मरुद्गण वाक्य
उच्चारण: [ merudegan ]
उदाहरण वाक्य
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- इसके मूल में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा स्कन्ध में रुद्र, टहनियों में मुनि, देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण एवं फलों में सारे प्रजापति रहते हैं।
- इसके मूल में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा स्कन्ध में रुद्र, टहनियों में मुनि, देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण एवं फलों में सारे प्रजापति रहते हैं।
- जब वह मरुद्गण वर्षा का सृजन करते है तो विद्युत रंभाने वाली गाय की तरह शब्द करती है, (जिस प्रकार) गाय बछड़ो को पोषण देती है, उसी प्रकार वह विद्युत सिंचन करती है॥८॥
- जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं-वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं॥22॥
- यदेषां वृष्टिरसर्जि ॥८॥ जब वह मरुद्गण वर्षा का सृजन करते है तो विद्युत रंभाने वाली गाय की तरह शब्द करती है, (जिस प्रकार) गाय बछड़ो को पोषण देती है, उसी प्रकार वह विद्युत सिंचन करती है॥८॥ ४६५.
- आदित्यगण, वसुगण, रुद्रगण, तुषितगण, मरुद्गण, विश्वेदेवगण जिनके दृष्टिपात् से ही चौदह भुवनों का पतन संभव है, क्या वे लोग इस पर्वत की वृद्धि रोकने में समर्थ नहीं है? हाँ, कारण समझ में आया।
- भावार्थ: जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं-वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं॥ 22 ॥
- इस वन दाह से अग्नि देव तृप्त हो गये तथा उनका रोग भी नष्ट हो गया उसी समय इन्द्र मरुद्गण आदि देवताओं के साथ प्रकट हुए तथा देवताओं के लिए भी जो कार्य कठिन है, उसे करने वाले अर्जुन तथा कृष्ण को उन्होंने वर मांगने के लिए कहा।
- गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ् घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥ भावार्थ: जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं-वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं॥ 22 ॥ रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो बहुबाहूरूपादम् ।
- गाय के सींगो के अग्र भाग में देवराज इंद्र, हृदय में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा और ललाट में शंकर, दोनों नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, जीभ में सरस्वती, दांतो में मरुद्गण, स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गोमूत्र में गंगा, गोबर में लक्ष्मी व खुरों के अग्र भाग में अप्सराए निवास करती है।
- भगवान हिरण्यगर्भ इन्द्र प्रजापति मरुद्गण वसु रुद्र सूर्य तारे ग्रह गन्धर्व यक्ष और दैत्य आदि समस्त देव योनियां मनुष्य पश पर्वत समुद्र नदी वृक्ष सम्पूर्ण भूत तथा प्रधान से लेकर विशेष पर्यन्त उन भूतों के कारण तथा चेतन अचेतन एक पैर दो पैर और अनेक पैर वाले जीव तथा बिना पैर वाले प्राणी ये सब भगवान विष्णु के त्रिविध भावनात्मक मूर्तरूप है।
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