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क़िब्ला वाक्य

उच्चारण: [ keibelaa ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • मस्जिद ए अक़्सा में दाख़िला और इमकानी शरपसंदी को रोकने कल मंगल के दिन भारी तादाद में मस्जिद ए अक़्सा का रुख करें ताकि क़िब्ला अव्वल में यहूदी ख़वातीन का दाख़िला रोका जा सके ।
  • आज अल-क़ूदस इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन की जानिब से आज जारी कर्दा एक बयान में शेख क़रज़ावी ने कहा कि मस्जिद ए अक़्सा मुस्लमानों का क़िब्ला ऑइल है और अगर यहूदी मस्जिद पर हमले करें तो मुस्लमान ख़ामोश नहीं बैठ सकते ।
  • -वे मानते हैं कि “ क़ादियान ” नगर, मदीना मुनव्वरा और मक्कह मुकर्रमा के समान है, बल्कि उन दोनों से श्रेष्ठ है और उसकी धरती “ हरम ” है और वही उनका क़िब्ला है और उसी की तरफ उनका हज्ज है।
  • इसमें कोई शक नहीं कि मक्का और ग्रामीण इलाक़ों में मुसलमानों की एक संख्या बैतुल मक़दिस (यरूशलेम) की ओर मुँह करके नमाज़ पढ़ती रही यहाँ तक कि उन्हें क़िब्ला के निरस्त होने की सूचना पहुँची और उन्हें नमाज़ों के दोहराने का आदेश नहीं दिया गया।
  • हज़रत अमीर ख़ुसरो पास में ही खड़े थे, उन्हों ने अप्ने गुरु की ओर सकेत कर के तत्काल इस शेर को दूसरा चरण कह कर पूरा कर दिया-मन क़िब्ला रास्त करदम बर सिम्ते-कज-कुलाहे अर्थात मै अपना पूज्य स्थल तिर्छी टोपी वाले की ओर सीधा करता हूं।
  • हज़रत अमीर ख़ुसरो पास में ही खड़े थे, उन्हों ने अप्ने गुरु की ओर सकेत कर के तत्काल इस शेर को दूसरा चरण कह कर पूरा कर दिया-मन क़िब्ला रास्त करदम बर सिम्ते-कज-कुलाहे अर्थात मै अपना पूज्य स्थल तिर्छी टोपी वाले की ओर सीधा करता हूं।
  • (3) यदि बैठ कर नमाज़ पढ़ने की शक्ति नहीं हो तो दायें करवट लेट कर क़िब्ला की ओर रुख कर के पढ़े, यदि क़िब्ला की ओर रुख करना असंभव हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसकी नमाज़ सही होगी और उसे नमाज़ दोहराना नही होगा।
  • (3) यदि बैठ कर नमाज़ पढ़ने की शक्ति नहीं हो तो दायें करवट लेट कर क़िब्ला की ओर रुख कर के पढ़े, यदि क़िब्ला की ओर रुख करना असंभव हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसकी नमाज़ सही होगी और उसे नमाज़ दोहराना नही होगा।
  • (4) यदि दायें करवट लेट कर पढ़ने की शक्ति न हो तो चित लेट कर क़िब्ला की ओर दोनों पैर करके पढ़े और उत्तम है कि अपने सर को थोड़ा क़िब्ला की ओर करे यदि शक्ति न हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसे नमाज़ दोहराना नही है।
  • (4) यदि दायें करवट लेट कर पढ़ने की शक्ति न हो तो चित लेट कर क़िब्ला की ओर दोनों पैर करके पढ़े और उत्तम है कि अपने सर को थोड़ा क़िब्ला की ओर करे यदि शक्ति न हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसे नमाज़ दोहराना नही है।
  • तथा हाफिज़ ज़हबी रहिमहुल्लाह कहते हैं: ” जब ईसाईयों का एक त्योहार है, और यहूदियों का भी एक त्योहार है, जो उन्हीं लोगों के साथ विशिष्ट है, इसलिए कोई मुसलमान उस में उन का साझी नहीं बनेगा जिस तरह कि वह उन के धर्म शास्त्र और उन के क़िब्ला में साझी नहीं होता है।
  • अल्लाह तआला ने मुसलमानों के लिए एक क़िब्ला नियुक्त कर दिया है जिसकी ओर वे अपनी नमाज़ों और प्रार्थनाओं में चेहरा करते हैं चाहे वे कहीं भी हों, और वह मक्का मुकर्रमा में अल्लाह का प्राचीन घर है: ” आप अपना मुँह मिस्जदे हराम की तरफ फेर लें और आप जहाँ कहीं भी हों आप अपना मुँह उसी ओर फेरा करें।
  • इसी प्रकार दुआ के शिष्टाचार में से जो कि अनिवार्य नहीं हैं: क़िब्ला (काबा) की ओर मुँह करना, पवित्रता की हालत में दुआ करना, दुआ का आरंभ अल्लाह सर्वशक्तिमान की प्रशंसा व स्तुति और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद से करना है, तथा दुआ की हालत में दोनों हाथों को उठाना भी धर्म संगत है।
  • -इसी प्रकार उस आदमी से भी यह हुक्म समाप्त हो जाता है जो किसी चौपाये या अन्य वाहन पर सवारी की हालत में नफ्ल या वित्र नमाज़ पढ़ रहा हो, जबकि ऐसे आदमी के लिए मुसतहब (बेहतर) यह है कि यदि संभव हो तो तकबीरतुल एहराम कहते समय अपना चेहरा क़िब्ला (काबा) की ओर करे, फिर उस सवारी के साथ मुड़ता रहे चाहे जिधर भी उस का रुख हो जाये।
  • फिर नमाज़ के बाद ज़िक्र (जप), दुआ और अल्लाह सर्वशक्तिमान से रोने गिड़गिड़ाने (विनती करने) के लिए फारिग हो जाए और उसे जो पसंद हो अपने दोनों हाथों को उठाकर क़िब्ला की ओर मुँह करके दुआ करे यद्यपि अरफात की पहाड़ी उसके पीछे हो क्योंकि सुन्नत क़िब्ला की ओर मुँह करना है पहाड़ी की ओर नहीं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पहाड़ी के पास ठहरे थे और फरमाया था: “ मैं यहाँ ठहरा हूँ और पूरा अरफह ठहरने की जगह है।
  • फिर नमाज़ के बाद ज़िक्र (जप), दुआ और अल्लाह सर्वशक्तिमान से रोने गिड़गिड़ाने (विनती करने) के लिए फारिग हो जाए और उसे जो पसंद हो अपने दोनों हाथों को उठाकर क़िब्ला की ओर मुँह करके दुआ करे यद्यपि अरफात की पहाड़ी उसके पीछे हो क्योंकि सुन्नत क़िब्ला की ओर मुँह करना है पहाड़ी की ओर नहीं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पहाड़ी के पास ठहरे थे और फरमाया था: “ मैं यहाँ ठहरा हूँ और पूरा अरफह ठहरने की जगह है।
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