जयप्रकाश कर्दम वाक्य
उच्चारण: [ jeyperkaash kerdem ]
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- पूरे कार्यक्रम का संचालन भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव एवं शिक्षा अधिकारी तथा वरिष्ठ दलित साहित्य के रचनाकार एवं आलोचक, डॉ. जयप्रकाश कर्दम जी ने किया.
- तो वहीं दूसरी ओर ‘ हाशिये से आगे का सच ' दलित विमर्श में विष्णू सरवदे, जयप्रकाश कर्दम, मीना नकवी, श्याम लाल से संवादी रमेश वर्मा थे ।
- स् वामी सहजानंद सरस् वती संग्रहालय में दलित अभिव् यक्ति पर हुई बहस में जे. वी. पवार, जयप्रकाश कर्दम, कृष् णा किरवले, जयनंदन, प्रो.
- गौरतलब है कि इस दिन ‘ एक शाम एक कथाकार ' के अंतर्गत वरिष्ठ कथाकार ‘ अब्दुल बिस्मिल्लाह ' का कहानीपाठ और उस पर नीलाभ और जयप्रकाश कर्दम की परिचर्चा निश्चित थे।
- विवेक कुमार, इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक दिलीप मंडल, समयक प्रकाशन के शांति स्वरूप बौद्ध, लेखक आनंद श्रीकृष्ण, जयप्रकाश कर्दम, सामाजिक चिंतक देवमणि भारतीय, समाजसेवी औ...
- जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि समान्यतः कोई भी इतिहास लेखन अतीत पर बहुत ज्यादा निर्भर होता है, लेकिन नैमिशराय इस पुस्तक में इस तिलिस्म को तोड़ते हैं और वर्तमान को बहुत गहराई से प्रस्तुत करते हैं।
- विवेक कुमार, व्यवसायी एवं वरिष्ठ समाजसेवी जय भगवान जाटव, विमल थोरात, अशोक भारती (नैक्डोर), डा. एस. एन गौतम, जयप्रकाश कर्दम, सहित तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे.
- जयप्रकाश कर्दम, डा. धर्मकीर्ती और डा. विमलकीर्ती जैसे साहित्यकार, जोधपुर के प्रो. ताराराम, डा. अनिल गजवीय, डा. संजय गजवीय, सविता मेंडेकांबले जैसे असंख्य साहित्यकार भी हैं.
- वे लिखते हैं कि ‘‘ धर्मवीर के दलितशास्त्र के जार दर्शन और बलात्कार-दर्शन के कुत्सित और घृणित विचारों का समर्थन श्यौराजसिंह ‘ बेचैन ' और जयप्रकाश कर्दम जैसे कथित दलित साहित्यकारों को छोड़कर और किसी ने नहीं किया।
- एक दिन जयप्रकाश कर्दम द्वारा सम्पादित पुस्तक ' दलित साहित्य १ ९९९ ' जिसे पढ़ते-पढ़ते अन्य कार्य में उलझने से मैंने टेबल पर रख दिया था, मित्र ने उठाया और काफ़ी देर तक उसके पन्ने उलटते-पलटते रहा. ”
- दूसरी ओर मैं मुद्राराक्षस जी और जयप्रकाश कर्दम जी को जिनमें एक वयोवृद्ध हैं तो दूसरे युवा तुर्क हैं, मैं देश के दलितों की ओर से किसी से भी लोहा लेने के लिए बौद्धिक स्तर पर सक्षम पाता हूं.
- मैं यहां दलित लेखक संघ का महासचिव होने के नाते यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जिस दलित लेखक संघ की स्थापना 15 अगस्तस 1998 को प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. कुसुम वियोगी के घर डॉ. जयप्रकाश कर्दम, मा.
