बनाफर वाक्य
उच्चारण: [ benaafer ]
उदाहरण वाक्य
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- इसने चंदेलों और बनाफर सरदार आल्हा ऊदल को ही नहीं, स्वातंत्रय-प्रेमी छत्रसाल आदि को भी जन्म देकर भारत का मस्तक उन्नत किया है।
- ‘ आल्हखण्ड ' में बावन गढ़ के राजपूत राजाओं द्वारा, ‘ ओछी जाति बनाफर राय ' कहकर उन्हें बारबार अपमानित करते दिखाया गया है।
- संस्मरण उनके लिए शेड्यूल्ड कास्ट विधा थी और संस्मरण लेखक को वे कुल की हीनी, जात कमीनी, ओछी जात बनाफर राय का सगोत्री मानते थे।
- संस्मरण उनके लिए शेड्यूल्ड कास्ट विधा थी और संस्मरण लेखक को वे कुल की हीनी, जात कमीनी, ओछी जात बनाफर राय का सगोत्री मानते थे।
- बनाफर और वनवासियों के सदियों से चले आ रहे साथ ने छिपे रहते हुए अचानक ही तीव्र हमला कर जीतने की कला चन्देलों को खूब सिखा दी थी।
- जयदयाल जी ने लिखा है कि दलितों को सम्मानित तथा न्यायोचित स्थान दिलान के अपराध में आल्हा के परिवार को बनाफर (वन में फलने वाले असभ्य जंगली प्राकृत जन) कहकर अपमानित किया गया।
- बनाफर का यह शेर देखें-उसी घर ने किया मुझे बेघर उम्र गुजारी जिसे बसाने में दरअसल हिन्दी और उर्दू बेहद ही करीबी भाषाएं हैं इसलिए हमें यह समझ लेना चाहिए कि उनमें परस्पर आवाजाही स्वाभाविक है।
- और अंत में बनाफर के हौसलों से भरे दो शेर-जब गजष्ल कोई गुनगुनाता हूं जिन्दगी को करीब पाता हूं होंठ सीने से बेहतर है खोले जुबां आग को आग पानी को पानी कहो। एल. आई.जी.-१९६/२ सी, साकेत नगर, भेल, भोपाल
- हबीब तनवीर, राजेश जोशी, विजय बहादुर सिंह, कमला प्रसाद, नवल शुक्ल, बनाफर चंद्र, इरफान सौरव से लेकर रामशरण जोशी तक फैले इस माहौल में हमने अपने रास्ते अख्तियार किये और अपनी पूरी लापरवाही के साथ कैंपस में पढ़ाई की ।
- इन दोनों को कश्दम से कश्दम मिलाकर चलते देखना बहुत अच्छा लग रहा है।‘‘ बनाफर चंद्र आज ऐसे गजष्लकार के रूप में हमारे सामने हैं जो जनता को संवेदित करने के साथ ही आन्दोलित करने का भी माद्दा अपनी गजष्लों में रखते हैं।
- लेकिन आम आदमी को संवेदित, आक्रोशित करती सरल भाषा व इस भाषा में गुनगुनाती, चीरती हुई गजष्ल आज भी लोगों की जरूरत है और बनाफर आज के समय में इस जरूरत को पूरा भी कर रहे हैं व गजष्लों को नया आयाम भी दे रहे हैं।
- बनाफर चन्द्र का यह गजष्ल संग्रह ' 'चांद सूरज‘‘ हिन्दी-उर्दू भाषा की मिलन सरिता का सरल सहज प्रवाह ही नहीं दर्शाता बल्कि उस विस्तृत मानवीय सौहार्द की भावना का प्रबल समर्थन करता है जिसे हिन्दू मुस्लिम एकता के रूप में स्थापित करने की निरन्तर जागरूक कोशिश की जा रही है।
- गष्म तुम्हारा है रखलो छुपाकर इसे यह खजाना किसी को बताना नहीं बनाफर की गष्जष्लों में सबसे मुख्य बात है उनका नयापन जो वैचारिक ताजगी से भरा है जैसे कि मजष्हब का सियासत में दाखिल होना और दोस्ती का दुश्मनी में बदलना या आज के सांप्रदायिक माहौल पर बहुत गहरा असर करता है।
