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नील विद्रोह वाक्य

उच्चारण: [ nil videroh ]
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  • उसकी अपनी आर्थिक बुनियाद उतनी मजबूत न होने और इसी वजह चेतना के स्तर पर भी पिछड़े हुए होने के कारण ही संथाल विद्रोह, सिपाही विद्रोह, नील विद्रोह की तरह के जन-विद्रोहों को किसी प्रकार का नेतृत्व देने में वह वर्ग पूरी तरह से विफल रहा था।
  • १ ९ वीं सदी के प्रारंभ में नील विद्रोह से शुरू मतुआ आंदोलन ने दरअसल मनुस्मृति व्यवस्था को खारिज करके ब्राह्मणवादी धर्म के खिलाफ विद्रोह करके अछूत बहिष्कृत और पिछड़े ​ ​ समुदायों के लिए शिक्षा और संपत्ति के अधिकारों से अपनी लड़ाई शुरू की, जो बाद में चंडाल आंदोलन की बुनियाद बनी।
  • (7) जबकि नील विद्रोह (1859) की आग मद्धम पड़ रही थी और वहाबी विद्रोह की आखिरी चिंगारियां भी बुझ रही थीं तो पंजाब में राम सिंह कूका एक छोटा सा धार्मिक मुद्दा उठा कर पंजाब के दबंग किसानों को आंदोलित कर रहे थे जो भू वितरण के मुद्दे पर पहले से ही असंतोष के शिकार थे.
  • मतुआ आंदोलन, नील विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, मुंडा संथाल विद्रोह, चुआड़ विद्रोह ने, चंडाल आंदोलन और तेभागा आंदोलन ने बंगाल की किसान जातियों को जैसे एकजुट किया और हाशिये पर रहे वर्चस्ववाद की वापसी भारत विभाजन से सुनिश्चित हुई, वहीं करिश्मा पंजाब की हिंदू, सिख और पंजाबी एकता को तहस नहस करने के लिए अस्सी और नब्वे के दशक में दोहराया गया।
  • क्योंकि ज्योतिबा फूले और नारायम लोखंडे को जानने के बजाय तब हम मार्क्स लेनिन चेग्वारा माओ स्टालिन और चारु मजुमदार को पढ़ने के साथ साथ पेरियार और नारायणगुरु को न जानने के बावजूद नानी की कहानियों के जरिये जी रहे थे नील विद्रोह हर वक्त और मतुआ युगपुरुष हरिचांद ठाकुर और उनके पुत्र गुरुचांद ठाकुर के चंडाल आंदोलन के मध्य थे हम बिना किसी जाति विमर्श के तब भी।
  • अधिक से अधिक भूमी को व्यापारिक फ़सलो जूट, कपास,गन्ना,अफीम,नील,चाय, काफ़ी के अधीन लाना था,इन फसलों की खेती जमींदार, ब्रिटिश बागान मालिक, साहूकार, तथा मध्यस्त वर्ग किसानों से जबरन करवाता था इन फसलों की कीमत किसान को बाजार भाव से ना दे कर वे अपनी मर्जी का प्रयोग करते थे इन फसलों की खेती ना करने पर किसानों को कठोर यातनाओ का सामना करना होता था!सबसे ख़राब हालत नील के किसानों की थी उनके द्वारा 1859-1860 का प्रसिद्ध नील विद्रोह भी किया गया था.
  • अधिक से अधिक भूमी को व्यापारिक फ़सलो जूट, कपास,गन्ना,अफीम,नील,चाय, काफ़ी के अधीन लाना था,इन फसलों की खेती जमींदार, ब्रिटिश बागान मालिक, साहूकार, तथा मध्यस्त वर्ग किसानों से जबरन करवाता था इन फसलों की कीमत किसान को बाजार भाव से ना दे कर वे अपनी मर्जी का प्रयोग करते थे इन फसलों की खेती ना करने पर किसानों को कठोर यात्नाओ का सामना करना होता था सबसे ख़राब हालत नील के किसानों की थी उनके द्वारा 1859-1860 का प्रसिद्ध नील विद्रोह भी किया गया था.
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