भगवती सूत्र वाक्य
उच्चारण: [ bhegaveti suter ]
उदाहरण वाक्य
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- मंत्री मुनि सुमेरमल ने भगवती सूत्र को सर्वज्ञान के खजाने के रुप में परिभाषित करते हुए कहा कि वर्तमान में उपलब्ध आगमों में भगवती सूत्र सबसे बडा है।
- यद्यपि श्रमण और श्रमणेतरों के वादों की चर्चा जैन परम्परा के दृष्टिवाद एवं भगवती सूत्र * और सूत्रकृतांग * में तथा बौद्ध परम्परा के त्रिपिटकों * में भी उपलब्ध होती है।
- इनके नाम ये हैं-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवती सूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, उपासक दशांग, अंतकृत् दशांग, अनुत्तोरोपपातिक दशांग, प्रश्न व्याकरण, विपाकश्रुत, हृष्टिवाद ।
- संघ की सहयोगी संस्था श्री अगरचन्द भैंरूदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्थान, बीकानेर के प्रकाशनों यथा नवतत्व, पन्नवणासूत्र के थोकडे, भगवती सूत्र के थोकडे आदि संकलन व संपादन में संघ का विशिष्ट योगदान रहा है।
- प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों में साहित्यिक स्त्रोत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जो आठवीं सदी ई. पू. में रचित शतपथ ब्राह्मण, परवर्ती काल के विभिन्न पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध रचनाओं में अंगतुर निकाय, दीर्घ निकाय, विनयपिटक, जैन रचनाओं में भगवती सूत्र आदि से प्राप्त होते हैं ।
- प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों में साहित्यिक स्त्रोत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जो आठवीं सदी ई. पू. में रचित शतपथ ब्राह्मण, परवर्ती काल के विभिन्न पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध रचनाओं में अंगतुर निकाय, दीर्घ निकाय, विनयपिटक, जैन रचनाओं में भगवती सूत्र आदि से प्राप्त होते हैं ।
- प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों में साहित्यिक स्त्रोत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जो आठवीं सदी ई. प ू. में रचित शतपथ ब्राह्मण, परवर्ती काल के विभिन्न पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध रचनाओं में अंगतुर निकाय, दीर्घ निकाय, विनयपिटक, जैन रचनाओं में भगवती सूत्र आदि से प्राप्त होते हैं ।
- इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
- इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
- इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
- इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
- इसी वर्ष आचार्य श्री तुलसी का चातुर्मास जोधपुर था! चातुर्मासिक प्रवेश 7 जुलाई को हुआ! आचार्यवर ने उन्हें (महाश्रमण) प्रात: उपदेश देने का निर्देश दिया! 8 जुलाई से मुनि मुदित कुमारजी (महाश्रमण) उपदेश देना प्रारंभ किया! उनकी वक्तृत्व शैली व् व्याख्या करने के ढंग ने लोगो को अतिशय प्रभावित किया! जोधपुर के तत्व निष्ठ सुश्रावक श्री जबरमलजी भंडारी ने कहा इनकी व्याख्यान शैली से लगता है ये आगे जाकर महान संत बनेगे! 1985 के आमेट चातुर्मास में भगवती सूत्र के टिपण लेख में भी सहयोगी बने!
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