गुलशन नन्दा वाक्य
उच्चारण: [ gauleshen nendaa ]
उदाहरण वाक्य
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- गुलशन नन्दा, ओमप्रकाश शर्मा और कर्नल रंजीत जैसे उपन्यासकारों के सामाजिक एवं जासूसी उपन्यास भी नरेन्द्रसिंह के यहां से मैं पढ़ चुका था।
- बाद में खुद से सीख सीख कर इतनी हिन्दी जान गईं थीं कि गुलशन नन्दा और रानू के उपन्यास पूरी पूरी दोपहरी पढ़तीं.
- बाद में गुलशन नन्दा पर ट्रांसफर हुआ तब भी अपना स्वयं का रोमांटिक नॉवेल मन में कई बार लिखा और उससे कहीं ज्यादा बार छपवाया.
- बाद में गुलशन नन्दा पर ट्रांसफर हुआ तब भी अपना स्वयं का रोमांटिक नॉवेल मन में कई बार लिखा और उससे कहीं ज्यादा बार छपवाया.
- और यह भी नहीं होगा कि कालजयी लेखन साहित्य के पाले में तथा इब्ने सफी-गुलशन नन्दा छाप कलम घसीटी ब्लॉग जगत के पाले में जायेंगे।
- खुरचन-बचपन की बात पे क्या दिन याद आ रहे हैं, अ-साहित्यिक जनता गुलशन नन्दा के उपन्यास पढती थी, और जेम्स हेडली चेइज़ कि सनन सनसनी भी.
- भले उन्हें मुख्यधारा के साहित्य में स्थान ना मिला हो मगर जनता के दिलों में तो यही बसे थे…. गुलशन नन्दा पर इतना सारगर्भित लेख लिखने के लिए शुक्रिया……………..
- गद्य में रिदम, तुलसीदास और प्रेमचन्द की लोकप्रियता, मुक्तिबोध की जनस्वीकृति,,नीरज की साहित्यिक स्वीकृति और गुलशन नन्दा की बिक्री, जैनेन्द्र की भैंस, लन्दन की कवि गोष्ठी
- किशोरपन के इस दोराहे पर उपन्यास पढ़ने की लत लग गई थी जिसमें गुलशन नन्दा की लवस्टोरी तथा सुरेन्द्र मोहन पाठक की उपन्यास का मैं दिवाना हो गया था।
- अधिकांश लड़के आजाद मैदान के पास वाली किताबों की दुकान से गुलशन नन्दा, रानू, ओमप्रकाश शर्मा, कर्नल रंजीत के उपन्यास 25 पैसे प्रतिदिन के किराये पर लाते।
- एक ज़माने में कल्ट बन चुके गुलशन नन्दा पर यह पोस्ट श्री राजकुमार केसवानी की लिखी हुई है और उन्हीं की अनुमति से यहां प्रस्तुत की जा रही है-
- एक ज़माने में कल्ट बन चुके गुलशन नन्दा पर यह पोस्ट श्री राजकुमार केसवानी की लिखी हुई है और उन्हीं की अनुमति से यहां प्रस्तुत की जा रही है-
- गद्य में रिदम, तुलसीदास और प्रेमचन्द की लोकप्रियता, मुक्तिबोध की जनस्वीकृति,, नीरज की साहित्यिक स्वीकृति और गुलशन नन्दा की बिक्री, जैनेन्द्र की भैंस, लन्दन की कवि गोष्ठी
- ज्यादा दिमाग पर जोर न देने का मन हो तो गुलशन नन्दा और कुशवाहा कान्त की आत्मा का आवाहन कर लो! “ झील के उस पार ” छाप लेखन तो बहुत ही “
- भारत नहीं, मैक्सिको व इतिहास के बारे में उनकी एक किताब है, बड़ी अच्छी है लेकिन इस वक़्त नाम याद नहीं पड़ रहा, जबकि गुलशन नन्दा के सभी टाइटल्स एकदम ज़ुबान पर धरे हुए हैं?
- प्रभात-आपने मैं और मेरा समय में लिखा है कि आप आरम्भ में प्रेम वाजपेयी, कुशवाहा कांत, गुलशन नन्दा जैसे लोकप्रियलेखकों के उपन्यास पढ़ा करते थे और वे आपको पसंद भी आते थे।
- अक्सर कहा जाता था कि हिन्दी में उपन्यास पढने वाले पाठक नहीं है जबकि मैं देखता हूँ कि हर कोई रानू, प्रेम वाजपेयी और गुलशन नन्दा जैसे लेखकों को खूब मजे से पढ रहे है!
- यह चिंता तो लुगदी साहित्य के दौर मे भी थी तभी हमारे धमतरी के वरिष्ठ कवि त्रिभुवन पाण्डेय ने लिखा था ” मुक्तिबोध को कौन खरीदे, कौन करे घाटे का धन्धा / प्रेमचन्द अजनबी यहाँ पर बिके ठाठ से गुलशन नन्दा शरद कोकास
- स्त्री देह को लेकर गालियाँ, अश्लीलता, छिछोरापन कब किस समाज में, किस युग में नहीं रहा? साहित्य में वह गुलशन नन्दा की सीधी सपाट शब्दावली के दायरे से निकलकर आपके बौद्धिक आतंक का जामा पहनी हुई भाषा में आ गया है।
- लगभग 4 दशक पूर्व जब मैंने लिखना शुरू किया तब पढ़ना छूट गया वर्ना एक जमाना था गुलशन नन्दा और इब्ने सफी बी. ए. के उपन्यास यानि सामाजिक और जासूसी दोनों तरह की कहानियाँ लिखी पुस्तकें (उपन्यास) हमेशा हाथों में रहा करते थे।
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