आदि दोष शनैः शनैः अत्यन्त क्षीण हो जाते हैं।
  • उन्होंने कहा कि काम, क्रोध, लोभ, द्वेष, हिंसा, मतसर, अभिमान व ममत्व आदि दोष बड़े ही प्रबल हैं अत: इन सबका समूल नाश करने का प्रयत्न करो।
  • रामचन्द्रजी ने कहाः परमप्रेमास्पद आत्मतत्त्व की तिरोधान होने के कारण अंधकारपूर्ण रात्रिरूपी दुरन्त तृष्णा से इस चेतनात्मक गगन में जीव में अनेक तरह की राग आदि दोष स्वरूप उल्लुओं की पंक्तियाँ स्फुरने लगती हैं।।
  • अपनी जन्म पत्री मे कौन कौन से दोष है कौन कौन से कुयोग से है उन्हें तलाशता है पुर्वजन्मि के पितृशाप, सर्पदोष, भातृदोष ब्रम्हडदोष आदि दोष कोई उसकी कुंडली में है-कालसर्प योग।
  • ‘ जब भक्तका सम्पूर्ण स्त्री-पुरुषोंमें निरन्तर मेरा ही भाव हो जाता है अर्थात् उनमें मुझे ही देखता है, तब शीध्र ही उसके चित्तसे ईर्ष्या, दोषदृष्टि, तिरस्कार आदि दोष अहंकार-सहित सर्वथा दूर हो जाते हैं ।
  • सुख के सम्पादन के लिए श्रम, संग्रह, पराधीनता एवं जड़ता आदि दोष अपेक्षित हैं ; किन्तु अगाध, अनन्त, नित-नव रस के प्रादुर्भाव के लिए केवल विश्राम, स्वाधीनता तथा प्रेम की जागृति अपेक्षित है ।
  • तुलसी का पौधा वैद्य और वास्तु दोष निवारक प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह, रक्त विकार, वात, पित्त आदि दोष दूर होने लगते है मां तुलसी के समीप आसन लगा... शरीर पर तिल और उनका महत्व..
  • सुजाक, उपदंश या पित्त प्रकोप के कारण पीले रंग का पेशाब बार-बार और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में होना, आँखों में जलन, सिर में भारीपन, चक्कर आना, तन्द्रा व आलस्य बना रहना, पाचनशक्ति की कमी और चेहरे की निस्तेजता आदि दोष पूर करने में यह योग अव्यर्थ है।
  • सुजाक, उपदंश या पित्त प्रकोप के कारण पीले रंग का पेशाब बार-बार और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में होना, आँखों में जलन, सिर में भारीपन, चक्कर आना, तन्द्रा व आलस्य बना रहना, पाचनशक्ति की कमी और चेहरे की निस्तेजता आदि दोष पूर करने में यह योग अव्यर्थ है।
  • ऋण दोष वंश दोष आदि आदि दोष इसमें और आग में घी डालने का कम करते है स्त्री दोष वाणी दोष यदि ऐसे लक्षण है किसी व्यक्ति के साथ तो ये मान के चले कि वो परिवार पितृ दोष से प्रभावित है कुछ उपाय जो करने चाहिए
  • मुनिवर, यौवनावस्था में स्त्री, जुआ, कलह आदि व्यसनों को उत्पन्न करने वाले राग, लोभ आदि दोष-काम, चिन्ता आदि के वशीभूत चित्तवाला होने से काममय और चिन्तामय पुरुष को नष्ट कर डालते हैं और वे दोष यौवन द्वारा ही प्राप्त होते हैं।
  • मानसिक तनाव, अवसाद या आघात से उत्पन्न मानसिक दुर्बलता, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न निर्बलता, निद्रानाश, स्मरणशक्ति की कमी, मन में कुविचार और आशंका का भाव आना, उदासीनता, अरुचि, उच्चाटन और मलावरोध होना आदि दोष दूर करने के लिए इस योग का प्रयोग करना अति उत्तम है।
