परशुराम चतुर्वेदी वाक्य
उच्चारण: [ pershuraam cheturevedi ]
उदाहरण वाक्य
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- परशुराम चतुर्वेदी की मान्यता है कि कबीर के मत में जो तत्त्व प्रकाशित हुआ है वह उनके स्वाधीन चिंतन का परिणाम है।
- कबीर के ‘ दुलहिनि मोरी गावहुं मंगलचार ' पद पर आचार्य परशुराम चतुर्वेदी कहते हैं कि यह दाम्पत्यभाव पूर्ण रचना है और ‘
- कई दशक पहले पं. परशुराम चतुर्वेदी की पुस्तक-'उत्तर भारत की सन्त-परम्परा' और डा.पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का शोध ग्रंथ-'हिन्दी साहित्य में निर्गुण संप्रदाय' प्रकाशित हुए थे।
- तो क्या प्रकांड पंडित होना इतना बड़ा पाप है कि कोई उसे याद भी नहीं करे? आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के साथ यही हो रहा है।
- परशुराम चतुर्वेदी के 117 वें जन्मदिवस पर सांसद नीरज शेखर ने उनके हरपुर स्थित आवास परशुराम पुरी पहुंच कर उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित किया।
- संदर्भ के लिए परशुराम चतुर्वेदी की पुस् तक उत् तर भारत की संत परम् परा में पृष् ठ 60 पर सातवें वाक् य का अध् ययन करना चाहें।
- परशुराम चतुर्वेदी सन् १ ५ ६ २ के आस-पास बुडढन नाम धारी किसी ऐतिहासिक व्यक्ति की स्थिति न मानते हुए विल्सन के मत को निराधार व्यक्त करते हैं।
- विद्वान् सम्पादक आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जी ने इस पदावली को परिमार्जित और संवर्धित कर अपने जीवन-काल में ही अध्येताओं के लिए इसे परमोपयोगी स्वरूप प्रदान कर दिया था।
- जिसमें उल्लेखनीय हैं-मुंशी प्रेमचन्द, श्री जगन्नाथदास ‘रत्नाकर', मौलाना सैयद अली नक़वी सफी, बाबू गुलाब राय, पं. राम नरेश त्रिपाठी, आचार्य पं. रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी आदि।
- बहुत कम लोग जानते हैं कि कबीर को जाहिलों की कोह में से निकाल कर विद्वानों की पांत में बैठाने का काम आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने ही किया था।
- पं॰ विश्वनाथ प्रसाद जी [14], परशुराम चतुर्वेदी [15] के अनुसार इस घटना के लिए युद्ध तथा विद्रोह दमन की संज्ञा देना अधिक उचित है।
- जिसमें उल्लेखनीय हैं-मुंशी प्रेमचन्द, श्री जगन्नाथदास ‘रत्नाकर', मौलाना सैयद अली नक़वी सफी, बाबू गुलाब राय, पं. राम नरेश त्रिपाठी, आचार्य पं. रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी आदि।
- परशुराम चतुर्वेदी, उत्तर भारत की सन्त परम्परा, भारती भण्डार, प्रयाग, द्वितीय संस्करण, सम्वत् २ ० २ १, पृ ० ४ २ १ ९.
- जब आचार्य परशुराम चतुर्वेदी की जन्म शताब्दी मनाई गई तो राजभवन के एक समारोह में अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था कि आचार्य परशुराम चतुर्वेदी को उन्हें पढ़ना पड़ा था।
- जब आचार्य परशुराम चतुर्वेदी की जन्म शताब्दी मनाई गई तो राजभवन के एक समारोह में अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था कि आचार्य परशुराम चतुर्वेदी को उन्हें पढ़ना पड़ा था।
- पर यह भी अजीब संयोग है कि बलिया में गंगा के किनारे के गांव में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्मे और दूसरे किनारे के गांव जवहीं में आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जन्मे।
- फिर बाद में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सरीखों ने कबीर को जो प्रतिष्ठा दिलाई, कबीर को कबीर बनाया, वह आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के किए का ही सुफल और विस्तार था, कुछ और नहीं।
- कबीर के काव्य रूपों, पदावली, साखी और रमैनी का जो ब्यौरा, विस्तार और विश्लेषण आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने परोसा है, और ढूंढ ढूंढ कर परोसा है, वह आसान नहीं था।
- फिर बाद में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सरीखों ने कबीर को जो प्रतिष्ठा दिलाई, कबीर को कबीर बनाया, वह आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के किए का ही सुफल और विस्तार था, कुछ और नहीं।
- अगले वर्ष वह इंटर की परीक्षा पास करने प्रयाग के म्योर सेन्ट्रल कॉलेज आ गए, जहाँ उन्हें रामचन्द्र जी टंडन, परशुराम चतुर्वेदी, फिराक गोरखपुरी आदि हस्तियों के सम्फ में आने का अवसर मिला।
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