ओमप्रकाश बाल्मीकि वाक्य
उच्चारण: [ omeprekaash baalemiki ]
उदाहरण वाक्य
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- इसी की प्रेरणा स्वरूप 1995 में मोहदनदास नैमिशराय की आत्मकथा ‘अपने-अपने पिंजरे ' दूसरी आत्मकथा ओमप्रकाश बाल्मीकि की ‘जूठन' 1996 में प्रकाशित हुई।”8 मोहनदास नैमिशराय और ओमप्रकाश बाल्मीकि की आत्मकथाएं इनमें प्रमुख हैं।
- इसी की प्रेरणा स्वरूप 1995 में मोहदनदास नैमिशराय की आत्मकथा ‘अपने-अपने पिंजरे ' दूसरी आत्मकथा ओमप्रकाश बाल्मीकि की ‘जूठन' 1996 में प्रकाशित हुई।”8 मोहनदास नैमिशराय और ओमप्रकाश बाल्मीकि की आत्मकथाएं इनमें प्रमुख हैं।
- लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रदेष अध्यक्ष पशुपति कुमार ने हिन्दी साहित्य में अप्रतिन योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाज गये ओमप्रकाश बाल्मीकि के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
- लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रदेष अध्यक्ष पशुपति कुमार ने हिन्दी साहित्य में अप्रतिन योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाज गये ओमप्रकाश बाल्मीकि के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
- (ओमप्रकाश बाल्मीकि) 4. आयोजकों को तुलसी के लोकधर्म में भी वर्णाक्रम की प्रतिध्वनि सुनाई दी (महेश कटारे) 5. नये लेखक के लिये जम पाना एक बड़ी चुनौती है ।
- रामविलास शर्मा, नामवरसिंह, ओमप्रकाश बाल्मीकि, मन्नू भंडारी आदि की आत्मकथाओं में व्यक्त तथ्य इस बात को पुष्ट करते हैं कि इन लेखकों के जीवन में व्यक्तिवादी दबाब इनको भविष्य की ओर ठेलते रहे हैं।
- हिन्दी में प्रमुख आत्मकथाएं हैं-1. ओमप्रकाश बाल्मीकि ‘‘जूठन”, 2. मोहनदास नैमिशराय की ‘‘अपने-अपने पिंजरे”, 3. कौशल्या वैसंत्री की ‘‘दोहरा अभिशाप”, इन रचनाओं में जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं-जातिवाद, रोटी कपड़ा और मकान का व्यापक उल्लेख हुआ है।
- इस परिप्रेक्ष्य में ओमप्रकाश बाल्मीकि की टिप्पणी सटीक है-‘‘युगों-युगों से प्रताड़ित, शोषित, साहित्यिक, संस्कृति से वंचित मानव जब स्वयं को साहित्य के साथ जोड़ता है तो दलित साहित्य उसकी निजता को पहचानने की अभिव्यक्ति बन जाता है।
- को एक महत्वपूर्ण शुरूआत बताया तो सुप्रसिद्ध दलित कथाकार ओमप्रकाश बाल्मीकि ने महिलाओं की लड़ाई को रामायण के उस प्रसंग से जोड़ा, जहाँ राम ने सीता से कहा कि मैंने यह युद्ध तुम्हारे लिए नहीं अपने कुल की मर्यादा के लिए लड़ा था।
- ओमप्रकाश बाल्मीकि, नामदेव धसाल, दया पवांर, मनोरंजन व्यापारी, बेबी हालदार, कंवल भारती की संघर्ष यात्रा में कहीं न कहीं हिस्सेदार हूं, तो जाहिर है कि हमारी लाश से चील कुत्तों की दावत देने की तैयारी भी होगी।
- (साथी रतिनाथ योगेश्वर की टिप्पणी के साथ वाल्मीकि जी की शुरूआती दौर की कविता के साथ लिखो यहां वहां की विनम्र श्रद्धाँजलि) बहुत ही प्यारे इन्सान बड़े भाई ओमप्रकाश बाल्मीकि का वो स्नेह अब कहाँ... कैसे... किससे मिलेगा-गहरे सदमें में हूँ...
- साहित्यकार सिद्धेश्वर सिंह ने ‘ बोल के लब आजाद हैं तेरे … ' को एक महत्वपूर्ण शुरूआत बताया तो सुप्रसिद्ध दलित कथाकार ओमप्रकाश बाल्मीकि ने महिलाओं की लड़ाई को रामायण के उस प्रसंग से जोड़ा, जहाँ राम ने सीता से कहा कि मैंने यह युद्ध तुम्हारे लिए नहीं अपने कुल की मर्यादा के लिए लड़ा था।
- ‘ हंस ' के जरिए उन्होंने ‘ दलित विमर्श ' और ‘ स्त्री विमर्श ' की न सिर्फ शुरुआत भर की, बल्कि ओमप्रकाश बाल्मीकि, मोहनदास नैमिषराय, धर्मवीर, श्योराज सिंह बेचैन और मैत्रेयी पुष्पा को हिन्दी साहित्य के इतिहास पर प्रतिष्ठित कर दिया और मजे की बात यह कि युग प्रवर्तक होने का कोई दम्भ नहीं।
- हिन्दी साहित्य के परम्परावादी समीक्षकों की समझ में दलित चिंतकों / दलित लेखकों तथा दलितों का दर्द नहीं आ सकता, क्योंकि जिस लदोई (मैली) को सवर्णों के लोग जानवरों को खिलाते थे, वही लदोई श्यौराजसिंह बेचैन जैसे दलितों का भोजन हैं और जिस जूठन को पशु और कुत्ते खाते उसी जूठन को ओमप्रकाश बाल्मीकि जैसे कितने दलित खाकर आज यहाँ तक पहुँचे हैं।
- शरण कुमार लिम्बाले की पत्नी यह प्रश्न करती हैं ‘‘कि यह सब लिखने से क्या फायदा? तुम क्यों लिखते हो? कौन अपनाएगा हमारे बच्चों को? या ओमप्रकाश बाल्मीकि की पत्नी उनके ‘सरनेम' को लेकर कहती हैं ‘कि हमारे कोई बच्चा होता तो मैं इनका सरनेम जरूर बदलवा देती।” जब ये समस्या इतनी गम्भीर है तब इस पर सोचने की जरूरत है? लिम्बाले जी कहते हैं ‘‘फिर भी मैं लिखता हूँ, यह सोचकर कि जो जीवन मैंने जिया वह सिर्फ मेरा नहीं है।
- जिनमें बिहारीलाल हरित, मोहनदास नैमिशराय, कंवल भारती, डॉ. सोहन पाल सुमनाक्षर, डॉ. सुखबीर सिंह, डॉ. धर्मवीर, ओमप्रकाश बाल्मीकि, डॉ. एम. सिंह, डॉ. कुसुमलता मेघवाल, एन. आर. सागर, डॉ. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी, लालचन्द्र राही, जयप्रकाश कर्दम, डॉ. दयानन्द बटोही, डॉ. श्यौराज सिंह ' बेचैन ', लक्ष्मी नारायण सुधाकर, डॉ. कुसुम वियोगी, विपिन बिहारी, सूरजपाल चौहान, हरिकिशन संतोषी व सुशीला टाकभौरे आदि के नाम आते हैं ।
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