- ' 'मेरी जुबान से निकली तो सिर्फ नज्ष्म बनी, तुम्हारे हाथ में आयी तो एक मशाल हुई।“ बनाफर दुष्यंत की उसी सामाजिक प्रतिबद्धता को और आगे बढाते हैं ः ”जो मसीहा था सारी दुनिया का, उसको टांगा गया है कीलों पर।‘‘ गष्जष्लें हमारी राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भावना के लिए महत्वपूर्ण काम कर रही हैं।
- बनाफर की गष्जष्लों का आवेग क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया में हमें चेतना के तीव्र प्रवाह में इस तरह बहा ले जाता है जिस तरह इसके पूर्व दुष्यंत की गष्जष्लें या उनके बाद के महत्वपूर्ण गष्जष्लकारों की गष्जष्लें हमें आंदोलित कर देती थीं-तुम बनाफर को गौर से देखो लाश अपनी उठा के लाया है।
- बनाफर की गष्जष्लों का आवेग क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया में हमें चेतना के तीव्र प्रवाह में इस तरह बहा ले जाता है जिस तरह इसके पूर्व दुष्यंत की गष्जष्लें या उनके बाद के महत्वपूर्ण गष्जष्लकारों की गष्जष्लें हमें आंदोलित कर देती थीं-तुम बनाफर को गौर से देखो लाश अपनी उठा के लाया है।
- देखें कुछ शेर ः मेरे पेरों में यह जो छाले हैं इन से ही राह में उजाले हैं मौत जब आयेगी तब आयेगी अभी जिन्दा हूं जमाने के लिए बनाफर के शेरों में उन मजदूरों का संघर्ष झलकता है जिनकी जिन्दगी दुःख अभावों और शोषण की दुर्गंध मारते छालों से भरी है और दुनिया इनकी बदौलत ही रोशन है।
- इस कसौटी पर बनाफर की गष्जष्लों को परखते हैं तो यह खरे नजष्र आते हैं।‘‘ गष्जष्ल के सशक्त हस्ताक्षर कामिल बैहजषदी ने गष्जष्लकार के रूप में सतत् सक्रिय बनाफर चन्द्र के दूसरे गष्जष्ल संग्रह ' चांद सूरज‘ के विषय में लिखा है-गष्जष्ल को उसके सही मीटर में लिखना निश्चित ही एक कठिन कार्य है लेकिन बनाफर चन्द्र ने उसको सतत् अभ्यास से संभव तो किया ही है साथ ही उसमें चेतना और वैचारिकता को रदीफ काफिया में ढाला है।
- इस कसौटी पर बनाफर की गष्जष्लों को परखते हैं तो यह खरे नजष्र आते हैं।‘‘ गष्जष्ल के सशक्त हस्ताक्षर कामिल बैहजषदी ने गष्जष्लकार के रूप में सतत् सक्रिय बनाफर चन्द्र के दूसरे गष्जष्ल संग्रह ' चांद सूरज‘ के विषय में लिखा है-गष्जष्ल को उसके सही मीटर में लिखना निश्चित ही एक कठिन कार्य है लेकिन बनाफर चन्द्र ने उसको सतत् अभ्यास से संभव तो किया ही है साथ ही उसमें चेतना और वैचारिकता को रदीफ काफिया में ढाला है।
- इस कसौटी पर बनाफर की गष्जष्लों को परखते हैं तो यह खरे नजष्र आते हैं।‘‘ गष्जष्ल के सशक्त हस्ताक्षर कामिल बैहजषदी ने गष्जष्लकार के रूप में सतत् सक्रिय बनाफर चन्द्र के दूसरे गष्जष्ल संग्रह ' चांद सूरज‘ के विषय में लिखा है-गष्जष्ल को उसके सही मीटर में लिखना निश्चित ही एक कठिन कार्य है लेकिन बनाफर चन्द्र ने उसको सतत् अभ्यास से संभव तो किया ही है साथ ही उसमें चेतना और वैचारिकता को रदीफ काफिया में ढाला है।
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