याज्ञवल्क्यस्मृति वाक्य
उच्चारण: [ yaajenyevlekyesmeriti ]
उदाहरण वाक्य
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- इसी प्रकार से दूसरा विरोध भी अनुचित है, क्योंकि याज्ञवल्क्यस्मृति [5] ने श्राद्ध के फल भी घोषित किये हैं, यथा दीर्घ जीवन आदि।
- याज्ञवल्क्यस्मृति में कहा गया है कि पितर तृप्त होकर आयु, धन, विद्या, राज्य, स्वर्ग, मोक्ष, सुख सब प्रदान कर कल्याण करते हैं।
- याज्ञवल्क्यस्मृति [3] का कथन है कि पितर लोग, यथा-वसु, रुद्र एवं आदित्य, जो कि श्राद्ध के देवता हैं, श्राद्ध से संतुष्ट होकर मानवों के पूर्वपुरुषों को संतुष्टि देते हैं।
- याज्ञवल्क्यस्मृति [3] का कथन है कि पितर लोग, यथा-वसु, रुद्र एवं आदित्य, जो कि श्राद्ध के देवता हैं, श्राद्ध से संतुष्ट होकर मानवों के पूर्वपुरुषों को संतुष्टि देते हैं।
- वे ' मनुस्मृति ' और ' याज्ञवल्क्यस्मृति ' की यह बात भी भूलते जा रहे हैं कि जो राजा दंडनीति का पालन नहीं करता, वह अपने राजधर्म को क्षति पहुंचाता है और उसका पतन अवश्यंभावी है।
- यदि दूसरे को दे देना चाहे सो तो उचित नहीं हैं, क्योंकि याज्ञवल्क्यस्मृति के 317 वें श्लोक के ‘ पार्थिव: ' इस पद को लेकर मिताक्षरा में लिखा हैं कि ‘ अनेनभूपतेरेव भूमिदानेधिकारो न भोगपतेरिति दर्शितम् ' ।
- यदि दूसरे को दे देना चाहे सो तो उचित नहीं है, क्योंकि याज्ञवल्क्यस्मृति के 317 वें श् लोक के ' पार्थिव: ' इस पद को ले कर मिताक्षरा में लिखा है कि ' अनेनभूपतेरेव भूमिदानेधिकारो न भोगपतेरिति दर्शितम् ' ।
- और वर्ण, आश्रम और इनसे भिन्नों के धर्म हम लोगों को सुनाइए, इस याज्ञवल्क्यस्मृति के वचन के व्याख्यान के समय मिताक्षराकार ने जो लिखा है कि ब्राह्मण ब्रह्मचारी पलाश का दंड धारण करे इत्यादि, उसी के अनुसार भूमिहार ब्राह्मणों के उपनयन संस्कार होते हैं।
- ↑ मनु और याज्ञवल्क्य ने कहा है कि कुत्ता, बंदर आदि जिन जानवरों के पाँच-पाँच बख होते हैं उन्हीं में से खरगोश, कछुआ, गोह आदि पाँच प्रकार के जानवरों का मांस भक्ष्य है, (मनुस्मृति. 5.18 ; याज्ञवल्क्यस्मृति, 1.177) ।
- इसके अतिरिक्त याज्ञवल्क्यस्मृति, मार्कण्डेय पुराण [9], मत्स्य पुराण [10] एवं अग्नि पुराण [11] में आया है कि पितामह लोग (पितर) श्राद्ध में दिये गये पिण्डों से स्वयं संतुष्ट होकर अपने वंशजों को जीवन, संतति, सम्पत्ति, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सभी सुख एवं राज्य देते हैं।
- राज-व्यवस्था के क्षेत्र में भारत (तत्कालीन आर्यावर्त) ही एकमात्र वह देश है, जहाँ मनुस्मृति से प्रारंभ होकर याज्ञवल्क्यस्मृति, नारदस्मृति, पाराशरस्मृति और कौटिल्यीय अर्थशास्त्र तक जो भी राजा, राजपरिषद्, राजकीय कर-विधान, दंड-व्यवस्था आदि के मानदंड दिए गए, वे आज भी लगभग संसार के सभी देशों के संविधान में किसी-न-किसी रूप में पाए जाते हैं।
- Balloon title = “ (कालनिर्णय, पृ 0 354 ; स्मृतिकौस्तुभ, पृ 0 72) ” style = “ color: blue ” > * / balloon > * याज्ञवल्क्यस्मृति में है कि ' केवल विद्या या तप से ही व्यक्ति सुपात्र नहीं होता, वही व्यक्ति पात्र है जिसमें ये दोनों तथा कर्म (इन दोनों के समानुरूप) पाये जायें।
- उन्होंने नारदस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति और मिताक्षरा के उद्धरण देकर दिखलाया कि प्राचीन काल में मल मूत्रा की सफाई, झाडू बुहारी आदि का काम दास करते थे जो किसी भी वर्ण के हो सकते थे परन्तु चातुर्वण्य में निहित असमानता के अनुकूल ब्राह्मण केवल ब्राह्मण का ही दास हो सकता था और अन्य वर्णों के व्यक्ति अनुलोम क्रम में ही अपने वर्ण अथवा अपने से ऊंचे वर्ण के व्यक्ति द्वारा ही दास बनाये जा सकते थे।
- == ग्रहण का विधान == ग्रहण पर कृत्यों के क्रम यों हैं-# गंगा या किसी अन्य जल में स्नान, # प्राणायाम, # तर्पण, # गायत्रीजप, # अग्नि में तिल एवं व्याहृतियों तथा ग्रहों के लिए व्यवस्थित मन्त्रों के साथ होम balloon title = “ (याज्ञवल्क्यस्मृति 1 / 30-301) ” style = “ color: blue ” > * / balloon >, इसके उपरान्त # आम-श्राद्ध, सोना, गायों एवं भूमि के दान।
- याज्ञवल्क्यस्मृति में भी लिखा हैं कि युवावस्था वाले वेदों के विलक्षण ज्ञाता, सामान्यत: वेदों और उनके अर्थों के जानने वाले, सामवेद, ऋग्वेद और यजुर्वेदों के कुछ-कुछ अंशों के पण्डित, बहन के लड़के, यज्ञ कराने वाले, दामाद, यज्ञ करने वाले ससुर, मामा, लड़की के लड़के, शिष्य, दायाद, (भाई-बिरादर), नातेदार, कर्मकाण्डी और तपस्वी, अन्य योग्य ब्राह्मण, पाँचों अग्नियों की उपासना करने वाले, ब्रह्मचारी और माता-पिता के भक्त ब्राह्मण, इतने ही लोगों को श्राद्ध में भोजन करवाना उत्तम हैं।
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