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कविता के नये प्रतिमान वाक्य

उच्चारण: [ kevitaa k ney pertimaan ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • हाँ, कहीं-कहीं वर्तनी की अशुद्धियाँ रह गयी हैं जिसे ठीक किया जाना चाहिये।-सुशील कुमार ([email protected]) इस लिंक को भी क्लिक कर कृपया पढ़े-काव्य-वर्जनाओं के विरूद्ध कविता के नये प्रतिमान
  • मैंने ' कविता के नये प्रतिमान ' लिखा तो नेमिजी ने ही आलोचना नहीं की, बल्कि कई मार्क्सवादियों ने भी कहा कि ' नयी आलोचना ' के प्रभाव में मैं रूपवादी हो रहा हूँ।
  • पर उसकी चिंता किये बिना वह निरंतर काव्य-वर्जनाओं के विरुद्ध कविता के नये प्रतिमान की तलाश में तल्लीन रही हैं।...और अब उनकी कृतियाँ न मात्र वैश्विक साहित्य से जुड़ रही हैं बल्कि भारत से भी बाहर उनकी अभिनव पहचान बन रही हैं।
  • हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, छायावाद, आधुनिक साहित्य की प्रवितियां, बकलम खुद, कविता के नये प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद-विवाद संवाद आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
  • नामवर सिंह जैसे नामचीन आलोचकों ने कविता के नये प्रतिमान में भी पाश्चात्य शैली की कविता का अनुसमर्थन कर तत्कालीन भारतीय चित्त के श्रेष्ठ कवियों यथा त्रिलोचन, नागार्जुन जैसे कवियों की अपेक्षा रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा जैसे मँझोले कवियों की काव्य-व्यंजना को पाठकों के समक्ष प्रभावशाली ढंग से परोसा।
  • नामवर सिंह जैसे नामचीन आलोचकों ने कविता के नये प्रतिमान में भी पाश्चात्य शैली की कविता का अनुसमर्थन कर तत्कालीन भारतीय चित्त के श्रेष्ठ कवियों यथा त्रिलोचन, नागार्जुन जैसे कवियों की अपेक्षा रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा जैसे मँझोले कवियों की काव्य-व्यंजना को पाठकों के समक्ष प्रभावशाली ढंग से परोसा।
  • यदि वह अज्ञेय, रघुवीर सहाय, विजयदेव नारायण साही, श्रीकांत वर्मा, कुँवर नारायण, केदारनाथ सिंह आदि कवियों तथा ‘ कविता के नये प्रतिमान ' रचने वाले नामवर सिंह और नवलकिशोर नवल व अशोक वाजपेयी जैसे आलोचकों से सहमति नहीं रखते हैं तो उसका कारण उनकी जीवन चिंता ही है।
  • बेशक मुक्तिबोध के समय में और उसके आसपास स्वयं मुक्तिबोध, अज्ञेय और विजयदेवनारायण साही सरीखे अनेक दिग्गज रचनाकारों-चिंतकों के विशद आलोचनात्मक और वैचारिक अवदान की बदौलत कविता पर बहस का जो समृद्ध वातावरण बना था (उसकी चरम उपलब्धि के तौर पर 1968 में प्रकाशित नामवर सिंह की आलोचना-कृति ` कविता के नये प्रतिमान ' को हम देख सकते हैं।
  • इसी क्रम में सातवें, आठवें और नौवें दशक में ‘ कहानी नयी कहानी ', ‘ कविता के नये प्रतिमान ', ‘ दूसरी परम्परा की खोज ' और ‘ वाद विवाद संवाद ' जैसी कृतियों के माध्यम से उन् होंने समकालीन साहित्य में ऐसी बहस का सूत्रपात किया, जिसकी अनुगूंज साहित्यिक हलकों में दूर तक सुनी गई.
  • नामवर को समझने के लिये नामवर होना होगा, उनकी बुराई करने वाले उनकी बातो का विस्तृत अर्थ भी समझ नही पाते, “ उन्होने ही कहा है जब आपके आलोचक बढने लगे तब समझे कि आप सही राह पर है ” कविता के नये प्रतिमान और कहानी नयी कहानी जैसी किताबो ने कितनो को कवि कहानीकार बना दिया, हमे गर्व है बाऊजी आप पर
  • ) अब अगले निर्णायक नामवर सिंह, जिन्होंने ' कविता के नये प्रतिमान ' जैसी आलोचना की पुस्तक लिखी, उनके बारे में खरे जी की ' साहसिक '' वस्तुपरक ' और ' बेलाग ' टिप्पणी देखिये: '' नामवर सिंह का असर हिंदी की विस्तीर्ण पतनोन्मुख दुनिया, एक दयनीय लेखक संघ (इशारा प्रगतिशील लेखक संघ की ओर है) और हाशिये की राजनीतिक राजनीति पर है...
  • उन्होंने कई प्रमुख आलोचनात्मक कृतियों की रचना की है-‘ आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां ', ‘ छायावाद ', ‘ इतिहास और आलोचना ', ‘ कहानीः नई कहानी ', ‘ कविता के नये प्रतिमान ', ‘ दूसरी परंपरा की खोज ' और ‘ वाद-विवाद संवाद ', ‘ कविता के नए प्रतिमान ' पर उन्हें 1971 का साहित्य अकादेमी का पुरस्कार प्रदान किया गया. ‘
  • प्रगति शी ल-प्रवर डा. रामविलास श र्मा अंत तक मुक्तिबोध की मघ्यवर्गीय व्याधियों की ओर इ शा रा करते रह गये ; लेकिन ' इतिहास और आलोचना ' वाले दूसरे रथी डा. नामवर सिंह ने 1968 में ही ' कविता के नये प्रतिमान ' में मुक्तिबोध का लोहा मानते हुए कहा '' अपनी आलोचनात्मक क्षमता के द्वारा मुक्तिबोध ने प्रमाणित कर दिया कि कोई भी चीज तभी स्प ष् ट होती है जब कम-से-कम एक ईमानदार व्यक्ति मौजूद हो।
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