भगवतशरण उपाध्याय वाक्य
उच्चारण: [ bhegavetshern upaadheyaay ]
उदाहरण वाक्य
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- मुड़ने से पहले उनकी एक ही पुस्तक के कुछ अंशों को रखते हुए उस भगवतशरण उपाध्याय के प्रभामंडल का
- -भगवतशरण उपाध्याय संस्कृति हम कैसी अर्थव्यवस्था चाहते हैं, यह सवाल इससे जुड़ा हुआ है कि हम कैसी संस्कृति चाहते हैं.
- पुरातत्वेत्ता को कितना श्रम करना पड़ता है यह तो डॉ भगवतशरण उपाध्याय की पुस्तकों और संस्मरणों से ही पता चला था।
- डॉ भगवतशरण उपाध्याय की वृहत्तर भारत पुस्तक में सरसरी तौर पर यह उल्लेख आता है पर इसका कोई प्रमाण वहां नहीं मिलता।
- किन्तु, अति-व्यस्तता के कारण डा. भगवतशरण उपाध्याय जी ने ‘ संकलन ' की भूमिका लिखने में असाधारण विलम्ब कर दिया।
- सज्जाद जहीर, मन्मथनाथ गुप्त, भगवतशरण उपाध्याय, बाबा नागार्जुन, त्रिलोचन, बालकृष्ण बलदुआ, शील जी, सव्यसाची, विश्वंभरनाथ उपाध्याय।
- भगवतशरण उपाध्याय जब कहते हैं कि नाटकों की सही परिपाटी भी प्रस्तुत न हुई थी कि सिनेमा ने उसपर छापा मार कर अधिकार कर लिया।
- परंतु डा. भगवतशरण उपाध्याय के अनुसार [1] अमीर ख़ुसरो (जन्म 652 हिजरी) भारत में सर्वप्रथम क़व्वाली गायन का प्रचलन किया था।
- हमारा चन्द्रगुप्त, यूनानी सेण्ड्रॉकोट्टस बनता है वैसे ही मूल यूनानी अलेक्जेंडर भगवतशरण उपाध्याय का अलिकसुंदर, फिर जयशंकर प्रसाद का अलक्षेन्द्र और तब यह फारसी उच्चारण सिकंदर।
- समीक्षित अंक में प्रकाशित आलेख भारतीरय संस्Ñति के निर्माण में विभिन्न जातियों का योग (भगवतशरण उपाध्याय) व कामतानाथ जी पर एकाग्र संस्मरण विशिष्ठ रचनाएं हैं।
- मार्शल का तक्षशिला पर लिखा ग्रथ पढ़ा, डॉ मोतीचंद्र का ग्रंथ ' प्राचीन वेषभूषा ' पढ़ा और भगवतशरण उपाध्याय का ' सार्थवाह ' ग्रंथ पढ़ा.
- भगवतशरण उपाध्याय ने गीत की परिभाषा करते हुए लिखा है-' गीतिकाव्य कविता की वह विधा है, जिसमें स्वानुभूति-प्रेरित भावावेश की आर्द्र और तरल आत्माभिव्यक्ति होती है।
- भगवतशरण उपाध्याय ने ठीक वही बात आपके उपन्यासों के बारे में कही है कि वे कला की दृष्टि से बहुत उत्कृष्ट हैं लेकिन वे मूल्य-दृष्टि से सहमत नहीं।
- हमारा चन् द्रगुप् त, यूनानी सेण् ड्रॉकोट्टस बनता है वैसे ही मूल यूनानी अलेक्जेंडर भगवतशरण उपाध्याय का अलिकसुंदर, फिर जयशंकर प्रसाद का अलक्षेन्द्र और तब यह फारसी उच्चारण सिकंदर।
- डॉ भगवतशरण उपाध्याय (भारतीय संस्कृति के स्रोत) के अनुसार यह असूरियाई (मेसोपोटेमियाई) शब्द है और विभिन्न संस्कृतियों के मेल के साथ इंडो-यूरोपीय परिवार में भी चला आया।
- जिस बलिया ने भगवतशरण उपाध्याय, हजारी प्रसाद द्विवेदी, अमरकान्त और केदारनाथ सिंह जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों / बुद्धिजीवियों को पैदा किया, वहाँ आज पढ़ने की परम्परा खत्म हो रही है।
- डॉ. भगवतशरण उपाध्याय और राजशेखर व्यास के लेखों से सजी इस पुस्तक में भारत की संस्कृति, सभ्यता, कला, संगीत और इतिहास आदि हर पहलू को सरल शब्दों में सुंदर तरीके से उकेरा गया है।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, हरदेव बाहरी, भोलानाथ तिवारी, रामचंद्र वर्मा, वासुदेवशरण अग्रवाल, रामधारीसिंह दिनकर, भगवतशरण उपाध्याय कितने ही विद्वानों की अलग अलग पुस्तकों में जो भी शब्द-संदर्भ मिलते रहे हैं उनसे मैने लाभ लिया है।
- इसके बाद के उस दौर का भी स्मरण यहां आवश्यक है, जब राहुल सांकृत्यायन की 'वोल्गा से गंगा', रामधारी सिंह दिनकर की 'संस्कृति के चार अध्याय' और भगवतशरण उपाध्याय की 'पुरातत्व का रोमांस' जैसी पुस्तकें प्रकाशित हुई।
- डॉ भगवतशरण उपाध्याय भी भारतीय संस्कृति के स्रोत पुस्तक में फिनीशियाई लोगों अर्थात फणियों के भारत भूमि पर बसे होने का उल्लेख करते हैं हालांकि वे ये स्पष्ट संकेत नहीं करते कि ये लोग कहां के मूल निवासी थे।
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