ब्रह्म वैवर्त पुराण वाक्य
उच्चारण: [ berhem vaivert puraan ]
"ब्रह्म वैवर्त पुराण" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- ब्रह्म वैवर्त पुराण में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी का नियम पूर्वक व्रत करने से पूर्व में संचित नष्ट हो जाते हैं और प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- ब्रह्म वैवर्त पुराण में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी का नियम पूर्वक व्रत करने से पूर्व में संचित नष्ट हो जाते हैं और प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर उल्लेख है-व्रजे कात्यायनी परा अर्थात वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है।
- श्रीमद्भागवत में वर्णित विषय विष्णु पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण में उपलब्ध है, जहां भागवत में राधा का प्रसंग बिलकुल नगण्य है वहीँ ब्रह्म वैवर्त पुराण में वह जीती जागती है.
- श्रीमद्भागवत में वर्णित विषय विष्णु पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण में उपलब्ध है, जहां भागवत में राधा का प्रसंग बिलकुल नगण्य है वहीँ ब्रह्म वैवर्त पुराण में वह जीती जागती है.
- क्या आपने यह भी पढ़ा है कि ब्रह्म वैवर्त पुराण में मोहिनी नामक वेश्या का आख्यान है जो ब्रह्मा से संभोग की याचना करती है और ठुकराए जाने पर उन्हें धिक्कारते हुए कहती है,
- विष् णु ' को ; ब्रह्म पुराण एवं पद् म पुराण में ‘ ब्रह्मा ' को तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण में ‘ सूर्य ' को अन् य देवताओं का स्रष् टा माना गया है।
- इसी तरह से ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएँ गणेश जी की पत्नियाँ हैं।
- इनकी संख्या अठारह बताई जाती है किन्तु प्रमुख पुराणों में ब्रह्माण्ड पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, शिव पुराण, मार्कण्डेय पुराण, विष्णु पुराण, गरुण पुराण, भागवत पुराण आदि आते हैं।
- ‘ मार्कण्डेय पुराण ', ‘ देवी भागवत ', ‘ श्रीमद् भागवत ' तथा ‘ ब्रह्म वैवर्त पुराण ' आदि में अनेक प्रसंगों में महालक्ष्मी जी अवतरित होने और उनके विभिन्न लीला चरित्र प्रत्यक्ष दिखाने का उल्लेख है।
- ब्रह्म वैवर्त पुराण 2. 6.13-95 के अनुसार, विष्णु की तीन पत्नियां हैं जो हमेशा आपस में झगड़ती रहती हैं, इसलिए अंत में उन्होंने केवल लक्ष्मी को अपने साथ रखा और गंगा को शिव जी के पास तथा सरस्वती को ब्रह्मा जी के पास भेज दिया.
- ब्रह्म वैवर्त पुराण और मनुस्मृति में ऐसे लोगों की घोर भत्र्सना की गई है जो इस मृत्युलोक में आकर अपने पितरों को भूल जाते हैं और सांसारिक मोहमाया के चक्कर में या अज्ञानतावश अथवा संस्कार हीनता के कारण कभी भी मरे हुए पितरों को याद नहीं करते है।
- वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ पितृपक्ष के दौरान अपने पितरों को उनकी दिवंगत तिथि के दिन तर्पण, पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्माणों को भोजन कराते हैं, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं।
- ब्रह्म वैवर्त पुराण (कृष्ण जन्म खंड १७व अध्याय) के अनुसार केदार नामक राजा सतयुग में सत्द्वीप पर राज करता था, वह वृद्ध होने पर अपने पुत्र को राज्य दे वन में जा तप करने लगा, जहाँ उसने तप किया वह स्थान केदार खंड नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
- पितृपक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं।
- १ ० / ८ ६ / १ ५) (वही) ब्रह्म वैवर्त पुराण में मोहिनी नामक वेश्या का आख्यान है जो ब्रह्मा से संभोग की याचना करती है और ठुकराए जाने पर उन्हें धिक्कारते हुए कहती है, ‘‘ उत्तम पुरुष वह है जो बिना कहे ही, नारी की इच्छा जान, उसे खींचकर संभोग कर ले।
- १ ० / ८ ६ / १ ५) (वही) ब्रह्म वैवर्त पुराण में मोहिनी नामक वेश्या का आख्यान है जो ब्रह्मा से संभोग की याचना करती है और ठुकराए जाने पर उन्हें धिक्कारते हुए कहती है, ‘‘ उत्तम पुरुष वह है जो बिना कहे ही, नारी की इच्छा जान, उसे खींचकर संभोग कर ले।
- Ref > [[भागवत पुराण]] (56-57), [[वायु पुराण]] (96, 20-98), [[पद्म पुराण]] (276, 1-37), [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]] (122), [[ब्रह्माण्ड पुराण]] (201, 15), [[हरिवंश पुराण]] (118) आदि।
- ब्रह्म वैवर्त पुराण में राजा कुशध्वज की पुत्री जिस तुलसी का शंखचूड़ से विवाह आदि का वर्णन है, तथा पृथ्वी लोक में हरिप्रिया वृन्दा या तुलसी जो वृक्ष रूप में देखी जाती हैं-ये सभी सर्वशक्तिमयी राधिका की कायव्यूहा स्वरूपा, सदा-सर्वदा वृन्दावन में निवास कर और सदैव वृन्दावन के निकुंजों में युगल की सेवा करने वाली वृन्दा देवी की अंश, प्रकाश या कला स्वरूपा हैं।
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