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जगदेव बाबू वाक्य

उच्चारण: [ jegadev baabu ]
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  • कुर्था में तैनात डी. एस. पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए.
  • सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे, जहानाबाद की सभा में उन्होंने कहा था-दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.
  • जगदेव बाबू एक महान राजनीतिक दूरदर्शी थे, वे हमेशा शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा किसी को महत्त्व नहीं दिया.
  • 1969 में जगदेव बाबू जब सिंचाई, बिजली एंव नदी घाटी योजना मंत्री बने तो इस योजना को स्वीकृति दी गई, जिसे बाद वाली सरकार ने अस्वीकृत कर दिया था।
  • उदघाटनकर्ता जदयू के प्रदेश अध्यक्ष विशष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि कुछ प्रतिबद्ध व संघर्षशील लोग ही समाज को चेतनशील व जागरूक बनाते हैं, जगदेव बाबू उन्हीं में से एक थे।
  • जगदेव बाबू एक जन्मजात क्रन्तिकारी थे, उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में अपना नेतृत्व दिया, उन्होंने ब्राह्मणवाद नामक आक्टोपस का सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक तरीके से प्रतिकार किया.
  • जगदेव बाबू कुशवाहा जी की जयंती हर साल २ फरवरी को कुर्था (बिहार) में एक मेले का आयोजन करके मनाई जाती है, जिसमे लाखों की संख्या में लोग जुटते है.
  • जगदेव बाबू ने 1967 के विधानसभा चुनाव में संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, 1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था) के उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की.
  • जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि चाहे महिला सशक्तीकरण हो या महादिलतों के उत्थान या फिर गरीबों के लिए चलाई जा रही अन्य योजनाएं, सरकार जगदेव बाबू के सपनों को सरजमीन पर उतारने को लेकर गंभीर है।
  • वही उनका परिचय चंद्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ, चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढ़ने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया, अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हु ए.
  • उन्हें धमकियों का भी सामना करना पड़ा, प्रकाशक से भी मन-मुटाव हुआ लेकिन जगदेव बाबू ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, उन्होंने हंसकर संपादक पद से त्यागपत्र देकर पटना वापस लौट आये और समाजवादियों के साथ आन्दोलन शुरू किया.
  • जब बिहार नक्सलवाद की आग में जल रहा था और ये प्रतीत हो रहा था कि हथियारबंद आन्दोलन ही सामंतवाद को जड़ से उखड़ सकता है, जगदेव बाबू ने इसी समय जन आन्दोलन को उभारा. उन्होंने ' Armed Revolution ' को सिरे से नकार दिया.
  • वे मानववादी रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित ' अर्जक संघ ' (स्थापना 1 जून, 1968) में शामिल हु ए. जगदेव बाबू ने कहा था कि अर्जक संघ के सिद्धांतों के द्वारा ही ब्राह्मणवाद को ख़त्म किया जा सकता है और सांस्कृतिक परिवर्तन कर मानववाद स्थापित किया जा सकता है.
  • उन्होंने 1960-70 के दशक में सामाजिक क्रांति का बिगुल फूंका था उन्होंने कहा था कि-' यदि आपके घर में आपके ही बच्चे या सगे-संबंधी की मौत हो गयी हो किन्तु यदि पड़ोस में ब्राह्मणवाद विरोधी कोई सभा चल रही हो तो पहले उसमें शामिल हो ', ये क्रांतिकारी जज्बा था जगदेव बाबू का.
  • इसी समय बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जे. पी. के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा-दशा का सूत्रपात हुआ, लेकिन आन्दोलन का नेतृत्व प्रभुवर्ग के अंग्रेजीदां लोगों के हाथ में था, जगदेव बाबू ने छात्र आन्दोलन के इस स्वरुप को स्वीकृति नहीं दी.
  • जहाँ नक्सलवाद सामंतवाद को सिर्फ जमीन (Land) से सम्बन्ध करके देखता है, वहीँ जगदेव बाबू जी ने इसको सही ढंग से परिभाषित किया कि सामंतवाद जमींदारी प्रथा का परिवर्तित रूप है यह प्राथमिक अवस्था में जातिवादी सिस्टम के रूप में काम करता है जो निचली जाती के लोगों का आर्थिक तथा सामाजिक शोषण करता है.
  • जगदेव बाबू अपने भाषणों से शोषित समाज में नवचेतना का संचार किया, जिससे सभी लोग इनके दल के झंडे़ तले एकत्रित होने लगे. जगदेव बाबू ने महान राजनीतिक विचारक टी. एच. ग्रीन के इस कथन को चरितार्थ कर दिखाया कि चेतना से स्वतंत्रता का उदय होता है, स्वतंत्रता मिलने पर अधिकार की मांग उठती है और राज्य को मजबूर किया जाता है कि वो उचित अधिकारों को प्रदान करे.
  • जगदेव बाबू अपने भाषणों से शोषित समाज में नवचेतना का संचार किया, जिससे सभी लोग इनके दल के झंडे़ तले एकत्रित होने लगे. जगदेव बाबू ने महान राजनीतिक विचारक टी. एच. ग्रीन के इस कथन को चरितार्थ कर दिखाया कि चेतना से स्वतंत्रता का उदय होता है, स्वतंत्रता मिलने पर अधिकार की मांग उठती है और राज्य को मजबूर किया जाता है कि वो उचित अधिकारों को प्रदान करे.
  • जगदेव बाबू तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझ-बूझ से पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ, लेकिन पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले पर लोहिया से अनबन हुयी और ' कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला ' की स्थिति देखकर संसोपा छोड़कर 25 अगस्त 1967 को ' शोषित दल ' नाम से नयी पार्टी बनाई, उस समय अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था-” जिस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी.
  • जब जे. पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया, उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया और समाजवादी विचारधारा का देशीकरण करके इसको घर-घर पहुंचा दिया. जे. पी. मुख्यधारा की राजनीति से हटकर विनोबा भावे द्वारा संचालित भूदान आन्दोलन में शामिल हो गए. जे. पी. नाखून कटाकर क्रांतिकारी बने, वे हमेशा अगड़ी जातियों के समाजवादियों के हित-साधक रहे.
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