ईशानकोण वाक्य
उच्चारण: [ eeshaanekon ]
"ईशानकोण" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- उत्तर दिशा में राजरोग, पाण्डुरोग का गृह है, ईशानकोण में शिर के रोग है, अग्रिकोण में मूर्छारोग है, नैऋत्यकोण में अतिसार रोग, वायव्य कोण में शीतज्वर, दाहज्वर इस प्रकार अनेक व्याधिया रहती हैं।
- दीपावली के दिन या किसी भी शुभ दिन से यदि अपने घर के ईशानकोण में कमलासना पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ उक्त मंत्र से पूजन (
- दीपावली को अपने घर के ईशानकोण में कमलासन पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ यदि उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जाप किया जाए तो चंचला लक्ष्मी स्थिर होती है।
- दीपावली को अपने घर के ईशानकोण में कमलासन पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ यदि उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जाप किया जाए तो चंचला लक्ष्मी स्थिर होती है।
- ईशान कोण और उत्तर दिशा में ही जलस्रोत बनाया जाता है बोरिंग, कुंआ, हैंडपंप आदि यहीं लगाया जाता है क्योंकि सर्वप्रथम तो ईशानकोण व उत्तर-दिशा को जल तत्व की दिशा होती है तथा जल स्रोत होने से नीचे भी हो जायेगी।
- दीपावली के दिन या किसी भी शुभ दिन से यदि अपने घर के ईशानकोण में कमलासना पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जाप किया जाए, तो चंचला लक्ष्मी स्थिर होती है।
- प्रतिपदा और नवमी तिथि को योगिनी पूर्व दिशा में रहती है, तृतीया और एकादशी को अग्नि कोण में त्रयोदशी को और पंचमी को दक्षिण दिशा में चतुर्दशी और षष्ठी को पश्चिम दिशा में पूर्णिमा और सप्तमी को वायु कोण में द्वादसी और चतुर्थी को नैऋत्य कोण में,दसमी और द्वितीया को उत्तर दिशा में अष्टमी और अमावस्या को ईशानकोण में योगिनी का वास रहता है,वाम भाग में योगिनी सुखदायक,पीठ पीछे वांछित सिद्धि दायक,दाहिनी ओर धन नाशक और सम्मुख मौत देने वाली होती है.
- यदि शुक्र लग्न से ग्यारहवें या बारहवें स्थान में हो तो अग्निकोण में यात्रा करने से, मंगल दशम भाव में हो तो दक्षिण यात्रा करने से, राहु नवें और आठवें भाव में हो तो नार्सृत्य कोण की यात्रा से, शनि सप्तम भाव में हो तो पश्चिम यात्रा से, चन्द्रमा पाँचवे और छ्ठे भाव में हो तो वायुकोण की यात्रा से, बुध चतुर्थ भाव में हो तो उत्तर की यात्रा से, गुरू तीसरे और दूसरे भाव में हो तो ईशानकोण की यात्रा करने से ललाटगत होते है।
- प्रतिपदा और नवमी तिथि को योगिनी पूर्व दिशा में रहती है, तृतीया और एकादशी को अग्नि कोण में त्रयोदशी को और पंचमी को दक्षिण दिशा में चतुर्दशी और षष्ठी को पश्चिम दिशा में पूर्णिमा और सप्तमी को वायु कोण में द्वादसी और चतुर्थी को नैऋत्य कोण में, दसमी और द्वितीया को उत्तर दिशा में अष्टमी और अमावस्या को ईशानकोण में योगिनी का वास रहता है, वाम भाग में योगिनी सुखदायक, पीठ पीछे वांछित सिद्धि दायक, दाहिनी ओर धन नाशक और सम्मुख मौत देने वाली होती है.
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