  • मानसिक तनाव, अवसाद या आघात से उत्पन्न मानसिक दुर्बलता, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न निर्बलता, निद्रानाश, स्मरणशक्ति की कमी, मन में कुविचार और आशंका का भाव आना, उदासीनता, अरुचि, उच्चाटन और मलावरोध होना आदि दोष दूर करने के लिए इस योग का प्रयोग करना अति उत्तम है।
  • प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह, रक्त विकार, वात, पित्त आदि दोष दूर होने लगते है मां तुलसी के समीप आसन लगा कर यदि कुछ समय हेतु प्रतिदिन बैठा जाये तो श्वास के रोग अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिलता है
  • तदुपरान्त जब जैसे क्षार में पकाने से वस्त्र आदि में लगे हुए मल आदि शिथिल हो जाते हैं वैसे ही आपके राग आदि दोष नष्ट हो जाय, परम तत्त्व का परिज्ञान हो जाय और मानसिक व्यथाएँ नष्ट हो जाय तब आपको निश्चय इस शुभ वासनासमूह का भी परित्याग कर देना चाहिए।।
  • उक्त सभी सिद्धांतों का समन्वय करते हहुए विश्वनाथ ने लिखा-' शब्द और अर्थ काव्य पुरुष का शरीर है, रस और भाव उसकी आत्मा, शूरता, दया, दाक्षिण्य अदि के सामान माधुर्य, ओज और प्रसाद इस काव्य पुरुष के गुण हैं और कर्णत्व, बधिरत्व, खन्जत्व आदि के सामान श्रुत कटुत्व, ग्राम्यत्व, आदि दोष हैं.
  • 5. शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर आगामी नित्य 9 दिनों तक पाठ करने मात्र से अष्ट सिद्धि और 9 निधियों की प्राप्ति होती है. 6. शुक्ल पक्ष की अष्टमी से अगले माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर्यंत लगातार एक माह पाठ करने से भूत-प्रेत आदि दोष समाप् त.श ्री दुर्गा सप्तशती के साप्ताहिक दिनों के अनुसार पाठ का फल 1.
  • अवश्य अवश्य, क्यूंकि अगर परमात्मा के हाथ में होता की कौन कैसा हो, तो वो सभी को साफ़ दिल वाला और नेक ही बनाता | भला यदि परमात्मा कोई चीज़ बनता है तो उसमे वो झूट, कपट, बेईमानी, चोरी,द्वेष, राग, निंदा आदि दोष क्यों छोड़ेगा | ये तो साफ़ है की क्यूंकि प्रकृति में सत, रज और तम गुण हैं इसी कारन जीवो में ये गुण हैं |
  • रीतिबंध्द काव्य में: अशलीलता, आश्रय्दाता की प्तशंस, अतीशय अलंक्रिति, चमत्कारर्प्रियता, रुदिवादिता, मन की सुश्म भावतरंग्गों को अभिव्यक़्त करने की अशमता, आदि दोष रीतीबंध्द कविता को जरोन्मुख बना देते हैं, पर रीतिमुक्त धारा के कवि मात्र कलात्मकता को ही साध्य ना मानकर मन की अक्रित्रिम, निश्कपत भावानुभव वणना को अपना साध्य मानते थे. रीतिकाल: १) कवि लोग पहले रस अथ्वा अलंकार के लक्शन बताते.
  • गौतम [376] ने व्यवस्था दी है कि कुत्तों, चाण्डालों एवं महापातकों के अपराधियों से देखा गया भोजन अपवित्र (अयोग्य) हो जाता है, इसलिए श्राद्ध कर्म कम घिरे हुए स्थल में किया जाना चाहिए ; या कर्ता को उस स्थल के चतुर्दिक तिल बिखेर देने चाहिए या कियी योग्य ब्राह्मण को, जो अपनी उपस्थिति से पंक्ति को पवित्र कर देता है, उस दोष (कुत्ता या चाण्डाल द्वारा देखे गये भोजन आदि दोष) को दूर करने के लिए शान्ति का सम्पादन करना चाहिए।
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