दुर्मुख वाक्य
उच्चारण: [ duremukh ]
"दुर्मुख" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- मान्य सरदारजी से निवेदन है, तमाम चैनलियों से निवेदन है इस दुर्मुख को किसी भी आतंकी वारदात के बाद न दिखाएं, ब्लोगिये भी सुसरे को पानी डालें.
- रामायण में वर्णित दुर्मुख ऐसा ही एक गुप्तचर था जिसने रामचंद्र को सीता के विषय में (लंका प्रवास के बाद) जनापवाद की जानकरी दी थी।
- तभी विशुलोमा नामक राक्षशी जो दुर्मुख क़ी पुत्री थी उसने अपने पुत्र विशुलोम को गंगा किनारे तपस्या कर रहे ऋषियों को मार कर लाने को कहा.
- मान्य सरदारजी से निवेदन है, तमाम चैनलियों से निवेदन है इस दुर्मुख को किसी भी आतंकी वारदात के बाद न दिखाएं, ब्लोगिये भी सुसरे को पानी डालें.
- सत्य-प्रकाश की राजनीति की स्वच्छ नीति को भुला रहा || जगा रहा है छल-फ़रेब को, और कपट के दुर्मुख को-और निष्कपट मनोभाव की शाश्वत गरिमा सुला रहा ||
- बाबा रामदेव और अन्ना के आंदोलन ने जब कांग्रेस की पूरे देश में थू-थू कराई तो कांग्रेस ने अपने सिपेहसालार दुर्मुख दिग्विजय के माध्यम से हमेशा की तरह संघ कार्ड चला दिया।
- बाबा रामदेव और अन्ना के आंदोलन ने जब कांग्रेस की पूरे देश में थू-थू कराई तो कांग्रेस ने अपने सिपेहसालार दुर्मुख दिग्विजय के माध्यम से हमेशा की तरह संघ कार्ड चला दिया।
- अब ये वक्र मुखी सांसद, ये दुर्मुख देश की सर्वोच्च सत्ता के प्रतीक सेना-नायकों को अपने निशाने पर लेकर कह रहें हैं-हम संसद में आके (लाके) इनका इलाज़ करेंगे.
- अब ये वक्र मुखी सांसद, ये दुर्मुख देश की सर्वोच्च सत्ता के प्रतीक सेना-नायकों को अपने निशाने पर लेकर कह रहें हैं-हम संसद में आके (लाके) इनका इलाज़ करेंगे.
- शरद यादव ने पहले अन्ना अनशन पर बहस के दौरान अपने दुर्मुख से अन्ना जी के खिलाफ व्यक्तिगत बहुत कुछ कहा था, आन्दोलन की खिलाफत करते हुए और अब संसद के बाहर संसद के मूल भूत ढाँचे पर ही प्रहार कर रहें हैं ।
- लादेन मुखी दुर्मुख “ राम विलास पासवान ” की तो फ़िर क्या बिसात, कौन खेत को मूली? ऊधो कौन देस को वासी? अलबत्ता यह बात संसदीय इमाम ” मौलाना मुलायम ' के हक़ में जाती है के वह इस मुद्दे पर खामोश हैं, लगता है सिमी से पल्ला झाड़ लिया है ।
- (‘बगरो बसंत है' में इस बार प्रस्तुत है क्रांतिकारी रहे कथाकार यशपाल की व्यंग्य रचना ‘चाय की चुस्कियाँ', जो श्री दुर्मुख के नाम से मार्च 1947 के ‘विप्लव' में छपी थी तथा सम्पादकाचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का लेख ‘समाचार पत्रों का विराट रूप' जो नवंबर 1904 में ‘कमलकिशोर त्रिपाठी' के नाम से प्रकाशित हुई थी।) [...]
- बुखारी जैसे कमीने इंसानों को जमा मस्जिद के शाही इमाम बने रहने का कोई हक़ नहीं है, ऐसे लोगों के समाज को बाँट कर राजनीति करते रहने के चलते ही आज भी कई तबके कभी आगे नहीं बढ़ सकें … ऐसे दुर्मुख पाखंडियों का विरोध होना ही चाहिए, देश-हित में धर्म एवं समाज को खींचने से ज्यादा घृणित कार्य कोई नहीं है.
- (‘ बगरो बसंत है ' में इस बार प्रस्तुत है क्रांतिकारी रहे कथाकार यशपाल की व्यंग्य रचना ‘ चाय की चुस्कियाँ ', जो श्री दुर्मुख के नाम से मार्च 1947 के ‘ विप्लव ' में छपी थी तथा सम्पादकाचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का लेख ‘ समाचार पत्रों का विराट रूप ' जो नवंबर 1904 में ‘ कमलकिशोर त्रिपाठी ' के नाम से प्रकाशित हुई थी।
- किसी एक विषयकीचर्चा हो रही हो, इसी बीच में कोई दूसरा विषय उपस्थित होकर पहले विषय से मेल में मालूम हो वहाँ पताकास्थान होता है, जैसे, रामचरित् में राम सीता से कह रहे हैं-'हे प्रिये! तुम्हारी कोई बात मुझे असह्य नहीं, यदि असह्य है तो केवल तुम्हारा विरह, इसी वीच में प्रतिहारी आकर कहता है: देव! दुर्मुख उपस्थित । यहाँ ' उपस्थित' शब्द से 'विरह उपस्थित' ऐसी प्रतीत होता है, और एक प्रकार का चमत्कार मालूम होता है ।
- देने वाली, दुर्धर-जिसका प्रतिरोध करना कठिन हो अर्थार्त दानव, धर्षिणि-हमलो की बौछार करने वाली, दुर्मुख-कुरूप मुख वाले, मर्षिणि-धैर्यपूर्वक देखने वाली / बर्दाश्त करने वाली, हर्ष-प्रफुल्लित, रते-रहने वाली, त्रि-तीन, भुवन-लोक, पोषिणि-पालन करने वाली, शंकर-भगवान शिव, तोषिणि-संतुष्ट करने वाली, किल्बिष-पाप / रोग, मोषिणि-मुक्त करने वाली, घोष-नाद / गर्जन / भयंकर ध्वनि ।
- में देने वाली, दुर्धर-जिसका प्रतिरोध करना कठिन हो अर्थार्त दानव, धर्षिणि-हमलो की बौछार करने वाली, दुर्मुख-कुरूप मुख वाले, मर्षिणि-धैर्यपूर्वक देखने वाली / बर्दाश्त करने वाली, हर्ष-प्रफुल्लित, रते-रहने वाली, त्रि-तीन, भुवन-लोक, पोषिणि-पालन करने वाली, शंकर-भगवान शिव, तोषिणि-संतुष्ट करने वाली, किल्बिष-पाप / रोग, मोषिणि-मुक्त करने वाली, घोष-नाद / गर्जन / भयंकर ध्वनि ।
- किसी एक विषयकीचर्चा हो रही हो, इसी बीच में कोई दूसरा विषय उपस्थित होकर पहले विषय से मेल में मालूम हो वहाँ पताकास्थान होता है, जैसे, रामचरित् में राम सीता से कह रहे हैं-' हे प्रिये! तुम्हारी कोई बात मुझे असह्य नहीं, यदि असह्य है तो केवल तुम्हारा विरह, इसी वीच में प्रतिहारी आकर कहता है: देव! दुर्मुख उपस्थित । यहाँ ' उपस्थित ' शब्द से ' विरह उपस्थित ' ऐसी प्रतीत होता है, और एक प्रकार का चमत्कार मालूम होता है ।
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