उकठा रोग वाक्य
उच्चारण: [ ukethaa roga ]
उदाहरण वाक्य
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- खड़ी फसल पर प्रमुख उकठा रोग, मूल विगलन, ग्रीवा गलन, तना विगलन, एस्कोकाइटा, ब्लाइट आदि हैं।
- गुंलाबी उकठा रोग की पहचान इस रोग मे दाने पड़ने के बाद पौधे खेत मे कम नमी के कारण सूखे पड़ते है।
- जिस खेत में पौधे स्केलेरोटोनिया मूल विगलन या उकठा रोग से प्रभावितहों, उनमें यथा सम्भव, अगली बार सूरजमुखी की फसल नहीं लगनी चाहिए.
- जिस खेत मे उकठा रोग का प्रकोप अधिक हो उस खेत में ३-४ साल तक अरहर की फसल नही लेना चाहिये।
- बीजोपचार: मसूर की फसल को विभिन्न बीज जनित रोगों विशेषकर उकठा रोग से बचाने के लिये बीज को उपचारित करके बोना आवश्यक है।
- उकठा रोग की उग्रता को कम करने हेतु थायरम (3 ग्राम प्रति किलोग्रामे या थायरम 1.5 ग्राम + कार्बन्डाजिम 1.5 ग्राम का मिश्रण प्रति किलोग्राम) से बीजोपचार कर बोयें।
- इस समय क्षेत्र के किसान टमाटर की खेती पर काफी जोर दे रहे है लेकिन इधर टमाटर की फसल में गलन व उकठा रोग से किसानों को अपनी पूंजी डूबती नजर आ रही है।
- वैज्ञानिक ने बताया कि उकठा रोग एक फंगस फफूदी के कारण होता है जो भूमि मे पनपता है जब भूमि मे नमी और खाद अधिक होती है तो यह फफूदी तेजी से फैलती है।
- इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक या डाइनोकेप ४८ ई. सी. ६०० मी.ली. या कार्बेन्डाजिम ५०० मी.ली. दावा का ६००-८०० लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करना चाहिए | उकठा रोग की पहचान:
- ब-उकठा रोग हेतु बुवाई के समय सल्फर 50 कि 0 ग्रा 0 / है 0 की दर से खेत में डालने के साथ-साथ जिंक 0.5 प्रतिशत का पर्णीय छिड़काव करने से रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।
- उकठा रोग अपनायी जाने वाली प्रमुख क्रियायें: १. समय पर रोग प्रतिरोधी/रोग सहिष्णु प्रजातियों के प्रमाणित बीज की बुवाई करें जैसे चूर्णिल असिता रोग की प्रतिरोधी प्रजाति रचना, पन्त मटर-मालवीय मटर आदि बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिए जिससे रोग की उग्रता में कमी आती है २.
- एस्कोकाइटा ब्लाइटअपनाई जाने वाली प्रमुख क्रियाएं: १. गर्मियों में मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने से मृदा जनित रोगों का नियंत्रण करने में सहायता मिलती है २.२. जिस खेत में उकठा रोग अधिक लगता हो उसमे ३-४ वर्ष तक चने की फसल नही लेनी चाहिए
- जब इन पौधों में 4-5 पत्तियाँ और ऊँचाई 25 से. मी. हो जाये तो दो महीने बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए, प्रतिरोपण से पहले गमलों को धूप में रखना चाहिए, ज्यादा सिंचाई करने से सड़न और उकठा रोग लग जाता है।
- ट्राईकोडरमा पाउडर के या ४ ग्राम ट्राईकोडरमा पाउडर + १ ग्राम कार्बोक्सिन से शोधित कर लेना चाहिए | ४. उकठा रोग से बचाव के लिए देर से बुवाई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में करनी चाहिए | ५. समय पर रोग रोधी / सहिष्णु प्रजातियों के प्रम्नित बीज की बुवाई करनी चाहिए चने की उकठा मूल विगलन रोधी प्रजातियों जैसे अवरोधी, पूसा २ १ २, के.
- गन्ने की खेती वानस्पतिक सवर्धन द्वारा या प्रोपोगेटेड मेथड द्वारा की जाती है, जिसमे अधिकांश रोग बीज गन्ने द्वारा फैलतें हैं, गन्ने की विभिन्न प्रजातियों में लगने वाले प्रमुख रोग जो की निम्न है, काना रोग, कन्डुआ रोग, उकठा रोग, अगोले का सडन रोग, पर्णदाह रोग, पत्ती की लाल धरी, वर्णन रोग आदि हैं, इनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाए करने चाहिए-
- प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें (३) उकठा रोग:रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती है तथा बाद में पूरा पौधा सूख जाता है | इस रोग के बचाव के लिए दीर्घ अवधी का फसल चक्र अपनाएं |(४) बुकनी:इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है और बाद में पत्तियां सूख जाती हैं इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक ३ किग्रा./हे. की दर से छिड़काव करें |
- प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें (३) उकठा रोग: रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती है तथा बाद में पूरा पौधा सूख जाता है | इस रोग के बचाव के लिए दीर्घ अवधी का फसल चक्र अपनाएं | (४) बुकनी: इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है और बाद में पत्तियां सूख जाती हैं इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक ३ किग्रा.
- अमरूद की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण हमें किस प्रकार करना चाहिए? अमरूद में उकठा रोग तथा श्याम वर्ण, फल गलन या टहनी मार लगते है नियंत्रण के लिए उकठा रोग हेतु खेत साफ सुथरा रखना चाहिए अधिक पानी न लगे, कर्वानिक खादों का प्रयोग तथा ऐसे पेड़ो को उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए अन्य रोगो हेतु रोग ग्रस्त डालियों को काटकर 0.3 % का कापर आक्सीक्लोराईड के घोल का छिडकाव दो या तीन 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिएI
- अमरूद की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण हमें किस प्रकार करना चाहिए? अमरूद में उकठा रोग तथा श्याम वर्ण, फल गलन या टहनी मार लगते है नियंत्रण के लिए उकठा रोग हेतु खेत साफ सुथरा रखना चाहिए अधिक पानी न लगे, कर्वानिक खादों का प्रयोग तथा ऐसे पेड़ो को उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए अन्य रोगो हेतु रोग ग्रस्त डालियों को काटकर 0.3 % का कापर आक्सीक्लोराईड के घोल का छिडकाव दो या तीन 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिएI
- मसूर की फसल के रोग जैसे की उकठा रोग, गेरुई रोग, ग्रीवा गलन, मूल गलन प्रमुख हैI इस रोग से फसल को बचाने के लिए बुवाई से पूर्व बीज को थीरम नामक रसायन 2.5 ग्राम मात्रा या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा से प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिएI फसल को मृदा जनित रोगों जैसे ग्रीवा गलन मूल गलन आदि के बचाव के लिए भूमि में 5 किलो ट्राईकोडरमा पाउडर को गोबर की खाद में मिलाकर मिट्टी में मिला देनी चाहिएI जिससे की रोगों का प्रकोप न हो सकेI
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