कर्मणि वाक्य
उच्चारण: [ kermeni ]
"कर्मणि" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- हमारा अधिकार केवल कर्म पर ही है-‘ कर्मणि एव अधिकरस्ते ' ।
- उदाहरण पर भी वही आपत्ति हो सकती है जो ' कर्मणि कुशल:' के संबंध में की गई
- कर्मणि प्रयोग-जब क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुरूप हो तो वह ‘
- 2. कर्मणि प्रयोग-जब क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुरूप हो तो वह कर्मणि प्रयोग कहलाता है।
- ताुत्कम् कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशवः-फिर युद्ध जैसे घोर कर्म में आप मुझे क्यों नियोजित कर रहे हैं?
- अध्याय 12 2. कर्मणि प्रयोग-जब क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुरूप हो तो वह ‘कर्मणि प्रयोग' कहलाता है।
- असल में गीता का श्लोक “ कर्मणि + अधिकार + असते मा फलेषु कदाचन ” का गलत अर्थ निकाल जाता है.
- इसमें पाणिनि महर्षिजी के ‘ तस्यभावस्त्वतलौ ' (5 । 1 । 119) गुणवचनब्राह्मणादिभ्य: कर्मणि च ' (5 ।
- पित्रये कर्मणि तु प्राप्ते परीक्षेत प्रयत्नत: ॥ 149 ॥ चिकित्सकान्देवलकान् मांसविक्रयिणस्तथा॥ 152 ॥ भृतकाधयापको यश्च भृतकाध्यायपितस्तथा॥ 156 ॥ कुशीलवऽवकीर्णो च वृषलीपतिरेवच।
- इनमें क्रिया का रूप कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुरूप बदला है, अतः यहाँ ‘ कर्मणि प्रयोग ' है।
- ' कर्मणि ' के आगे जो ' एव ' शब्द है वही डाँकने की मनाही करता है, हमें डाँकने से रोकता है।
- ' सुवति कर्मणि लोकं प्रेरयति' अर्थात् जो (उदय मात्र से) संपूर्ण विश्व को अपने-अपने कर्म में प्रवृत्त करते हैं, वह आदित्य ही हैं।
- आप आयति इति इत्यादि उत् उद उभय उम कपास कय कर्मणि कि की प कृ के को गत गति गती 1० गया गर्त
- उस श्लोक के पहले चरण के तीन शब्दों ' कर्मणि, एव, अधिकार: ' में ' एव ' शब्द कुछ विचित्र है।
- भगवान वासुदेव ने गीता में कहा है, '' योगस् थ: कुरू कर्मणि '' यानि सामने जो कर्म है उसी में चित् त लगाओ।
- अवैद्य्त्वाद भावः कर्मणि स्वात ”-(६ / १ / ३ ७)-विद्या का सार्थक भाव न होने से व्यक्ति शूद्र होता है।
- मीमांसा दर्शन में ' अथातो धर्म जिज्ञासा' इत्यादि स्थल में कुमारिल भट्ट तथा 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' में शकंराचार्य ने महाभाष्याकार के पक्ष को लेकर कर्मणि षष्ठी समास माना है।
- नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥ पार्थ! मुझे कुछ भी करने का जग में कोई न कारण है फिर भी कर्म किया करता हूँ,यह मेरा संधारण है।।22।।
- जहाँ तक किसी के कर्मयोगी होने के लिये व्यव्स्था योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बतायी है “........ मा कर्मफल हेतु भूर्माते सण्ड्गोसत्व कर्मणि ” यह इस प्रसंग से संगतता नही रखती.
- मीमांसा दर्शन में ' अथातो धर्म जिज्ञासा ' इत्यादि स्थल में कुमारिल भट्ट तथा ' अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ' में शकंराचार्य ने महाभाष्याकार के पक्ष को लेकर कर्मणि षष्ठी समास माना है।
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