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मालगुडी डेज़ वाक्य

उच्चारण: [ maalegaudi dej ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • मालगुडी डेज़ ” के छोटे से कस्बे की मिट्टी मानो लक्ष्मण के कार्टूनों को पाकर सोंधी होकर महक उठी हो.
  • आर. के. नारायण की लघु कथाओं पर आधारित ‘ मालगुडी डेज़ ' इस बात की एक उम्दा मिसाल है।
  • पद्मराग फिल्म्स के टी. एस.नरसिम्हन द्वारा 1987 में निर्मित मालगुडी डेज़ का निर्देशन दिवंगत कन्नड़ अभिनेता व निर्देशक शंकर नाग ने किया था।
  • पद्मराग फिल्म्स के टी. एस.नरसिम्हन द्वारा 1987 में निर्मित मालगुडी डेज़ का निर्देशन दिवंगत कन्नड़ अभिनेता व निर्देशक शंकर नाग ने किया था।
  • अनगिनत धारावाहिक थे, जिन्हें पाने की लालसा हमेशा रहती है पर अभी तक सिर्फ चाणक्य और मालगुडी डेज़ का ही जुगाड़ हो पाया है.
  • उन्होंने प्रसिद्द उपन्यासकार आर. के. नारायण (ಆರ್.ಕೆ.ನಾರಾಯನ್) की लघुकथाओं पर आधारित टेलीविजन धारावाहिक मालगुडी डेज़ (ಮಾಲ್ಗುಡಿ ಡೇಸ್) में भी निर्देशन एवं अभिनय किया था.
  • शंकर ने पद्म राग फिल्म्स के बैनर तले आर. के. नारायण की लघु कथा संग्रह पर आधारित मालगुडी डेज़ के निर्देशन का प्रस्ताव स्वीकार किया.
  • शंकर ने पद्म राग फिल्म्स के बैनर तले आर. के. नारायण की लघु कथा संग्रह पर आधारित मालगुडी डेज़ के निर्देशन का प्रस्ताव स्वीकार किया.
  • मालगुडी डेज़ अपने को कोई खास पसंद नहीं था, बोरिंग लगता था इसलिए सारे एपिसोड नहीं देखे, कुछ एपिसोड देखने के बाद इसको देखना बंद कर दिया था।
  • मालगुडी डेज़, हम लोग, बुनियाद, सुरभि, नुक्कड़, उड़ान! सोचती हूं कि जीवन में हमेशा ज़्यादा मिलने पर ही ख़ुशी हो, यह ज़रूरी नहीं।
  • आर के नारायण की कालजयी कृति पर आधारित मालगुडी डेज़ इन्हीं में से एक ऐसा धारावाहिक था जो खासा लोकप्रिय हुआ और जिसका इस दौर के बच्चों पर गहरा असर पड़ा।
  • आर के नारायण की कालजयी कृति पर आधारित मालगुडी डेज़ इन्हीं में से एक ऐसा धारावाहिक था जो खासा लोकप्रिय हुआ और जिसका इस दौर के बच्चों पर गहरा असर पड़ा।
  • वो बुनियाद हो या प्रथम-प्रतिश्रुति, मालगुडी डेज़ हो या ये जो है ज़िन्दगी, रामायण हो या महाभारत......कितने नाम!!! आज इतने चैनल्स हैं जो दिन-रात केवल सीरियल ही दिखा रहे हैं लेकिन कर पाये रामायण-महाभारत या हम लोग जैसा कमाल?
  • तो क्या मदर्स डे, फ़ादर्स डे और वैलेण्टाइन डे वाली टेलीविजन धारावाहिकीय संस्कृति ही हमारे समाज का पूरा सच है? अगर नहीं, तो ‘ मालगुडी डेज़ ' जैसे सीरियल आज क्यों कोई बना नहीं पा रहा?
  • क्या संजोग है भाई… आजकल बैठा मालगुडी डेज़ ही देख रहा हूँ और सोचता रहा हूँ कि अगर शंकर नाग की एक्सीडेंट में १९९० में मृत्यु नहीं हुई होती तो शर्तिया हमारे पास और भी बेहतरीन टी वी सीरियल्स और शायद फिल्में भी होतीं.
  • इसी प्रकार बुनियाद, गणदेवता, मिर्ज़ा ग़ालिब, शरतचंद्र के ' श्रीकांत ', आर. के. नारायण की ' मालगुडी डेज़ ', प्रेमचंद्र रचित ' निर्मला ', शरदिंदु बंधोपाध्याय के ' व्योमकेश बक्षी ', नेहरु जी रचित ' भारत एक खोज ', बिमल मित्र के ' मुजरिम हाज़िर ' आदि न जाने कितने उम्दा कार्यक्रमों को हमने देखा....
  • वो बुनियाद हो या प्रथम-प्रतिश्रुति, मालगुडी डेज़ हो या ये जो है ज़िन्दगी, रामायण हो या महाभारत...... कितने नाम!!! आज इतने चैनल्स हैं जो दिन-रात केवल सीरियल ही दिखा रहे हैं लेकिन कर पाये रामायण-महाभारत या हम लोग जैसा कमाल? भारत एक खोज या चाणक्य जैसा धारावाहिक दिखने का माद्दा है इनमें? फूहड़ और बेसिर पैर की कहानियों के अलावा और कुछ भी नहीं है अब।
  • दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगुडी डेज़, ये जो है जिन्दगी, रजनी, ही मैन,वाहः जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज, व्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख ने देश भर में अपना एक खास दर्शक वर्ग ही नहीं तैयार कर लिया था बल्कि गैर हिन्दी भाषी राज्यों में भी इन धारवाहिकों को ज़बर्दस्त लोकप्रियता मिली।
  • मालगुडी डेज़, ये जो है जिन्दगी, रजनी, ही मैन, वाहः जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज, व्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख आदि कुछ ऐसे सीरियल्स रहे हैं, जिसे उस दौर के हम और आपमें से कई ऐसे होंगे जिन्हें इन सीरियलों का बेसब्री से इन्तज़ार रहता था।
  • दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगुडी डेज़, ये जो है जिन्दगी, रजनी, ही मैन, वाहः जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज, व्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख ने देश भर में अपना एक खास दर्शक वर्ग ही नहीं तैयार कर लिया था बल्कि गैर हिन्दी भाषी राज्यों में भी इन धारवाहिकों को ज़बर्दस्त लोकप्रियता मिली।
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