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पाण्डु रोग वाक्य

उच्चारण: [ paanedu roga ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • बड़ी हरड़ को गाय के पेशाब में भिगोकर फिर गोमूत्र में ही मिलाकर सेवन करने से कफज पाण्डु रोग दूर होता है।
  • रोजाना सुबह उठते ही बिना कुछ खाए एक पुड़िया गाय के 20 ग्राम मक्खन में मिलाकर खाने से पाण्डु रोग में लाभ होता है।
  • उसके कक्ष से लौटने पर वेदव्यास ने सत्यवती से कहा, ” माता! अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र होगा।
  • ) पाण्डु रोग के असाध्य लक्षण-जो पाण्डुरोग चिरकाल से उत्पन्न हुआ हो और उस से शरीर को सभी धातुयें रूक्ष होजाती हैं वह असाध्य होता है.
  • जब रक्त बहाने वाली नसों की राहें रुक जाती हैं, शरीर की कान्ति, तेज और ओज क्षीण हो जाते है, तब पाण्डु रोग पैदा होता है।
  • महर्षि व्यास के डर से अम्बालिका का मुख पीला पद गया था इसी से ये पाण्डु रोग से ग्रस्त पैदा हुए और इनका नाम पाण्डु पड़ा.
  • (2) पित्त पाण्डु (पीलिया) के लक्षण चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को दूषित करके पाण्डु रोग पैदा होता है।
  • पित्त प्रधान पाण्डु रोग में रोगी का रंग हरा या पीला होता है, ज्वर,दाह, वमन, मूर्छा और प्यास होती है तथा मल-मूत्र पीले होते हैं।
  • सूर्य व चंद्र छठे भाव में हांे, तो वायु विकार से पाण्डु रोग और इनके साथ मंगल की युति हो, तो उदर शूल होता है।
  • सन्निपात के पाण्डु रोग वाले को तन्द्रा, आलस्य, सूजन, वमन, खांसी, पतले दस्त, ज्वर, मोह, प्यास, ग्लानि और इन्द्रियों की शक्ति का नाश, जैसे लक्षण होते है।
  • समय आने पर अम्बा के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।
  • समय आने पर अम्बिका के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।
  • समय आने पर अम्बा के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।
  • समय आने पर अम्बा के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।
  • (1) वातज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण चरक ने लिखा है, बादी करने वाले अन्नपानादि सेवन करने और उपवास आदि करने से वायु कुपित होकर कष्टसाध्य पाण्डु रोग पैदा करती है।
  • गोमूत्र से कुष्ठादि चर्म रोग भी दूर हो सकते हैं तथा कान में डालने से कर्णशूल रोग खत्म होता है और पाण्डु रोग को भी गोमूत्र समाप्त करने की क्षमता रखता है।
  • ग़ुड के साथ लेने पर यह जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) और अग्निमांद्य में लाभ करती है तथा खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृदय रोग, पाण्डु रोग और कृमि को दूर करने वाली होती है।
  • (4) सन्निपातज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण यह सब तरह के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य के दूषित हुये तीनों दोषों से उपर्युक्त तीनों दोषों के लक्षणों वाला, अत्यन्त असह्य घोर पाण्डु रोग होता है।
  • चरक सुश्रुत तथा वाग्भट ने पाण्डु रोग के जो अलग-अलग लक्षण बताये हैं वेत्रिदोषज पाण्ड में एक देखने में आते हैं माधव ने जो ज्वर अरोचक मिंचली, वमनप्यास तथा क्लम ये लक्षण लिखे हैं वस्तुतः ये त्रिदोषज पाण्डु के असाध्य लक्षणहैं.
  • पाण्डु रोग के पहले के लक्षण जब पाण्डु होने वाला होता है, तब चमड़ी का फटना, बारम्बार थूकना, अंगों का जकड़ना, मिट्टी खाने पर मन चलना, आंखों पर सूजन आना, मल और मूत्र का पीला होना तथा अन्न का न पचना-ये लक्षण पहले ही नजर आते हैं।
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