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धर्मशास्त्र का इतिहास वाक्य

उच्चारण: [ dhermeshaasetr kaa itihaas ]
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  • महामहोपाध्याय डॉ पाण्डुरंग वामन काणे लिखित धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक के अनुसार मुंडन संस्कार के प्राचीन नाम चौल, चूड़ाकरण, चूड़ाकर्म आदि हैं।
  • उसके बाद बौद्धों के प्रति विप्र-प्रवचन कैसे-कैसे हुए उसका एक उदाहरण डॉ० पांडुरंग बामन काणे ने धर्मशास्त्र का इतिहास में दिया है।
  • प्रख्यात संस्कृतिविद् डॉ पांडुरंग वामन काणे की भारतीय धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक के मुताबिक सेनानी शब्द का उल्लेख ऋग्वेद मे भी आया है।
  • उसके बाद बौद्धों के प्रति विप्र-प्रवचन कैसे-कैसे हुए उसका एक उदाहरण डॉ ० पांडुरंग बामन काणे ने धर्मशास्त्र का इतिहास में दिया है।
  • प्रख्यात संस्कृतिविद् डॉ पांडुरंग वामन काणे की भारतीय धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक के मुताबिक सेनानी शब्द का उल्लेख ऋग्वेद मे भी आया है।
  • म हामहोपाध्याय डॉ पाण्डुरंग वामन काणे लिखित धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक के अनुसार मुंडन संस्कार के प्राचीन नाम चौल, चूड़ाकरण, चूड़ाकर्म आदि हैं।
  • पूग आचार्य काणे ने अपने वृहद् ग्रंथ ‘ धर्मशास्त्र का इतिहास ' में उल्लेख किया है कि व्रात्य की भांति पूग भी विभिन्न जातियों से आए हुए लोग थे.
  • उत्तररामचरित (1913 ई.), कादंबरी (2 भाग, 1911 तथा 1918), हर्षचरित (2 भाग, 1918 तथा 1921), हिंदुओं के रीतिरिवाज तथा आधुनिक विधि (3 भाग, 1944), संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास (1951) तथा धर्मशास्त्र का इतिहास (4 भाग, 1930-1953 ई.)
  • उत्तररामचरित (1913 ई.), कादंबरी (2 भाग, 1911 तथा 1918), हर्षचरित (2 भाग, 1918 तथा 1921), हिंदुओं के रीतिरिवाज तथा आधुनिक विधि (3 भाग, 1944), संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास (1951) तथा धर्मशास्त्र का इतिहास (4 भाग, 1930-1953 ई.)
  • महामहोपाध्याय डॉ पांडुरंग वामन काणे अपने धर्मशास्त्र का इतिहास में पुराणों के हवाले से लिखते हैं कि जुआ वह खेल है जो पासे अथवा हाथीदांत के गुटकों से खेला जाए और जिसमें कोई न कोई बाजी ज़रूर हो।
  • महामहोपाध्याय डॉ पांडुरंग वामन काणे अपने धर्मशास्त्र का इतिहास में पुराणों के हवाले से लिखते हैं कि जुआ वह खेल है जो पासे अथवा हाथीदांत के गुटकों से खे ला जाए और जिसमें कोई न कोई बाजी ज़रूर हो।
  • महामहोपाध्याय डा. पांडुरंग वामन काणे द्वारा लिखित ‘ धर्मशास्त्र का इतिहास ' में अस्पृश्यता के सम्बन्ध में दी हुई जानकारी से यह अंदाज मिला कि: ‘‘ स्मृतियों में वर्णित अन्त्यजों के नाम आरम्भिक वैदिक साहित्य में भी आए हैं।
  • महामहोपाध्याय डॉ पांडुरंग वामन काणे धर्मशास्त्र का इतिहास में आथर्वण ज्योतिष (आथर्वण यानी अथर्ववेद के ज्ञाता ज्योतिषी) के हवाले से लिखते हैं कि अगर व्यक्ति सफलता चाहता है तो उसे तिथि, नक्षत्र, करण एवं मुहूर्त पर विचार करके कर्म या कृत्य करना चाहिए।
  • कुछ उल्लेखनीय पुस्तकें ये हैं-प्रोफेसर पी. वी. काणे द्वारा प्रणीत धर्मशास्त्र का इतिहास, प्रोफेसर एच. डी. वेलंकर द्वारा संपादित “ जिनरत्नकोश ” तथा श्री आर. एन. दांडेकर द्वारा संपादित ” भारत विषयक सामग्री के अध्ययन की प्रगति।
  • महामहोपाध्याय डॉ पांडुरंग वामन काणे धर्मशास्त्र का इतिहास में आथर्वण ज्योतिष (आथर्वण यानी अथर्ववेद के ज्ञाता ज्योतिषी) के हवाले से लिखते हैं कि अगर व्यक्ति सफलता चाहता है तो उसे तिथि, नक्षत्र, करण एवं मुहूर्त पर विचार करके कर्म या कृत्य करना चाहिए।
  • इनके लिखे ग्रंथों में ' धर्मशास्त्र का इतिहास ', ' संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास ', ' भारतीय रीति रिवाज़ ' और ' आधुनिक विधान ' उच्चकोटि के वे महानतम ग्रंथ हैं जिन्होंने डॉ. काणे को अंतर्राष्ट्रीय विश्व मंच पर भारतीय साहित्य के एक युग के रूप में प्रतिष्ठित किया।
  • पी. वी. काणे धर्मशास्त्र का इतिहास में लिखते हैं कि ' ऋग्वेद (1 / 109 / 2), मैत्रायणी संहिता (1 / 10 / 1), निरुक्त (6 / 9, 3 / 4), ऋग्वेद (3 / 31 / 2), ऐतरेय ब्राह्मण (33), तैत्तिरीय संहिता (5 / 2 / 1 / 3), तैत्तिरीय ब्राह्मण (1 / 7 / 10) आदि से विदित होता है कि प्राचीन काल में विवाह के लिए कन्याओं का क्रय. विक्रय होता था।
  • अधिक वाक्य:   1  2

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