दायभाग वाक्य
उच्चारण: [ daayebhaaga ]
उदाहरण वाक्य
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- 5. बंगाल के प्रख्यात नव्यस्मृतिकार, दायभाग के लेखक का नाम जीमूतवाहन है, जिससे स्पष्ट होता है कि लोगांे के मन में जीमूतवाहन के नाम का आकर्षण रहा है।
- अपने एक रिश्तेदार से दायभाग में उन्हें बहुत सी सम्पत्ति मिली जिसका उपयोग उन्होंने सन्त जॉन द डुआर्फ के संग अध्ययन हेतु किया तथा मिस्र के उजाड़ प्रदेश में एकान्तवासी बन गये।
- न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और जगदीश सिंह खेहर ने एक फैसले में कहा कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत बेटियां अन्य पुरुष सहोदरों के बराबर दायभाग अधिकार की हकदार हैं।
- मिताक्षरा तथा दायभाग दोनों ने पांच स्त्रियों अर्थात् विधवा, पुत्री, माता, पितामही और प्रपितामही को दाय योग्य माना है किन्तु इन दोनों में भी वारिसों के उत्तराधिकार क्रम के बारे में मतभेद रहा।
- इनके अनेकों प्रावधानों को संविधान में सम्मिलित किया गया है (जैसे-हिन्दू विवाह, उत्तराधिकार, दायभाग आदि) परन्तु अधिकांश कठोर प्रावधानों को न सिर्फ संविधान ने निषेध कर दिया है वरन स्वयं हिन्दू समाज भी उसे छोड़ चुका है.
- शहरों का बसाना, गुप्तचरों का प्रबंध, फ़ौज की रचना, न्यायालयों की स्थापना, विवाह संबंधी नियम, दायभाग, शुत्रओं पर चढ़ाई के तरीके, किलाबंदी, संधियों के भेद, व्यूहरचना इत्यादि बातों का विस्ताररूप से विचार आचार्य कौटिल्य अपने ग्रंथ में करते हैं।
- जयदेव की कविता को श्रृंगारिक कहें या भक्ति परक-इस विवाद को अनावश्यक मानते हुए महादेवी ने प्रतिपादित किया है कि राधाकृष्ण को केंद्र बनाकर चलनेवाली श्रृंगार-उपासना और उन्हें आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक मान कर विकास करनेवाली भक्ति-भावना की संधि में जयदेव का आविर्भाव होने के कारण उन्हें दोनों का दायभाग अनायास प्राप्त हो गया।
- वेद, शास्त्र पर आधारित हिंदू कानून में संयुक्त अविभक्त हिंदू परिवार की मूर्तिमान् व्यवस्था, जो संपत्ति स्वामित्व के साथ-साथ भोजन एवं पूजा पाठ को भी संयुक्त एवं अविभक्त रूप में स्वीकार करती है, हिंदू कानून का अविचल सोपान है जिसकी समयांतर पर जीमूतवाहन ने मात्र बंगाल के लिए दायभाग नियम एवं विज्ञानेश्वर ने शेष भारत के लिए मिताक्षरा नियमों में वर्गीकृत कर दिया।
- वेद, शास्त्र पर आधारित हिंदू कानून में संयुक्त अविभक्त हिंदू परिवार की मूर्तिमान् व्यवस्था, जो संपत्ति स्वामित्व के साथ-साथ भोजन एवं पूजा पाठ को भी संयुक्त एवं अविभक्त रूप में स्वीकार करती है, हिंदू कानून का अविचल सोपान है जिसकी समयांतर पर जीमूतवाहन ने मात्र बंगाल के लिए दायभाग नियम एवं विज्ञानेश्वर ने शेष भारत के लिए मिताक्षरा नियमों में वर्गीकृत कर दिया।
- इसलिए पूर्व कथन का तात्पर्य यह हैं कि जब ऐसी आपत्ति का समय आ जाये कि दायभाग (पितादि की जमींदारी या धन आदि) शिल, उ × छ और अयाचितादि कोई भी उपाय धनप्राप्ति के हो न सके और किसी भी प्रकार से धानार्जन अत्यन्तावश्क हो तो यदि प्रतिग्रहादि द्वारा प्राप्त किया जाये तभी उससे यज्ञादि करने से अदृष्ट (पुण्य) हो सकता हैं।
- ' अत: जब मनु [272] यह कहते हैं कि पुत्र के जन्म से व्यक्ति पूर्वजों के प्रति अपने ऋणों को चुकाता है, तो दायभाग [273] ने व्याख्या की है कि ' पुत्र ' शब्द प्रपौत्र तक के तीन वंशजों का द्योतक है, क्योंकि तीनों को पार्वणश्राद्ध करने का अधिकार है और तीनों पिण्डदान से अपने पूर्वजों को समान रूप से लाभ पहुँचाते हैं और ' पुत्र ' शब्द को संकुचित अर्थ में नहीं लेना चाहिए।
- लुकाच के अनुसार क्लासिकी महाकाव्यों का जन्म ऐसी सुस्थिर संस्कृतियों में होता है जिसके मूल्य स्पष्ट होते हैं, जिससे अस्मितायें स्थिर होती है और जहाँ जीवन गति में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि योरुपीय उपन्यास की जड़ें इसके ठीक विपरीत किस्म के अनुभव में हैं, यह एक ऐसे समाज का चित्र है जो लगातार बदल रहा है, जिसमें एक घुमक्कड़, सभी प्रकार के दायभाग से रहित मध्यवर्गीय नायक अथवा नायिका एक ऐसी दुनिया रचने के उपक्रम में लगे होते हैं जो हमेशा के लिये पीछे छूट गयी पुरानी दुनिया से थोड़ी-बहुत मिलती-जुलती है।
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