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गायत्री छंद वाक्य

उच्चारण: [ gaaayetri chhend ]
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  • गायत्री छंद का लक्षण हैः तीन पादों वाला वह छंद जिसके प्रत्येक पाद में आठ आठ अक्षर हों और इस प्रकार कुल 24 अक्षर हों।
  • . 8-8 मात्राओं के तीन चरणो वाले छंद में लिखी िस कविता में 24 वर्णों के वैदिक गायत्री छंद गरिमा और औदात्य है.
  • आठ आठ मात्राओं के तीन चरणों वाले छ्न्द में लिखी इस कविता में 24 वर्णों के वैदिक गायत्री छंद की गरिमा और औदात्त्य है.
  • तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ॥35॥ द्यूतं
  • भावार्थ: तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ॥35॥ द्यूतं
  • एकं अक्षरम गीता सूत्र-10. 35.. गायत्री छंद अहम् गीता सूत्र-7.8...... प्रणवः सर्ववेदेषु, और आगे-गीता में अर्जुन का तेरहवां प्रश्न है..........
  • जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है:
  • अकेले ऋग्वेद में ही 2450 मंत्र गायत्री छंद में होने के बावजूद गायत्री मंत्र के नाम से केवल एक ही मंत्र प्रसिद्ध है जिससे इसकी महत्ता का पता चलता है।
  • जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है:
  • ऐसे समय गायत्री छंद के एक चरण में आठ अक्षरों के स्थान पर यदि कोई होता सात ही अक्षरों का चरण कहता होता तो उस पर छंदोभंग करने का दोष अवश्य ही आया होता।
  • इसके अतिरिक्त ज्योतिर्वे गायत्री छंद साम् ज्योतिर्वे गायत्री, दविद्युतती वैगायत्री गायत्र्यैव भर्ग, तेजसा वेगायत्रीपथमं त्रिरात्रं दाधार पदै द्वितीयं त्र्यक्षरै स्तृतीयम् के रूप में सूर्य और गायत्री के सम्बन्ध को दर्शाया गया है।
  • मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥ भावार्थ: तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ॥ 35 ॥ द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
  • वहां लिखा है, ‘‘ भूर्भुवः स्वः ‘‘ (देवी बृहती छंद). तत्सवितु. (निचृद् गायत्री छंद) ‘‘ अर्थात यजुर्वेदीय छंद में देवीबृहती छंद और निचृद् गायत्री छंद का मिश्रण है।
  • वहां लिखा है, ‘‘ भूर्भुवः स्वः ‘‘ (देवी बृहती छंद). तत्सवितु. (निचृद् गायत्री छंद) ‘‘ अर्थात यजुर्वेदीय छंद में देवीबृहती छंद और निचृद् गायत्री छंद का मिश्रण है।
  • ऋष्यादि-न्यास इसके पश्चात ऋष्यादि न्यास करना चाहिये, शिरसिदेवभाग ऋषये नम:, मुखे गायत्रीछंदसे नम:, ह्रदि आदित्यायदेवत्यै नम: इस मंत्र के देवभाग ऋषि गायत्री छंद तथा दृष्ट्यादृष्ट के फ़ल देने वाले आदित्य देवता हैं।
  • इस में ‘ वरेण्यं ‘ को तोड़ मरोड़ कर शुद्ध गायत्री छंद बनाने की आवश्यकता नहीं रह जाती, क्योंकि ‘ तत् ‘ का ‘ तस्य ‘ हो जाने से प्रथम पाद में सात के स्थान पर आठ वर्ण हो जाते हैं।
  • इसके बाद हम अपना नज़रिया रखेंगे और बताएंगे कि इस समस्या का हल हक़ीक़त में क्या है? डा. अज्ञात लिखते हैं कि जिस मंत्र को पकड़ कर रखा गया है, वह वास्तव में शुद्ध गायत्री छंद में नहीं है।
  • १) मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं | ॐ कार मन्त्र गायत्री छंद, परमात्मा ऋषि, अन्तर्यामी प्रभु इस मन्त्र के देवता हैं | हम उसका जप करते हैं, सुमृतिशक्ति, यादशक्ति बढ़ाने के लिए | कंठ से ॐ...... जपे ||
  • 2 और ऋग्वेद 3: 62: 10 में सर्वत्र इसे ‘ निचृत गायत्री ‘ लिखा है (देखें, मूल यजुर्वेद संहिता, वैदिक यंत्रालय, अजमेर, पंचम संस्करण 1927 ई.) अतः स्पष्ट है कि ‘ गायत्री मंत्र ‘ में गायत्री छंद अपूर्ण व दोषपूर्ण है।
  • गायत्री छंद रूप में वह माध्यम है जिस से एक ओंकार मिलता है, एक ओंकार हिमालय की शून्यता में है, सागर के शांत पन में है और इस ॐ ध्वनी का जिक्र संत जोसेफ बायबिल में करते हैं, यह वह धुन है जिस से विज्ञानं का टाइम-स्पेस है ।
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