गीति-काव्य वाक्य
उच्चारण: [ gaiti-kaavey ]
उदाहरण वाक्य
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- कवि के मन में जो अवसाद प्रच्छन्न है, उसे छायावादी रीति से इस गीति-काव्य में उतारा गया है।
- गीति-काव्य के सभी तत्त्व यथा भावप्रणता, आत्माभिव्यक्ति, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, भाषा की कोमलता आदि मिलते हैं ।
- दूसरी एक और बात भी है कि आधुनिक युग गीति-काव्य के लिए जितना उपयुक्त है उतना प्रबंध-काव्यों के लिए नहीं।
- गीति-काव्य की जो परंपरा [[जयदेव]] और [[विद्यापति]] ने पल्लवित की थी उसका चरम-विकास इन कवियों द्वारा हुआ है।
- गीति-काव्य के लिए सौंदर्य-वृत्ति और स्वानुभूति के गुणों का होना आवश्यक है, सौभाग्य से सारी बातें छायावादी कवियों में मिलती हैं।
- आप हिन्दी की तत्कालीन तीनों काव्य-धाराओं से सम्पृक्त-राष्ट्रीय काव्य-धारा, उत्तर छायावादी गीति-काव्य, प्रगतिवादी कविता और समाजार्थिक-राष्ट्रीय-राजनीतिक चेतना-सम्पन्न रचनाकार हैं।
- समकालिक हिन्दी गीति-काव्य के शिखर हस्ताक्षर अभियंता श्री चन्द्रसेन ' विराट' के १३ गीत संग्रहों, १० ग़ज़ल संग्रहों, २ दोहा संग्रहों, ५ मुक्तक संग्रहों पट दृष्टि
- हिन्दी गीति-काव्य के इस महान कवि के गीत हिंदी साहित्य जगत में काफ़ी लोकप्रिय हुए हैं और उनके गीतों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
- बीसवीं सदी के आधुनिक हिंदी गीति-काव्य का अगर कोई ठेठ पूर्वी घराना है तो कैलाश नारद उसके प्रतिनिधि कवि-गीतकार हैं. हिंदी के पूरब अंग के अपूर्व कवि.
- बीसवीं सदी के आधुनिक हिंदी गीति-काव्य का अगर कोई ठेठ पूर्वी घराना है तो कैलाश नारद उसके प्रतिनिधि कवि-गीतकार हैं. हिंदी के पूरब अंग के अपूर्व कवि.
- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य समीक्षा के विभिन्न सम्प्रदायों (अलंकार, रीति, वक्रोक्ति, ध्वनि, औचत्य, अनुमिति, रस) में से अलंकार, ध्वनि तथा रस को ही हिंदी गीति-काव्य ने आत्मार्पित कर नवजीवन दिया.
- इस लघु गीति-काव्य मे प्रगाढ़ स्नेह एवं करुना, सुख की स्मृति एवं विरह की दारुण पीड़ा-दोनों का संगम आदि से अंत तक चलता है जो बहुत ही मनोहर है.
- रूढ़िवादिता का नाम देकर गीत और नवगीत के बीच खड़ी की जा रही दीवार को अति महत्तव न देकर हमें गीति-काव्य के मर्यादित संस्कारों को आत्मसात करते हुए ही प्रयोगवादिता की बात करनी चाहिए।
- गुजरात के नरसिंह मेहता, राजस्थान की मीरा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सूरदास और बंगाल तथा उड़ीसा के चैतन्य का लक्ष्य गीति-काव्य और प्रेम की अदभुत ऊँचाई पर पहुँचा, जो वर्ण और जाति की सीमाओं को पार कर गया।
- समकालिक हिन्दी गीति-काव्य के शिखर हस्ताक्षर अभियंता श्री चन्द्रसेन ' विराट ' के १ ३ गीत संग्रहों, १ ० ग़ज़ल संग्रहों, २ दोहा संग्रहों, ५ मुक्तक संग्रहों पट दृष्टिपात करें तो उनके समृद्ध शब्द-भंडार, कल्पनाप्रवण मानस, रससिक्त हृदय, भाव-बिम्ब-प्रतीक त्रयी के समायोजन की असाधारण क्षमता का लोहा मानना पड़ता है.
- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य समीक्षा के विभिन्न सम्प्रदायों (अलंकार, रीति, वक्रोक्ति, ध्वनि, औचत्य, अनुमिति, रस) में से अलंकार, ध्वनि तथा रस को ही हिंदी गीति-काव्य ने आत्मार्पित कर नवजीवन दिया. असंस्कृत साहित्य में अलंकार को ' सौन्दर्यमलंकारः ' (अलंकार को काव्य का कारक), ' अलंकरोतीति अलंकारः ' (काव्य सौंदर्य का पूरक) तथा अलंकार का मूल वक्रोक्ति को माना गया.
- हिन्दी की तत्कालीन तीनों काव्य-धाराओं अर्थात् राष्ट्रीय काव्य-धारा, उत्तर छायावादी गीति-काव्य, प्रगतिवादी कविता से सम्पृक्त श्री भटनागर जी की प्रकाशित और चर्चित कृतियाँ है-तारों के गीत, विहान, अन्तराल, अभियान, बदलता युग, टूटती श्रृंखलाएँ, नयी चेतना, मधुरिमा, जिजीविषा, संतरण, संवर्त, संकल्प, जूझते हुए, जीने के लिए, आहत युग, अनुभूत-क्षण, मृत्यु-बोध: जीवन-बोध, और राग-संवेदन ।
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