कुंतक वाक्य
उच्चारण: [ kunetk ]
"कुंतक" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि कुंतक ने अपने सिद्धांत में विषय वस्तु का निषेध किया है।
- भारतीय काव्यशास्त्र में कुंतक ने वक्रोक्ति सिद्वांत की स्थापना से पूर्व स्पष्ट किया कि कवि का कर्म काव्य है।
- आचार्य कुंतक ने कवि-कर्म कुशलता की जो बात की है, वह इन दोनों प्रक्रियाओं के साथ सम्पृक्त हैं।
- लेकिन कुंतक, महिमभट्ट, क्षेमेन्द्र आदि आचार्यों के अनुसार कारिका भाग और वृत्ति भाग दोनों के प्रणेता आचार्य आनन्दवर्धन ही हैं।
- लेकिन कुंतक, महिमभट्ट, क्षेमेन्द्र आदि आचार्यों के अनुसार कारिका भाग और वृत्ति भाग दोनों के प्रणेता आचार्य आनन्दवर्धन ही हैं।
- वक्रोक्ति सिद्धांत की प्रतिष्ठा तथा प्रतिपादन का श्रेय कुंतक को अवश्य जाता है, पर इसकी परंपरा काफी प्राचीन है।
- कुंतक का सर्वाधिक आग्रह कविकौशल या कविव्यापार पर है अर्थात् इनकी दृष्टि में काव्य कवि के प्रतिभाव्यापार का सद्य: प्रसूत फल हैं।
- परंतु कुंतक ने रस को वक्रोक्ति का प्राण रस मानकर कल्पना के साथ भावना के महत्व को भी स्वीकार किया है।
- वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्तक कुंतक ने अपने ग्रंथ वक्रोक्ति जिवितम् में वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा के रूप में स्वीकार किया है।
- लेकिन कुंतक, महिमभट्ट, क्षेमेन्द्र आदि आचार्यों के अनुसार कारिका भाग और वृत्ति भाग दोनों के प्रणेता आचार्य आनन्दवर्धन ही हैं।
- इसके अलावा यह भी सर्वज्ञात है कि कुंतक जो कि एक वक्रोक्ति आचार्य है, वह अपने बात को तेढ़े-मेढ़े से कहते है.
- भीतर का कवि जो बंधन में छटपटा रहा था, मुक्त हो जाता है और तब मुझे आचार्य आनंदवर्धन और कुंतक की याद आती है।
- उनके परवर्ती कुंतक ने वक्रोक्ति को एक संपूर्ण सिद्धांत के रूप में विकसित कर काव्य के समस्त अंगों को उसके अंदर समाविष्ट कर लिया।
- आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति के भेदों एवं उपभदों के अंतगर्त शब्द एवं अर्थ उत्पन्न होने वाली विच्छति के नियामक तत्त्वों का सुक्ष्म विश्लेषण भाषा के धरातल पर आधारित है।
- काव्यशास्त्र के विद्वान और अलंकारों के सिद्धांतकार आचार्य कुंतक की आत्मा अगर स्वर्ग में होगी तो अपने अनुप्रास अलंकारों के इस नए अवतार को देखकर खुश हो रही होगी।
- काव्यशास्त्र के विद्वान और अलंकारों के सिद्धांतकार आचार्य कुंतक की आत्मा अगर स्वर्ग में होगी तो अपने अनुप्रास अलंकारों के इस नए अवतार को देखकर खुश हो रही होगी।
- (4) वक्रोक्ति संप्रदाय की उद्भावना का श्रेय आचार्य कुंतक को (10 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध) है जिन्होंने अपने “वक्रोक्ति जीवित” में “वक्रोक्ति” को काव्य की आत्मा (जीवित) स्वीकार किया है।
- कुंतक (१ ००० ई.) ने वक्रोक्ति जीवित में ' वक्रोक्तिः काव्यजीवितम ' कहकर उक्ति वैचित्र्य, कथन का अनूठापन आदि को काव्य माना है. ५ ४
- संस्कृत के ही एक आचार्य कुंतक व्याख्या करते हैं कि जब शब्द और अर्थ के बीच सुन्दरता के लिये स्पर्धा या होड लगी हो, तो साहित्य की सृष्टि होती है।
- उधर वक्रोक्तिवादी कुंतक भी काव्य में उपात्त शब्द और अर्थ के व्यापार को साधारण अभिधा न मानकर विचित्रामिधा या वक्रोक्ति कहते हैं और इस वक्रोक्ति का विनियोग वर्ण, पद, वाक्य, अर्थप्रकरण, प्रबंध जैसे काव्यांगों में निर्दिष्ट करते हैं।
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