काव्य लक्षण वाक्य
उच्चारण: [ kaavey leksen ]
उदाहरण वाक्य
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- उन्होंने अपने ग्रंथ “काव्यालंकार” में काव्य लक्षण की चर्चा करते हुए कहा है “शब्दार्थौ सहितौ काव्यम”।
- आदर्निर गुरुजी, आज की ककशा मे ह्म ने काव्य लक्षण पर अधिक जान्करी प्राप्त की.
- इस प्रकार लांजाइनस का काव्य लक्षण बनता है-उदात्त काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है।
- प्रथम परिच्छेद में काव्य प्रयोजन, लक्षण आदि प्रस्तुत करते हुए ग्रंथकार ने मंमट के काव्य लक्षण “तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुन:
- आज काव्य लक्षण संबंधी मूल विचारों को समेटा गया + काव्य हेतु के संदर्भ में कुछ प्रारंभिक चर्चा की गई.
- हिंदी की चिंतन परंपरा में काव्य लक्षण भाग-5 प्रगतिवाद काल काव्य चिंतन को प्रगतिवादियों ने नए ढंग से उठाया।
- आज काव्य लक्षण संबंधी मूल विचारों को समेटा गया + काव्य हेतु के संदर्भ में कुछ प्रारंभिक चर्चा की गई.
- हां यह स्पष्ट था कि ये सभी भामह और मम्मट के काव्य लक्षण को थोड़े बहुत फेर-बदल के साथ प्रस्तुत करते रहे।
- परंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह कि काव्य लक्षण अथवा किसी भी प्रश्न का उत्तर देते हुए, आप अपनी आलोचनात्मक शक्ति का प्रदर्शन करें.
- क्वापि” का बड़े संबंभ के साथ खंडन किया है और स्वरचित लक्षण वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम् को ही शुद्धतम काव्य लक्षण प्रतिपादित किया है।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पंडितराज के अनुसार काव्य लक्षण “चमत्कारी आह्लाद् से पूर्ण रमणीय अर्थों के प्रतिपादक शब्द काव्य हैं।
- अरस्तु ने भी काव्य की परिभाषा नहीं की, किन्तु जो विचार व्यक्त किए उसके आधार पर काव्य लक्षण का निर्धारण किया जा सकता है।
- परंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह कि काव्य लक्षण अथवा किसी भी प्रश्न का उत्तर देते हुए, आप अपनी आलोचनात्मक शक्ति का प्रदर्शन करें.
- इसलिए हम कह सकते हैं कि आज भी पंडितराज का काव्य लक्षण नकारने की चीज़ नहीं है, नए युग के संदर्भ में विचार करने की चीज़ है।
- केशव मिश्र के अलंकारशेखर से व्यक्त होता है कि साहित्यदर्पण का यह काव्य लक्षण आचार्य शौद्धोदनि के “काव्यं रसादिमद् वाक्यम् श्रुर्त सुखविशेषकृत्” का परिमार्जित एवं संक्षिप्त रूप है।
- साहित्य दर्पण से पूर्ववर्ती ग्रंथों में कथित काव्य लक्षण क्रमश: विस्तृत होते गए हैं और चंद्रालोक तक आते-आते उनका विस्तार अत्यधिक हो गया है, जो इस क्रम से द्रष्टव्य है-
- केशव मिश्र के अलंकारशेखर से व्यक्त होता है कि साहित्यदर्पण का यह काव्य लक्षण आचार्य शौद्धोदनि के “ काव्यं रसादिमद् वाक्यम् श्रुर्त सुखविशेषकृत् ” का परिमार्जित एवं संक्षिप्त रूप है।
- साहित्य दर्पण से पूर्ववर्ती ग्रंथों में कथित काव्य लक्षण क्रमश: विस्तृत होते गए हैं और चंद्रालोक तक आते-आते उनका विस्तार अत्यधिक हो गया है, जो इस क्रम से द्रष्टव्य है-
- काव्य लक्षण को उन्होंने पारिभाषित करते हुए कहा, “जिस वाक्य समूह में अलंकार स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हों तथा जो गुणों से युक्त और दोषों से मुक्त हो उसे काव्य कहते हैं।”
- इस प्रकार जब हम काव्य लक्षण परम्परा की चर्चाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो पाते हैं कि या तो काव्यार्थ शब्द में है या अर्थ में है या फिर दोनों में है।
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