भ्रामकता वाक्य
उच्चारण: [ bheraamektaa ]
"भ्रामकता" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- वह विचार जिसने, अभी तक की दुनिया की भ्रामकता के तमाम मानदण्डों को तोड़कर, दुनिया के सबसे धड़कते मध्यवर्ग को अपनी लपेट में लिया हुआ है।
- संस्थान चैयरमेन डॉ सी. एल. गहलोत ने बताया कि आयोजन का उद्ेश्य छात्रों में फैली गणित व विज्ञान विषयों के प्रति भ्रामकता व डर को बाहर निकालना है।
- यह कहना नितान्त गलत और भ्रामकता को फैलाना होगा कि जिन लोगों ने इस शराब का सेवन किया है वे यह भी नहीं जानते होंगे कि यह खतरनाक हो सकती है।
- इससे मेरी लेखन क्षमता (चाहे उसे जातक साहब क्षमता के स्थान पर भ्रामकता, मूर्खता या कोई ऐसा अन्य नाम देवें) के सामने आने में भारी मदद जो मिलेगी.
- ३२ माओवादियों के मारे जाने की खबर और लगातार चल रही मुठभेढ़ की भ्रामकता ने इस इलाके की नाकेबंदी करने में मदद की ताकि गाँवों में आगजनी और तबाही को अंजाम दिया जा सके.
- जब तुम इसकी भ्रामकता को देख पाते हो, तो घर की खोज की बजाएं उसकी खोज प्रारम् भ करोगे जो जन् म से ही बेघर है, जिसका भाग् य ही बेघर होना है।
- ३ २ माओवादियों के मारे जाने की खबर और लगातार चल रही मुठभेढ़ की भ्रामकता ने इस इलाके की नाकेबंदी करने में मदद की ताकि गाँवों में आगजनी और तबाही को अंजाम दिया जा सके.
- वैकल्पिक चिकित्सा के संबंध में इस तथ्य को झुठलाने के प्रयास के रूप में कभी-कभी प्रकृति के प्रति अपील की भ्रामकता का सहारा लिया जाता है, अर्थात, “जो प्राकृतिक है वह हानिकारक नहीं हो सकता.”
- मीडिया वास्तव में बाजारवाद का शिकार हो चुका है जो खबरे सनसनी फैलाती है उन्हें ही दिखाया जाता है टी आर पी रेटिंग के चलते खबरे विश्वसनीय नहीं बन पाती मीडिया को भ्रामकता तथा उकसाने वाली खबरों से दूर रहना चाहिए
- झांसी-देश-विदेश से एकत्र हुए जाने-माने मनोरोग विशेषज्ञों की अमर महल, ओरछा में चली कान्फरेस के बाद बुंदेलखंड में मनोरोग को लेकर फैली भ्रामकता को देर करने के लिए आज मेडिकल कालेज के ऑडीटोरियम में जाने माने चिकित्सकों एवं जनता के बीच मनोरोग से सम्बंधित सवाल-जवाब से सीधा संवाद हुआ।
- रोचक तथ्यों को अगर संकुचित मानसिकता से हट कर बहस का विषय बनाया जाय तो समाज का भी भला होता है और आने वाली पीढ़ी को भी मार्गदर्शन मिलता केवल भ्रामकता फैलाने से कुछ हासिल नहीं होता / आपको सप्ताह का ब्लागर बनाने का सम्मान मिला उसके लिए आपको लाख लाख बधाई!!!!
