महामति प्राणनाथ वाक्य
उच्चारण: [ mhaameti peraanenaath ]
उदाहरण वाक्य
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- महामति प्राणनाथ का मानना था कि हिन्दी भाषा सरल व सुगम है इसलिए जनसामान्य तक इसी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है ।
- १८ प्रकरण ६१ श्री किरन्तन महामति प्राणनाथ वाणी चिंतन और मंथन हे धनी! आपने अपनी सारी विशेषताएँ मुझे प्रदान कीं, इसमें कोई सन्देह नहीं रहा.
- (किरन्तन, 7 / 11) महामति प्राणनाथ जी इस तरह पाखंड पर प्रहार करके मुक्ति के लिए स्वयं को पहचानने का आव्हान करते हैं ।
- 36. महामति प्राणनाथ: (1618-1694) महामति प्राणनाथ के समय में औरंगजेब का शासन था जिसके अत्याचार के चलते लाखों हिन्दू अपना नाम छोड़कर मुस्लिम नाम रख रहे थे।
- 36. महामति प्राणनाथ: (1618-1694) महामति प्राणनाथ के समय में औरंगजेब का शासन था जिसके अत्याचार के चलते लाखों हिन्दू अपना नाम छोड़कर मुस्लिम नाम रख रहे थे।
- सुबह चार बजे के आसपास जब उनकी गाड़ी मऊ कस्बे पहुंची तो वहां महामति प्राणनाथ विद्यालय के मार्शन का अगला टायर फट गया और वह अनियन्त्रिात हो सीधे सामने खड़े ट्रक से जा टकराई।
- महामति प्राणनाथ ने निराश, खंडित, दलित तथा विश्रृंखिलत समाज को समेटने तथा सर्वधर्म समन्वित लोक आस्थाओं को स्थापित करने तथा टूटे, उदास हृदयों को जगाकर खड़ा करने का अभिनव प्रयास किया ।
- महामति प्राणनाथ के समय में औरंगजेब का शासन था जिसमें एक ओर तो उद्दंड क्रूर राज कर्मचारी धर्म की आड़ लेकर मनमाने अत्याचार कर रहे थे दूसरी ओर शोषित हिन्दू जन अपना ‘ हिन्दू ‘ नाम बचाने के लिए अपने ही में सिमटे जा रहे थे ।
- संपादक के शब्दों में कहें तो, जिस प्रकार हिंदी के सूरदास (1478-1583) के ‘ सूरसागर ' में सख्य भाव के पद मिलते हैं, उसी प्रकार सिंधी के महामति प्राणनाथ (1618-1694) की ‘ सिंधी वाणी ' में सख्य भावापन्न पद उपलब्ध हैं.
- यहाँ मुझे उल्लेख करना चाहिए कि गुजरात में भी मध्यकालीन संतों का हिन्दी वाणी, ब्रजभाषा पाठशाला, तथा महामति प्राणनाथ जैसे क्षेत्रों में काम हुआ है पर अगर हम कह सकें तो हिन्दी वर्चस्व का स्वर तथा साहित्य की अपनी विशेष राजनीतिक दृष्टि के कारण उन कामों पर वैसा विचार नहीं हुआ है जिससे हिन्दी शिक्षण की भारतीयता उभर कर आती।
- यहाँ मुझे उल्लेख करना चाहिए कि गुजरात में भी मध्यकालीन संतों का हिन्दी वाणी, ब्रजभाषा पाठशाला, तथा महामति प्राणनाथ जैसे क्षेत्रों में काम हुआ है पर अगर हम कह सकें तो हिन्दी वर्चस्व का स्वर तथा साहित्य की अपनी विशेष राजनीतिक दृष्टि के कारण उन कामों पर वैसा विचार नहीं हुआ है जिससे हिन्दी शिक्षण की भारतीयता उभर कर आती।
- उनकी प्रकाशित कृतियों मे शामिल है-उपन्यास-' पिछले पन्ने की औरतें ', कहानी संग्रह-' बाबा फ़रीद अब नहीं आते ', ' तीली-तीली आग ', साक्षरता विषयक-दस कहानी संग्रह, मध्य प्रदेश की आदिवासी जनजातियों के जीवन पर दस पुस्तकें, शोध ग्रंथ-खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व, न्यायालयिक विज्ञान की नयी चुनौतियाँ, महामति प्राणनाथ: एक युगांतरकारी व्यक्तित्व।
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