बौद्ध न्याय वाक्य
उच्चारण: [ baudedh neyaay ]
उदाहरण वाक्य
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- किन्तु अधिक व्यापक अर्थ में इसमें बौद्ध न्याय और जैन न्याय भी समाविष्ट किये जाते हैं।
- किन्तु अधिक व्यापक अर्थ में इसमें बौद्ध न्याय और जैन न्याय भी समाविष्ट किये जाते हैं।
- इन दोनों धाराओं में मध्य बौद्ध न्याय तथा जैन न्याय के अभ्युदय का काल आता है।
- किन्तु अधिक व्यापक अर्थ में इसमें बौद्ध न्याय और जैन न्याय भी समाविष्ट किये जाते हैं।
- ब्राह्मण न्याय (वैदिक न्याय), जैन न्याय और बौद्ध न्याय के अत्यंत सुप्रसिद्ध नैयायिक विद्वानों में निम्नलिखित हैं:
- बौद्ध न्याय के सभी संप्रदायों में चार आर्यसत्य माने गए हैं-दु: ख, दु:खसमुदय, दु:खनिरोध और दु:खनिरोध का मार्ग।
- बौद्ध न्याय के सभी संप्रदायों में चार आर्यसत्य माने गए हैं-दु: ख, दु:खसमुदय, दु:खनिरोध और दु:खनिरोध का मार्ग।
- यह महनीय भावी बौद्ध न्याय के विकास का आधार और बौद्ध विचारों में नई उत्क्रान्ति का वाहक रहा है।
- बौद्ध न्याय में किसी हेतु को सद्धेतु होने के लिए तीन अनुमापक रूपों से संपन्न होना आवश्यक माना गया है।
- बौद्ध न्याय पर इन्होंने जो महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, उनमें “प्रमाणवार्तिक”, “न्यायबिंदु”, “हेतुबिंदु”, “प्रमाणविनिश्चय” और “वादन्याय” विशेष रूप से उल्लेख्य हैं।
- बौद्ध न्याय में किसी हेतु को सद्धेतु होने के लिए तीन अनुमापक रूपों से संपन्न होना आवश्यक माना गया है।
- ब्रह्मसूत्र भाष्य ` को दिग्नाग के विज्ञानवाद, धर्मकीर्ति के बौद्ध न्याय तथा नागार्जुन के माध्ययक (शून्यवाद) के विरुद्ध खड़ा किया।
- बौद्ध न्याय में अर्थक्रियाकारित्व को “”सत्ता“” का लक्षण मानकर तथा स्थिर पदार्थ में उसे असंभव कहकर भावात्मक पदार्थों को क्षणिक माना गया है।
- बौद्ध न्याय में अर्थक्रियाकारित्व को “”सत्ता“” का लक्षण मानकर तथा स्थिर पदार्थ में उसे असंभव कहकर भावात्मक पदार्थों को क्षणिक माना गया है।
- इन विषयों के संबंध में बौद्ध न्याय के दृष्टिकोण को उचित रूप में समझने के लिए उपायहृदय, प्रमाणसमुच्चय, न्यायविंदु और वादन्याय आदि ग्रंथ द्रष्टव्य हैं।
- इन विषयों के संबंध में बौद्ध न्याय के दृष्टिकोण को उचित रूप में समझने के लिए उपायहृदय, प्रमाणसमुच्चय, न्यायविंदु और वादन्याय आदि ग्रंथ द्रष्टव्य हैं।
- शांत रक्षित ने तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के साथ-साथ बौद्ध दर्शन एवं बौद्ध न्याय की आधारशिला रख कर उसे प्रतिष्ठित किया।
- न्यायदर्शन के आचार्यों से शास्त्रार्थ के प्रसंग में बौद्ध न्याय की अपूर्व प्रगति हुई तथा वह धर्मकीर्ति की कृतियों में अपने सर्वोच्च शिखर को प्राप्त हुआ।
- क्सोमा द कोरोस, शरच्चन्द दास, विद्याभूषण और पुर्से आदि ने तिब्बती भाषा, बौद्ध न्याय, सर्वास्तिवादी अभिधर्म आदि के आधुनिक ज्ञान का विस्तार किया।
- वसुबंधु से विद्या का अध्ययन कर इन्होंने बौद्ध न्याय के ऊपर अनेक विशिष्ट ग्रंथों का प्रणयन किया था, जिनमें प्रमाणसमुच्चय, न्यायप्रवेश, हेतुचक्रडमरू, तथा आलबंनपरीक्षा विशेष उल्लेखनीय हैं।
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