- पता है ये मेरे ख्वाब कभी प्राप्त नहीं होगे पूर्णता को,,,,, मै जी रहा हूँ नितांत भ्रामकता में,,, पर तेरे अहसासों की हर रौ,,, नहीं दूर होने देती स्म्रतियो का ये भ्रमजाल,,,, काल्पनिक सुखद ही सही पर सुख कर तो है ही,,,,,, सादर प्रवीण पथिक ९९ ७ १ ९ ६ ९ ० ८ ४
- नि: सन्देह बार-बार ही कह रहा हूँ-हजारों बार कह रहा हूँ कि यह संस्था घोर अज्ञानी और भ्रामकता की शिकार है जिसको परमात्मा के विषय में कोई कुछ भी जानकारी तो है ही नहीं, जीव के विषय में भी कोई भी जानकारी नहीं है, क्योंकि जीव की जानकारी होती तो जीव का ही सारा लक्षण-वर्णन आत्मा पर साट करके वर्णित नहीं करते।
- ज्योतिष के विषय पर लाखों लोगों की अपनी-अपनी विवादित राय, कई लोगों की नजर में ज्योतिष सिर्फ भ्रम फैलाने का कार्य है, कई लोगों की नजर में लोगों को ठगने का माध्यम तो कई लोगों की राय में यह कोई विद्या ही नहीं है, सिर्फ भ्रामकता है, तो कई लागों की राय में यह एक परिपक्व एवं शास्त्रोक्त विद्या तो कुछ लोगो की नजर में समय पास करने का एक सशक्त माध्यम।
- जहाँ तक मेरी जानकारी है कई दशक पहले कुछ साहित्यकारोँ ने एक पत्रिका मेँ उपसंपादन करते समय ऐसे हिज्जोँ की विविधता और भ्रामकता से घबरा कर एक अजीब सा (लेकिन पूरी तरह ग़लत और निराधार) नियम बना लिया कि यदि किसी शब्द के अंत मेँ ‘ या ' है तो उस के स्त्रीलिंग और बहुवचन रूपोँ मेँ ‘ यी ' और ‘ ये ' का प्रयोग किया जाए. यानी ‘जा ये गा, जा यें गे' लिखे जाएँगे.
- जहाँ तक मेरी जानकारी है कई दशक पहले कुछ साहित्यकारोँ ने एक पत्रिका मेँ उपसंपादन करते समय ऐसे हिज्जोँ की विविधता और भ्रामकता से घबरा कर एक अजीब सा (लेकिन पूरी तरह ग़लत और निराधार) नियम बना लिया कि यदि किसी शब्द के अंत मेँ ‘या ' है तो उस के स्त्रीलिंग और बहुवचन रूपोँ मेँ ‘यी ' और ‘ये ' का प्रयोग किया जाए. यानी ‘जायेगा, जायेंगे' लिखे जाएँगे. इस विषय पर भी ‘प्रशासनिक शब्दावली-हिंदी-अंग्रेजी'
- किसी भी राष्ट्र के नागरिकों को निश्चय ही सदैव चेतना-युक्त होना चाहिए और सामाजिक व राष्ट्रीय महत्व के विषयों के प्रति गंभीर होना चाहिए और इतिहास ऐसे ही महत्व के विषयों में से एक है| परन्तु विडम्बना यह है कि आज अधिकतर विद्यार्थी इस विषय का उपहास करते नज़र आते हैं| इस उपहास का मुख्य कारण इतिहास का महत्व न समझ पाना, इसके अध्ययन में घटती रूचि, प्रचलित इतिहास में व्याप्त भ्रामकता और ऐतिहासित तथ्यों में उथलेपन से उत्पन्न बोरियत है| यह एक चिंता का विषय है|
- किसी भी राष्ट्र के नागरिकों को निश्चय ही सदैव चेतना-युक्त होना चाहिए और सामाजिक व राष्ट्रीय महत्व के विषयों के प्रति गंभीर होना चाहिए और इतिहास ऐसे ही महत्व के विषयों में से एक है | परन्तु विडम्बना यह है कि आज अधिकतर विद्यार्थी इस विषय का उपहास करते नज़र आते हैं | इस उपहास का मुख्य कारण इतिहास का महत्व न समझ पाना, इसके अध्ययन में घटती रूचि, प्रचलित इतिहास में व्याप्त भ्रामकता और ऐतिहासित तथ्यों में उथलेपन से उत्पन्न बोरियत है | यह एक चिंता का विषय है |
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