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पृथक निर्वाचिका वाक्य

उच्चारण: [ perithek nirevaachikaa ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • 1932 मे जब ब्रिटिशों ने अम्बेडकर के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की, [4] [5] तब गांधी ने इसके विरोध मे पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया।
  • अनशन के कारण गांधी की मृत्यु होने की स्थिति मे, होने वाले सामाजिक प्रतिशोध के कारण होने वाली अछूतों की हत्याओं के डर से और गाँधी जी के समर्थकों के भारी दवाब के चलते अंबेडकर ने अपनी पृथक निर्वाचिका की माँग वापस ले ली।
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक अधिकारों के साथ दलितों को अलग प्रतिनिधित्व पृथक निर्वाचिका में भी स्थान मिलने की जोरदार न केवल वकालत की बल्कि इसके लिए आंदोलन भी चलाए बाद में महात्मा गांधी भी इनकेसमर्थन में कूद पड़े, गांधी ने दलितों के लिये हरिजन अर्थात् ईश्वर के बच्चे शब्द से संबोधित किया।
  • राहुल गाँधी अगर वाकई में दलितों की भलाई चाहते है और आप जैसे सवर्ण लेखक भी, तो कृपया पुणे पैक्ट को हटाकर पुनः पृथक निर्वाचिका की व्यवस्था करे अन्यथा मायावती जैसे दलित नेताओ की बुरे न किया करे और मैं कोई बसपा का कार्यकर्ता नहीं बल्कि एक भारत का दलित हु, अंत में किसी भी प्रकार के कष्ट के लिए क्षमा चाहता हु!!!!
  • गाँधी जी ने जो विनाश के बिज बोये थे आज वो पूरा खेत बनकर हमारे सामने आरक्षण के रूप में है, अंबेडकर ने कभी आरक्षण की मांग नहीं की थी बल्कि उन्होंने दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका की मांग रखी थी, पृथक निर्वाचन का अर्थ है की एक दलित सिर्फ दलित नेता को ही वोट दे सकता है और दलित लोगों का नेतृत्व एक दलित नेता ही करेगा....
  • यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई! जिसके परिणाम स्वरुप दलितों को पृथक निर्वाचिका देने के लिए अंग्रेजो ने सहमती व्यक्त की, और असली समस्या यही से शुरू होती है, गाँधी जी जानते थे की जिस दिन पृथक निर्वाचिका की मांग स्वीकार कर ली जाएगी उस दिन इस देश में अनुसूचित जाती, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगो की सरकार बनेगी....
  • यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई! जिसके परिणाम स्वरुप दलितों को पृथक निर्वाचिका देने के लिए अंग्रेजो ने सहमती व्यक्त की, और असली समस्या यही से शुरू होती है, गाँधी जी जानते थे की जिस दिन पृथक निर्वाचिका की मांग स्वीकार कर ली जाएगी उस दिन इस देश में अनुसूचित जाती, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगो की सरकार बनेगी....
  • यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई! जिसके परिणाम स्वरुप दलितों को पृथक निर्वाचिका देने के लिए अंग्रेजो ने सहमती व्यक्त की, और असली समस्या यही से शुरू होती है, गाँधी जी जानते थे की जिस दिन पृथक निर्वाचिका की मांग स्वीकार कर ली जाएगी उस दिन इस देश में अनुसूचित जाती, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगो की सरकार बनेगी....
  • गाँधी जी के इस अनशन (नाटकबाजी मेरे अनुसार) को रूढ़िवादी हिंदू नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं जैसे पवलंकर बालू और मदन मोहन मालवीय का खूब समर्थन मिला और आंबेडकर जी ने ये सोचकर की यदि गाँधी की मृत्यु होने की स्थिति मे जो सामाजिक प्रतिशोध होगा उसकी परिणिति अछूतों की हत्या और बर्बादी होगी, और गाँधी जी के समर्थकों के भारी दवाब के चलते अंबेडकर ने अपनी पृथक निर्वाचिका की माँग वापस ले ली।
  • उनके इस अनिशिचित्काल उपवास के वजह से उनके स्वस्थ में गिरावट आने लगी फिर भी अंबेडकर नहीं माने, फिर जाकर कांग्रेस ने कई दलित बस्तियों में आग तक लगवाई, तब जाकर मजबूरन बाबा साहेब ने अछूतों की हत्याओं के डर से और गाँधी जी के समर्थकों के भारी दवाब के चलते पृथक निर्वाचिका की माँग वापस ले ली, इसके एवज मे अछूतों को सीटों के आरक्षण की बात स्वीकार कर ली जो अंततः अछूतों के अधिक प्रतिनिधित्व मे परिलक्षित हुई! गाँधी ने इस पर अपना अनशन समाप्त कर दिया।
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