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मुंशी दयानारायण निगम वाक्य

उच्चारण: [ muneshi deyaanaaraayen nigam ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • प्रेमचंद के बेटे और साहित्यकार अमृतराय के अनुसार वह उर्दू मासिक पत्रिका ' जमाना' के संपादक मुंशी दयानारायण निगम की सलाह पर धनपतराय से प्रेमचंद बने लेकिन उन्होंने मुंशी शब्द का स्वयं कभी प्रयोग नहीं किया।
  • प्रेमचंद के बेटे और साहित्यकार अमृतराय के अनुसार वह उर्दू मासिक पत्रिका ' जमाना' के संपादक मुंशी दयानारायण निगम की सलाह पर धनपतराय से प्रेमचंद बने लेकिन उन्होंने मुंशी शब्द का स्वयं कभी प्रयोग नहीं किया।
  • एम. करिअप्पा, दादा भाई नारौजी के २८१७ मदो की विषय सूचीतैयार की गई और बगावत अवधि से संबंधित प्रलेखो और दादा भाईनारौजी, स्वामी श्रद्वानंद और मुंशी दयानारायण निगम कागजपत्रोके ५३८१ मदो की जांच सूची पूरी की गई.
  • प्रेमचंद के बेटे और साहित्यकार अमृतराय के अनुसार वह उर्दू मासिक पत्रिका ' जमाना ' के संपादक मुंशी दयानारायण निगम की सलाह पर धनपतराय से प्रेमचंद बने लेकिन उन्होंने मुंशी शब्द का स्वयं कभी प्रयोग नहीं किया।
  • वहीं पर ‘जमाना ' पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम से उसकी मित्रता हुई और पहली कहानी “बड़े घर की बेटी ” ज़माना पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई जो धारावाहिक रूप मे छपी।
  • इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचन्द ने दयानारायण निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी नयाबराय या धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचन्द नाम सुझाया।
  • इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचन्द ने दयानारायण निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी नयाबराय या धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचन्द नाम सुझाया।
  • इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचन्द ने दयानारायण निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी नयाबराय या धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचन्द नाम सुझाया।
  • वहीं पर ‘ जमाना ' पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम से उसकी मित्रता हुई और पहली कहानी “ बड़े घर की बेटी ” ज़माना पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई जो धारावाहिक रूप मे छपी।
  • मुंशी दयानारायण निगम ने भी ‘ जमाना ' में प्रशंसनीय टिप्पणी की: ” चार नौजवान मुसन्निफों ने, जिनमें एक लेडी डाॅक्टर भी हैं, ‘ अंगारे ' नाम से अपने दस किस्सों को किताबी सूरत में शाए किया।
  • अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा “हमारा काम तो केवल खेलना है-खूब दिल लगाकर खेलना-खूब जी-तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे।
  • अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा “हमारा काम तो केवल खेलना है-खूब दिल लगाकर खेलना-खूब जी-तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे।
  • अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा “हमारा काम तो केवल खेलना है-खूब दिल लगाकर खेलना-खूब जी-तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे।
  • इस पर उन्होंने अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर अपना छद्म नाम ‘ प्रेमचन्द ' रखा और इस नाम से उनकी पहली कहानी ‘ बड़े घर की बेटी ' उर्दू मासिक पत्रिका ‘ ज़माना ' के दिसम्बर, 1910 के अंक में प्रकाशित हुई।
  • ध्यातव्य यह भी है कि नवाबराय के लेखकीय नाम से लिखने वाले धनपतराय श्रीवास्तव ने प्रेमचंद का वह लेखकीय नाम भी मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव से ही अंगीकृत किया था जिसकी छाया में उनका वास्तविक तथा अन्य लेखकीय नाम गुमनामी के अंधेरों में खोकर रह गए।
  • ध्यातव्य यह भी है कि नवाबराय के लेखकीय नाम से लिखने वाले धनपतराय श्रीवास्तव ने प्रेमचंद का वह लेखकीय नाम भी मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव से ही अंगीकृत किया था जिसकी छाया में उनका वास्तविक तथा अन्य लेखकीय नाम गुमनामी के अंधेरों में खोकर रह गए।
  • अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा ” हमारा काम तो केवल खेलना है-खूब दिल लगाकर खेलना-खूब जी-तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे।
  • प्रेमचंद ने अपने जीवन-काल में हज़ारों पत्र लिखे होंगे, लेकिन उनके जो पत्र काल का ग्रास बनने से बचे रह गए और जो सम्प्रति उपलब्ध हैं, उनमें सर्वाधिक पत्र वे हैं जो उन्होंने अपने काल की लोकप्रिय उर्दू मासिक पत्रिका ‘ज़माना' के यशस्वी सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम को लिखे थे।
  • मुंशी प्रेमचंद और मुंशी दयानारायण निगम के घनिष्ठ आत्मीय सम्बन्ध ही निगम साहब को सम्बोधित प्रेमचंद के पत्रों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बना देते हैं क्योंकि इन पत्रों में प्रेमचंद ने जहाँ सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा की है वहीं अपनी घरेलू तथा आर्थिक समस्याओं की चर्चा करने में भी संकोच नहीं किया।
  • मुंशी प्रेमचंद और मुंशी दयानारायण निगम के घनिष्ठ आत्मीय सम्बन्ध ही निगम साहब को सम्बोधित प्रेमचंद के पत्रों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बना देते हैं क्योंकि इन पत्रों में प्रेमचंद ने जहाँ सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा की है वहीं अपनी घरेलू तथा आर्थिक समस्याओं की चर्चा करने में भी संकोच नहीं किया।
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