निम्बार्क सम्प्रदाय वाक्य
उच्चारण: [ nimebaarek semperdaay ]
उदाहरण वाक्य
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- निम्बार्काचार्य द्वारा प्रवर्तित निम्बार्क सम्प्रदाय को किस अन्य नाम से जाना जाता है? उ. हंस सम्प्रदाय से
- किसी भी मामले में, निम्बार्क सम्प्रदाय में पूजा की एकमात्र वस्तु संयुक्त दिव्य दम्पत्ति राधा कृष्ण हैं.
- 13वीं और 14वीं सदी में निम्बार्क सम्प्रदाय के बाद के आचार्यों ने इस दैवीय जोड़ी पर अधिक साहित्यिक रचनाएं की.
- 13वीं और 14वीं सदी में निम्बार्क सम्प्रदाय के बाद के आचार्यों ने इस दैवीय जोड़ी पर अधिक साहित्यिक रचनाएं की.
- श्रोत्रीय निम्बार्क सम्प्रदाय से जुड़े हुए है इसलिए यहां मोर पंख और बांसुरी के साथ निम्बार्क गणेशजी की प्रतिमा विराजमान है।
- निम्बार्क कोट मन्दिर, जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, यह निम्बार्क सम्प्रदाय से सम्बद्ध है और कोट का मतलब होता है किला।
- यह बता दें कि निम्बार्क सम्प्रदाय चार मुख्य वैष्णव सम्प्रदायों में से एक है, इस सम्प्रदाय का एक अन्य नाम कुमार सम्प्रदाय भी है।
- राधा कृष्ण के दर्शन में निम्बार्क सम्प्रदाय के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है, क्योंकि यह दर्शन और धर्मशास्त्र इसी से आरंभ हुआ था.
- राधा कृष्ण के दर्शन में निम्बार्क सम्प्रदाय के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है, क्योंकि यह दर्शन और धर्मशास्त्र इसी से आरंभ हुआ था.[कृपया उद्धरण जोड़ें]
- निम्बार्क सम्प्रदाय बाल कृष्ण की पूजा करता है, चाहे अकेले या उनकी सहचरी राधा के साथ, जैसा कि रुद्र सम्प्रदाय करता है, और इसका आरम्भिक काल है कम से कम बारहवीं शताब्दी.
- निम्बार्क सम्प्रदाय बाल कृष्ण की पूजा करता है, चाहे अकेले या उनकी सहचरी राधा के साथ, जैसा कि रुद्र सम्प्रदाय करता है, और इसका आरम्भिक काल है कम से कम बारहवीं शताब्दी.
- निम्बार्क सम्प्रदाय बाल कृष्ण की पूजा करता है, चाहे अकेले या उनकी सहचरी राधा के साथ, जैसा कि रुद्र सम्प्रदाय करता है, और इसका आरम्भिक काल है कम से कम बारहवीं शताब्दी.
- निम्बार्क सम्प्रदाय की पद्धति में रुक्मिणी को विशेष स्थान प्राप्त है | इस सम्प्रदाय में एक ओर तो गोलोकवासी राधा-कृष्ण की उपासना का विधान है तथा सुख विलास का स्थान अखण्ड वृंदावन को भी माना गया है, किन्तु दूसरी ओर द्वारिकापुरी को अपना धाम और रुक्मिणी जी को अपना इष्ट एवं गरुड़ जी को देवता माना गया है ।
- इन सभाओं में संतों, श्रद्धालुओं के साथ निम्बार्क सम्प्रदाय के महंत श्यामेश महाराज, सियाराम यादव, चुन्नी लाल निषाद, संजय शुक्ला इलाहाबाद, भानु प्रताप सिंह व पुन्नी लाल फतेहपुर, कानपुर, उदयवीर सिंह, रवीन्द्र नाथ औरैया इटावा, कायम सिंह रामवीर यादव फीरोजाबाद के अलावा संजय चौहान, गोपाल सिंह तोमर आगरा में प्रतिनिधित्व करेंगे।
- 13 वीं और 14 वीं सदी में निम्बार्क सम्प्रदाय के बाद के आचार्यों ने इस दैवीय जोड़ी पर अधिक साहित्यिक रचनाएं की. जयदेव के मुंह-बोले बड़े भाई, स्वामी श्री श्रीभट्ट ने जयदेव की तरह संगीतमय प्रस्तुति की ध्रुपद शैली के लिए युगल शतक की रचना की, लेकिन जयदेव के विपरीत, जिन्होंने अपनी रचना संस्कृत में लिखी थी, स्वामी श्रीभट्ट की रचनाएं व्रज भाषा में हैं, जो हिन्दी का एक स्थानीय रूप है जिसे व्रज के सभी निवासियों द्वारा समझा जाता था.
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