- हिन्दी पटटी में दलित साहित्य को सामने लाने, उसको स्थापित करने और परंपरागत हिन्दी साहित्य के समांतर दलित साहित्य के बुनियादी सरोकारों को उजागर करने में जिन दलित साहित्यकारों का महत्वपूर्ण योगदान है उन दलित साहित्यकारों में डा. जयप्रकाश कर्दम एक जाना-पहचाना नाम है।
- नगर संवाददाता-!-उदयपुरराजस्थान साहित्य अकादमी ((उदयपुर)) व भारतीय दलित साहित्य अकादमी ((जोधपुर)) के साझे में ‘ साहित्य में सामाजिक न्याय की अवधारणा ’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी 21 जुलाई को होगी। अकादमी अध्यक्ष वेदव्यास ने बताया कि संगोष्ठी में दिल्ली से प्रख्यात साहित्यकार मोहनदास नेमीशरणराय, जयप्रकाश कर्दम सहित राजस्थान के सभी जिलों के दलित, आदिवासी अल्पसंख्यक, महिला लेखक भागीदारी करेंगे।
- नैमिशराय की ‘‘अपने-अपने पिंजरे” और बाल्मीकि की ‘‘जूठन” श्यौराज सिंह बेचैन की अस्थियों को अक्षर, एक लदोई, जयप्रकाश कर्दम की ‘मेरी जात', एन0आर0 सागर ‘जब मुझे चोर कहा', सूरज पाल चौहान की ‘घूंट के अपमान', बुद्धशरण हंस की ‘टुकड़े-टुकड़े आइना', हिन्दी पट्टी में लगभग उन्हीं जीवन अनुभवों को व्यक्त करती हैं जो मराठी दलित आत्मकथाओं से उजागर होती हैं।
- संगोष्ठी में भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव श्री जयप्रकाश कर्दम, कला और संस्कृति मंत्री माननीय महेन्द्र गौरेसु, आर्य सभा के महासचिव श्री सत्यदेव प्रीतम, हिन्दी संगठन के प्रधान श्री अजामिल माताबदल, साहित्यकार रामदेव धुरन्धर, महात्मा गांधी संस्थान के हिन्दी विभाग की डॉ. आर. गोबिन ने भाग लिया और हिन्दी को विश्व भाषा बनाने पर बल दिया।
- 22 कहानियों के इस संग्रह में एक तरफ जयप्रकाश कर्दम की नो बार, ओमप्रकाश वाल्मीकि की प्रमोशन तथा सुशीला टाकभौरे की कड़वा सच और साक्षात्कार जैसी अंतर्दृष्टिपूर्ण कहानियां शामिल हैं, तो दूसरी तरफ भीमसेन संतोष की समता और ममता तथा चन्द्रभान प्रसाद की चमरिया मइया का शाप जैसी विवादास्पद कहानियां भी शामिल हैं जिनमें स्त्री की छवि को बहुत गलत नजरिये के साथ पेश किया गया है।
- अन्य लेखों में मॉरिशस मे ंहिंदी: वर्तमान स्थिति (सत्यदेव सेंगर), मॉरिशस में हिंदी: एक सर्वेक्षण (जयप्रकाश कर्दम), वियतनाम में हिंदी (साधना सक्सेना), न्यूजीलैंड में हिंदी भाषा और संस्कृति (सुनीता नारायण), हिंदी धैर्य की भाषा हैउत्तेजना और हिंसा की नहीं (बालकवि बैरागी), संयुक्त राष्ट्र में हिंदी पृष्ठभूमि, प्रस्ताव एवं पहल (नारायण कुमार) प्रभावित करते हैं।
- नामवर सिंह, विष्णु प्रभाकर, गिरिराज किशोर, पंकज बिष्ट, मैत्रेयी पुष्पा, रामधारी सिंह दिवाकर, अरविंद मोहन, भगवान दास मोरवाल, जयप्रकाश कर्दम, सुरेश सेठ सहित 24 व्यक्तियों ने ‘ हंस ' को सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्रिका में पहला स्थान दिया है तो चित्रा मुद् गल, प्रियदर्शन, भगवत रावत, ममता कालिया, वीरेन्द्र यादव, रवींद्र कालिया, संजीव, गीता डोगरा, अरविंद चतुर्वेदी जैसे 13 लेखकों ने इसे दूसरा स्थान दिया है।
- जिनमें बिहारीलाल हरित, मोहनदास नैमिशराय, कंवल भारती, डॉ. सोहन पाल सुमनाक्षर, डॉ. सुखबीर सिंह, डॉ. धर्मवीर, ओमप्रकाश बाल्मीकि, डॉ. एम. सिंह, डॉ. कुसुमलता मेघवाल, एन. आर. सागर, डॉ. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी, लालचन्द्र राही, जयप्रकाश कर्दम, डॉ. दयानन्द बटोही, डॉ. श्यौराज सिंह ' बेचैन ', लक्ष्मी नारायण सुधाकर, डॉ. कुसुम वियोगी, विपिन बिहारी, सूरजपाल चौहान, हरिकिशन संतोषी व सुशीला टाकभौरे आदि के नाम आते हैं ।
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