भूतबलि वाक्य
उच्चारण: [ bhutebli ]
उदाहरण वाक्य
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- भूतबलि आचार्य ने इस षट्खण्डागम सूत्रों को ग्रंथ रूप में बद्ध किया और ज्येष्ठ सुदी पंचमी के दिन चतुर्विध संघ सहित कृतिकर्मपूर्वक महापूजा की।
- भूतबलि आचार्य ने इस षट्खण्डागम सूत्रों को ग्रंथ रूप में बद्ध किया और ज्येष्ठ सुदी पंचमी के दिन चतुर्विध संघ सहित कृतिकर्मपूर्वक महापूजा की।
- अतः उन्होंने बीस अधिकार गर्भित सत्प्ररूपणा सूत्र को बनाकर शिष्यों को पढाया और भूतबलि मुनि अभिप्राय जानने जिनपालित को यह ग्रंथ देकर उनके पास भेज दिया।
- अतः उन्होंने बीस अधिकार गर्भित सत्प्ररूपणा सूत्र को बनाकर शिष्यों को पढाया और भूतबलि मुनि अभिप्राय जानने जिनपालित को यह ग्रंथ देकर उनके पास भेज दिया।
- षटखंड़ागम ग्रंथ के मंगलाचरण के रूप में आचार्य पुष्पदंत एवं भूतबलि स्वामी ने ईसा की पहली शताब्दी में इसे प्राकृत भाषा में पहली बार लिपिबद्ध किया ।
- मान्यता अनुसार, शास्त्रों के घटते ज्ञान से चिंतित होकर उन्होंने दो साधुओं, आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि को अपने आश्रयस्थल, गिरनार पर्वत, गुजरात में स्थित चंद्र गुफा, में बुलाया।
- भूतबलि ने जिनपालित के पास उन सूत्रों को देखकर पुष्पदन्त आचार्य को अल्पायु जानकर महाकर्म प्रकृति पाहुड का विच्छेन ना हो जाये इस ध्येय से आगे द्रव्यप्रमाणादि आगम की रचना की।
- भूतबलि ने जिनपालित के पास उन सूत्रों को देखकर पुष्पदन्त आचार्य को अल्पायु जानकर महाकर्म प्रकृति पाहुड का विच्छेन ना हो जाये इस ध्येय से आगे द्रव्यप्रमाणादि आगम की रचना की।
- आचार्य गुणधर की रचना कसाय पाहुड सुत्त तथा आचार्य धरसेन एवं उनके शिष्यों आचार्य पुष्पदंत तथा आचार्य भूतबलि द्वारा रचित षटखंडागम है जिनमें प्रथम शताब्दी के लगभग की शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग हुआ है।
- सिद्धरबस्ति के एक शिलालेख में कहा गया है कि अर्हद्बलि ने अपने दो शिष्यों, पुष्पदंत और भूतबलि, द्वारा बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की और उन्होंने मूल संघ को चार शाखाओं में विभाजित किया-सेन, नंदि, देव और सिंह।
- आचार्य गुणधर कृत ' कसाय-पाहुड ' एवं आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि कृत ' षट्खण्डागम '-ये दो जैनधर्म के ऐसे विशाल एवं अमूल्य-सिद्धान्त ग्रन्थ हैं, जिनका सीधा सम्बन्ध तीर्थंकर महावीर स्वामी की द्वादशांग वाणी से माना जाता है।
- गिरनार में धरसेनाचार्य का उपदेश ग्रहण कर पुष्पदंत और भूतबलि आचार्यों के द्रविड़ देश को जाने और वहीं आगम की सूत्र-रूप रचना करने के वृत्तान्त से यह भी सिद्ध होता है कि उक्त काल में काठियावाड़-गुजरात से लेकर सुदूर तामिल प्रदेश तक जैन मुनियों का निर्बाध गमनागमन हुआ करता था।
- उन्होंने वही ज्ञान पुष्पदंत और भूतबलि आचार्यों को प्रदान किया और उन्होंने उसी ज्ञान के आधार से सत्कर्मप्राभृत अर्थात् षठ्खंडागम की सूत्र रूप रचना की। क्रमश.....23 ********** इसके मूल लेखक है........... डॉ. हीरालाल जैन, एम. ए., डी. लिट्., एल. एल. बी., अध्यक्ष-संस्कृत, पालि, प्राकृत विभाग, जबलपुर विश्वविद्यालय ; म.
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